लेखक – सुभाषचंद्र
सुप्रीम कोर्ट ने परसों Newsclick के Faunder प्रबीर पुरकायस्थ की UAPA में गिरफ्तारी को अवैध कहते हुए जमानत पर रिहा कर दिया।
जस्टिस बी आर गवई और संदीप मेहता ने उसका कारण बताया कि उसे गिरफ़्तारी के कारण लिख कर नहीं दिए गए थे।
यानी जुलाई वर्ष 2021 से पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी गिरफ़्तारी पर रोक लगाई थी और बड़ी मुश्किल से दिल्ली पुलिस के हाथ लगा था ये।
चीन से पैसा लेकर भारत की Stability & Integrity के साथ खिलवाड़ करने वाला और उसे छोड़ कर जैसे उसके देश के खिलाफ सभी कामों को भी ठीक बता दिया।
मीलॉर्ड ने कहा कि UAPA में गिरफ़्तारी के कारण बताना जरूरी है और नहीं बताए तो गिरफ़्तारी अवैध है।
पुरकायस्थ पर चीन से 75 करोड़ रुपए मंगवाने का गंभीर आरोप है और जांच एजेंसियों के पास मजबूत साबुत है जो कि अदालत में पेश किए गए हैं।
इसके अलावा सबसे खतरनाक आरोप इन पर था कि न्यूज क्लिक के फाउंडर/एडिटर इन चीफ प्रवीर पुरकायस्थ ने उत्तर भारत के borders का ऐसा नक्शा बनाया जिसमें अरुणाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं दिखाया लेकिन मीलॉर्ड ने इस बेहद संगीन मामले पर कुछ ध्यान नहीं दिया और तकनीकी आधार पर रिहा कर दिया।
पुरकायस्थ 3 अक्टूबर, 2023 को गिरफ्तार हुआ था तब मजिस्ट्रेट को इसे 7 दिन की रिमांड पर भेजते हुए यह देखना चाहिए था कि Grounds of Arrest बताये गए हैं या नहीं। भारत के जनरल सॉलिसीटर तुषार मेहता ने हाई कोर्ट में कहा था कि UAPA guidelines में अरेस्ट के ग्राउंड के written copy देना जरूरी नहीं है वैसे मजिस्ट्रेट के सामने grounds बता दिए गए थे।
पुरकायस्थ ने हाई कोर्ट में अपील की थी लेकिन हाई कोर्ट ने 10 अक्टूबर को उसकी अपील खारिज कर दी यह कहते हुए कि उसमे कोई Merit नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिहाई के लिए पंकज बंसल के केस का जिक्र किया है लेकिन वह केस UAPA का नहीं था बल्कि PMLA का था और दोनों मामले में कानून अलग है।
वैसे भी वह फैसला दिसंबर, 2023 का था जबकि पुरकायस्था गिरफ्तार अक्टूबर,2023 में हुआ था,उसको backdate में कैसे apply कर सकते हैं।
इस जमानत से एक बार फिर देश में चर्चा शुरु है कि क्या सुप्रीम कोर्ट हर किसी को छोड़ने में आगे रहेगा चाहे वह देश का दुश्मन ही क्यों न हो?
दूसरे शब्दों में जो भी मोदी सरकार के खिलाफ होगा, अदालत उसके साथ होगी, जैसे केजरीवाल के साथ थी जिसे अनैतिक रूप से बेल दे दी गई कि वह मुख्यमंत्री के साथ पार्टी के नेता हैं और देश में चुनाव प्रचार चल रहा है ऐसे में इस बेल को नजीर न माना जाए और केजरीवाल को 1 जून तक जमानत दी जाती है।
आज अमित शाह से सुन ही लिया न कि अदालत द्वारा उसे special Treatment दिया गया।
एक गृह मंत्री इससे ज्यादा और सख्त टिप्पणी नहीं कर सकता अदालत के आचरण पर।
मजिस्ट्रेट ने परवाह नहीं की और न ही हाई कोर्ट ने परवाह नहीं की।आपको चिंता थी तो पुलिस को हिदायत दे सकते थे कि 2 दिन में उसको लिखित में गिरफ़्तारी के आधार बताये जाएं मगर आपने तो उसे छोड़ना ही बेहतर समझा।
आप उसे कह रहे हैं कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करना,आपने कह दिया और उसने मान लिया, ऐसा होगा क्या, वो सारे पैसे और ख़ुफ़िया जानकारी सात तालों में बंद कर छुपा कर चीन से मंगवा लाया और उससे आप उम्मीद कर रहे हो कि सबूतों से छेड़छाड़ न करे।
क्या पुरकायस्थ मौका मिलते ही सबूतों को नष्ट करने की कोशिश नही करेगा?
इतने गंभीर केस में सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से अकाट्य साक्ष्य को देखने के बाद भी आरोपी पुरकायस्थ जिसने चीन से करोड़ो की फंडिंग लेकर देश की सरकार को अस्थिर करने और भारत के नक्शे के साथ छेड़छाड़ करने के बाद भी आरोपी को जमानत देकर राष्ट्रचिंतकों को चिन्ता में डाल दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में यू तो अधिकतर न्यायाधीश बेहद ईमानदारी से कार्य कर उदाहरण पेश करते हैं किन्तु यह भी देखने में आता रहता है कि एक एजेंडे के तहत काम करने वाले प्रभावशाली लोग जब सरकारी एजेंसियों के द्वारा देश की सुरक्षा, संप्रभुता के लिए खतरा बनते पकड़े जाने है तो ऐसे हाई प्रोफाइल आरोपियों को अदालतों द्वारा किसी न किसी बहाने जमानत दे दी जा रही है।
इससे आम जनमानस में बहुत अच्छा सन्देश नही पहुंच रहा है, इस पर माननीय मुख्य न्यायाधीश को अवश्य कुछ क़दम उठाने चाहिए जिससे कि न्यायतंत्र की गरिमा को न्याय प्रेमियों में अक्षुण्य रखा जा सके।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार है )