लेखक -सुभाषचन्द्र
महिलाओं पर बढ़ते अपराध और अराजकता फैलाने के लिए क्या कोर्ट की शिथिलता खुद जिम्मेदार है यह गंभीर प्रश्न आज राष्ट्र के समक्ष खड़ा हो रहा है।
जमीयत उलमा – ए – हिंद की याचिका हो और उसे प्रस्तुत करने वाला “सेकुलर और खास वर्ग परस्त वकील” दुष्यंत दवे हों, तब इन पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट एक दिन की भी देरी नहीं करता और उनके हक़ में खड़ा होने में कोई गुरेज़ भी नहीं करता ।
मीलॉर्ड जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विश्वनाथन ने कहा बुलडोज़र से किसी का घर गिराना मौलिक रूप से गलत है, अपराध और गैरकानूनी घर बनाना दो अलग बातें हैं और दोनों को साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए अगर किसी का अपराध सिद्ध भी हो जाता है तब भी घर नहीं तोड़ सकते।
एक बलात्कारी का गैरकानूनी घर गिराना लोगों के लिए एक Deterrent का काम करता है। जिससे एक भय रहे कि इस जघन्य अपराध की यह भी सजा हो सकती है, क्योंकि बलात्कार के मुक़दमे का फैसला करने में कोर्ट वर्षो वर्ष लगा देते हैं और सुप्रीम कोर्ट किसी को फांसी भी नहीं देता,जब Deterrent ही नहीं रहेगा तो अपराधी तो मौज में रहेंगे ही।
सजा देने में कोर्ट कितनी तत्पर है इसे इस एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि राजस्थान के अजमेर में तीन दशक पहले कांग्रेस के कुछ मुस्लिम नेताओं सहित अन्य मुस्लिम लोग सौ से अधिक हिंदू लड़कियों को ब्लैकमेल करके उनके साथ गैंगरेप करते रहे। तमाम लड़कियों ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली तो दर्जनों परिवारों ने केस ही नही दर्ज कराया खौफ़ की वजह से और अजमेर से पलायन ही कर गए।
उस दौरान कांग्रेस की सरकार ने इस जघन्य गैंगरेप के मामले को पूरी ताकत से दबाने में लगी रही।
मामला कोर्ट में पहुँचा तो ३२ साल के बाद कोर्ट ने पिछले दिनों जाकर कारावास की सजा सुनाई, न कि देश के जघन्य गैंगरेप के अपराधियों को फांसी देने की जगह।
यह एक उदाहरण है कि देश को झकझोरने वाले जघन्य सामूहिक ब्लातकार के केस में कोर्ट कितनी जल्दी पीड़िताओं को न्याय और रेपिस्टो को सजा सुनाता है।
मीलॉर्ड मुआफ करिये आपका नजरिया है, बलात्कार करो, क्योंकि फैसला कई साल तक नहीं होगा और अवैध रूप से बने घर हम तोड़ने नहीं देंगे, जिससे अपराधियों में दहशत पैदा हो, अतः अपराधी मौज करें।
एक आदतन अपराधी हजारों लोगो की भीड़ लेकर पुलिस पर हथियारों से हमला करे तो भी उसका घर मत तोड़ो,सुप्रीम कोर्ट के कमेंट से तो यही मतलब निकलता है।
उस दुस्साहसिक दंगाई की अवैध रूप से बनी कोठी जब मध्यप्रदेश सरकार गिरवा देती है तब प्रियंका गाँधी से लेकर तमाम कांग्रेसियों, विपक्ष के नेताओं के ट्वीट अपराधी के पक्ष में रोना शुरू कर देते हैं।
उसके परिवार का रोना मत रोइए क्योंकि जब आदमी कुकर्म करता है तो उसके परिवार को भी भुगतना चाहिए क्योंकि कमाई पर भी तो परिवार मौज करता है दबंगई करता है।
जमीयत ने कहा कि “State governments are encouraging bulldozer to intimidate the Oppressed and marginalized communities particularly the minorities (और वो मुसलमान हैं) those who can not defend themselves in process of law”
मतलब ये Minorities के लोग जिनमें संपन्न लोग भी शामिल हैं, किसी की भी बहन बेटियों को उठा कर ले जाएंगे, दुष्कर्म करेंगे और फिर भी कोर्ट में खुद victim (पीड़ित) बनकर खड़े हो जाएंगे।
राष्ट्रपति महोदया को यह समझ आ जाना चाहिए कि महिलाओं के साथ बलात्कार करने वाले राक्षस प्रवृत्ति वाले अपराधियों के लिए न्यायपालिका का ढीलापन भी काफी हद तक जिम्मेदार है और अदालत के प्रवचन इस बात का प्रमाण हैं।
ऐसा मैं काफी समय से कहता आ रहा हूं कि अदालत में बैठे जज और उनके परिवार कभी अपराध का शिकार नहीं होते जिसकी वजह से ये लोग बलात्कार जैसे गंभीर अपराध को भी हल्के में लेते हैं और अपराधियों के प्रति नरमी बरतते हैं Sinner has a future कह कर सुप्रीम कोर्ट के आचरण से कुछ बातें साफ़ है कि
कोर्ट में कहीं न कहीं एक टूल किट काम कर रहा है जो मोदी विरोध, हिंदू विरोध के साथ साथ देश में अराजकता फैला कर देश को तोड़ने में कांग्रेस का एजेंडा पूरा कर रहा है, जस्टिस गवई तो कह ही चुके हैं कि वो कांग्रेस परिवार से आते हैं।
बुलडोज़र कार्रवाई रोक देने से अपराधी के मन में भय ख़त्म हो जायेगा क्योंकि उसे मालूम है कि दशकों तक मुकदमा चलता रहेगा और वह जमानत करा कर फ़िर पुराने ढर्रे पर चलता रहेगा।
दंगाइयों, बलात्कारी के गैरकानूनी घरों पर बुलडोजर रोकने के लिए मीलॉर्ड कह रहे हैं हम दिशा निर्देश तय करेंगे लेकिन कानून बनाने का काम तो भारतीय संविधान के अनुसार संसद का है जो वर्तमान कानूनों में बदलाव कर सकती है यह अधिकार सुप्रीम कोर्ट का नही है उनका काम है सदन से बने कानून के अनुसार पीड़िताओं को न्याय और दोषियों को सजा देना।
एक तरफ जस्टिस महोदय कहते हैं कि Encroachment गलत है लेकिन जब अधिकारी उसे तोड़ते हैं तो जस्टिस महोदय सरकार से कहते हैं कि उजाड़ने से पहले लोगों का “पुनर्वास” करने के लिए घर दो जैसे हल्द्वानी और अन्य जगहों पर कहा जिससे लोगों को दंगे करने का मौका मिला इस बात से।
यानी देश में घुसपैठियों को खुली छूट दे रहे हैं कि जहां मर्जी जमीन हथिया लो, घुसपैठ करना जैसे एक तरह से मौलिक अधिकार बना दिया हो,खुद एक्शन लेने नहीं देते और फिर दोष देते हैं कि सरकार से कानून व्यवस्था संभल नहीं रही।
माफ़ी के साथ कहना चाहता हूं कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल समेत कुछ वीआईपी लोगों को जिस तरह से जमानत दी हो या दिल्ली समेत कुछ राज्यों में दशकों से अवैध निर्माण को सरकार द्वारा हटाने के दौरान एक ही दिन में रोक लगाई गई उससे न्याय प्रिय नागरिकों में अदालत की छवि कुछ ठीक नही बन रही है।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)