लेखक~मुकेश सेठ
उस दौर के सबसे बड़े इनाम 50 हज़ार के लालच में हुई मुखबिरी में क्रांतिकारी हीरा बांके अपने 18 साथियों के साथ पकड़े गए और अंग्रेजों ने सबको लटकाया फाँसी पर
♂÷भारत को ब्रिटिश दासता से आज़ादी “बिना खड्ग बिना ढाल” के गढ़े गए फर्जी तराने से नही मिली थी बल्कि इस अंग्रेजी ग़ुलामी से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए एक करोड़ से ऊपर माँ भारती के अमर सपूतों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर हासिल की थी।
ऐसे ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जिसे देश के कथित इतिहासकारों ने सैनिक विद्रोह का नाम देकर भारत की आज़ादी के लिए भारतीयों के हृदय में ज्वाला फूँकने वाले कालखण्ड को कमतर करके रख दिया, उसमें ऐसे ही एक गुमनाम नायक उत्तरप्रदेश के जौनपुर जनपद के मछलीशहर तहसील के गाँव कुंवरपुर निवासी हीरा बांके हिंदुस्तानी जी भी थे।
जिनको इतिहास के पन्नों में लगभग गायब कर दिया गया, अदम्य साहसी व बलिदानी क्रांतिकारी हीरा बांके हिंदुस्तानी जी जाति से दलित वर्ग के हरिजन थे उस दौर में उन्हें बचपन मे लोग बांके चमार कहते थे।
जिनके साम्राज्य में कभी सूरज नही डूबता था उस ब्रिटिश सत्ता से वह अकेले ही लोहा लेने निकल पड़े।
अदम्य साहसी क्रांतिकारी हीरा बांके हिंदुस्तानी के द्वारा अकेले ही अंग्रेजों से मोर्चा लेने के चलते शीघ्र ही अन्य लोग भी उनसे प्रभावित होकर उनके साथ अंग्रेजों से जंग का ऐलान कर दिया।
लगातार अंग्रेजों के खिलाफ उनके नेतृत्व में चल रहे गतिविधियों से भयभीत अंग्रेजी सरकार नें उन पर 50 हजार रुपये का उस वक़्त का सबसे बड़ा इनाम हीरा बांके हिंदुस्तानी पर रखा, जब 2 गायें 6 पैसे में मिलती थीं।अंग्रेजों और बांके हिंदुस्तानी और उनके साथियों के बीच कई संघर्ष हुए किन्तु वह हर बार अंग्रेजों को चकमा देकर निकल जाते रहे।
भारी भरकम इनाम की धनराशि की लालच में एक मुखबिर ने अंग्रेजों को उनके ठिकाने की सूचना दे दी, अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए कई सैनिकों को लेकर मौके पर पहुँच गए।
अंग्रेजों और बांके हिन्दुस्तानी जी और उनके साथियों के बीच हुए संघर्ष में उन्होंने कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डाला, लेकिन भारी तादात में आये अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया।
इसके बाद में महान स्वतंत्रता समर सेनानी हीरा बांके हिंदुस्तानी और उनके 18 साथियों को फांसी पर लटका दिया गया।
आज आवश्यकता है कि खण्डित हो चुके देश के कथित गढ़े गए नायकों के इतर ,माँ भारती को ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी से मुक्ति दिलाने में अपना सर्वस्व बलिदान कर देने वाले गुमनाम कर दिए गए अमर क्रांतिकारियों,बलिदानियों के इतिहास को विस्तृत रूप से पुनर्लेखन कर देश के सम्मुख लाने की जरूरत है।
÷लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं÷