लेखक – सुभाषचंद्र

Technically लालू प्रसाद यादव को बरी कर चुकी हैं अदालतें!
न्यायपालिका और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव जैसे सजायाफ्ता मुजरिम के बीच यह कैसा भयंकर “गठजोड़” चल रहा,लगता है कि CBI की 20 साल की मेहनत पर courts ने पानी फेर कर लालू यादव को बचाया हुआ है।
क्योंकि उनके सजा भुगतने की संभावना बची ही नहीं, दरअसल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट technically लालू को बरी चुके हैं!
पहले देखते हैं 5 cases में लालू को कब और क्या सजा हुई।
✓ चाईबासा -आरसी 20(ए)/96 – (37.80 करोड़) – पहली सजा
30 अक्टूबर 2013 – 5 साल की सजा और 25 लाख का जुर्माना –
सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसंबर 2013 को जमानत दे दी थी,झारखंड हाई कोर्ट ने 11 साल से लालू की अपील पर कोई सुनवाई नहीं की है।
✓ देवघर –आरसी 64ए)/96 — (89.27 लाख )
6 जनवरी 2018 को लालू को साढ़े तीन साल की जेल और 10 लाख का जुर्माने की सजा सुनाई,
हाई कोर्ट ने जमानत दी 12 जुलाई, 2019।
✓ चाईबासा –आरसी 68 (ए)/96 – (33. 67 करोड़),
23 जनवरी 2018 को लालू को 5 साल की जेल और 10
लाख जुर्माना।
✓ दुमका –आरसी 38 (ए)/96 – (3.5 करोड़)
15 मार्च 2018 को लालू को 7 – 7 साल की अलग अलग सजा हुई और 1 करोड़ का जुर्माना
17 / 4 / 21 हाई कोर्ट से जमानत।
✓ डोरंडा कोषगार –आरसी 47 (ए)/96 – (139.35 करोड़ )
15 फरवरी को दोषी ठहराने के बाद से लालू लालू RIMS अस्पताल में भर्ती थे और कस्टडी में इलाज करा रहे थे।
लालू को 21 फरवरी, 2021 को 5 साल की सजा और 60 लाख का जुर्माना हुआ फिर
22 /4 /22 हाई कोर्ट से जमानत।
✓ डोरंडा (139.35 करोड़) के केस में CBI ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत रद्द करने की अपील की और CJI चंद्रचूड़ सिंह, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने 19 अगस्त 2023 को सुनवाई के लिए हामी भर कर 25 अगस्त 2023 तय की लेकिन आगे क्या हुआ कुछ पता नहीं।
✓ इसके अलावा देवघर (89.27 लाख) हाई कोर्ट द्वारा 12 जुलाई, 2019 को दी गई जमानत को रद्द करने के लिए CBI की अपील में जस्टिस AS Bopanna और जस्टिस MM Sundresh ने 18 october 2023 को कहा कि 4 साल बाद लालू की जमानत रद्द करना संभव नहीं है।
लालू प्रसाद यादव के वकील कपिल सिब्बल ने कहा CBI ने 14 – 15 महीने बाद देर से अपील दायर की है , सरकार लालू को चुनाव प्रचार से दूर रखना चाहती है।
जबकि राजू का कहना था कि हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बिना समझे गलत आदेश दिए , सिब्बल ने कहा कि सरकार लालू को चुनाव से बाहर रखना चाहती है ,यह उसने तब कहा जब कोई चुनाव घोषित नहीं हुए थे।
अब देखिए, चाईबासा -आरसी 20(ए)/96 केस में फैसला हुए और लालू की बेल हुए 11 साल हो गए, उसमें तो जमानत रद्द हो ही नहीं सकती।
जब 4 साल बाद देवघर केस में जमानत रद्द नहीं करना चाहता सुप्रीम कोर्ट ,अभी 11 साल में सुनवाई नहीं की हाई कोर्ट ने और अगर अपील ख़ारिज हो भी गई तो 5 – 7 साल तो सुप्रीम कोर्ट भी लेगा फैसला करने में।
इसके अलावा, चाईबासा –आरसी 68 (ए)/96 – (33. 67 करोड़) और दुमका -आरसी 38 (ए)/96 – (3.5 करोड़) के फैसले हुए भी 6 – 6 साल हो चुके हैं और उसमें भी उनकी जमानत रद्द नहीं होंगी।
डोरंडा केस में भी यह सब देखते हुए नहीं लगता कि उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ सिंह CBI की अपील स्वीकार करेंगे!
पहले केस में लालू यादव के लिए जमानत लेने के लिए राम जेठमलानी ने कहा था कि लालू प्रसाद यादव की अपील पर फैसला होने में 7 से 8 साल लग जाएंगे लेकिन सुनवाई fastrack पर होती तो उस समय 65 साल का लालू सजा भुगत सकता था क्योंकि तब उसे कोई बीमारी भी नहीं थी जैसी आज ख़ुद लालू यादव बताते हैं।
पहले केस को 11 साल से लटका देख कर लगता है कि बाकी 4 केस भी निपटने में 10 से 15 साल और लगेंगे और ऐसे में लालू यादव के सजा भुगतने की कोई उम्मीद नहीं है।
हो सकता है 1 – 2 केस में बरी ही कर दिए जाएं लेकिन आज की स्थिति देख कर यह कहा जा सकता है कि झारखंड हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने तकनीकी तौर पर लालू को बरी कर दिया है क्योंकि उन्हें सजा तो हुई पर सजा भुगतेंगे नहीं और यह अदालतों का सबसे बड़ा “अप्रत्यक्ष तकनीकी सहयोग” है जो लालू प्रसाद यादव के साथ मिली भगत से किया गया लगता है!

(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)