लेखक- सैयद आबिद हुसैन
जिन प्रवासी मजदूरों के लिए मैं 10 साल से काम कर रहा हूं उस मुद्दे पर बनी फिल्म The Goatlife जो नजीब मुहम्मद नाम के मलयाली मुस्लिम और हकीम की सच्ची कहानी पर आधारित है। नजीब काम की खोज में सऊदी अरब में हेल्पर की नौकरी करने जाता है और वहां जबर्दस्ती गुलाम बना कर रेगिस्तान के रेतीले खेतों में चरवाहे का काम करवाने के लिए मजबूर किया जाता है। उस पर जुल्म ढाए जाते हैं लेकिन वो विश्वास और साहस नहीं खोता। बहुत कम फिल्में होती है जो उपन्यास की कहानी से भी बेहतर चित्रण कर पाती है, The Goatlife वैसी ही फिल्म है। इसके सीन आपको दिल के करीब फील होंगे।
नजीब की कहानी पर आडूजीविथम नाम से किताब लिखी गई थी। जिसे सऊदी अरब और कई खाड़ी देशों में बैन कर दिया था। उसके बाद 2008 में इसके ऊपर फिल्म बनाने की कवायद शुरू हुई लेकिन कोई पैसा लगाने को राजी नहीं था। अंत में भारत और अमेरिका की कंपनियों ने साझा रूप से इसमें पैसा लगाया और मलयाली स्टार पृथ्वीराज सुकुमारन ने अभिनय किया है। इस फिल्म को सऊदी अरब और बाकी खाड़ी देशों में बैन कर दिया गया है।
फिल्म एक इंसान के सर्वाइवल और जीवटता पर बहुत मार्मिक हस्ताक्षर है। हर इंसान को देखनी चाहिए।
सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ यानी अस्तित्व के लिए जंग और सर्वश्रेष्ठ का बचे रहना। इस अवधारणा से हम सभी वाकिफ हैं, मगर जब भी किस्से-कहानियों या फिल्मों में किसी चरित्र को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते और उसमें जीतते देखते हैं, तो मर जाने वाले हालात में जीवन जीने की बड़ी हिम्मत मिलती है। साउथ के जाने-माने निर्देशक ब्लेसी ‘आडुजीवितम- द गोट लाइफ’ के रूप में सत्य घटना पर आधारित ऐसी ही फिल्म लेकर आए हैं।
मूलरूप से मलयालम में बनी यह फिल्म हिंदी, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषा में भी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। ये पहली बार नहीं है, जब कोई सर्वाइवल वाली कहानी पर्दे पर आई हो, मगर निर्देशक ब्लेसी बेशक दाद के काबिल हैं, जो उन्होंने नजीब मोहम्मद की असल जिंदगी की कहानी को पर्दे पर पूरी सचाई के साथ पेश किया है। हालात ने नजीब को खाड़ी देश में तीन साल तक गुलाम बना कर रखा और उस दौरान उसने जो यातनाएं झेलीं, वो दिल को दहला देने वाली थीं। लेकिन अब एक बात सुकून देती है कि नजीब हमारे बीच जिंदा हैं।
‘द गोट लाइफ’ की कहानी
कहानी है केरल के मोहम्मद नजीब (पृथ्वीराज सुकुमारन), उसकी पत्नी सैनु (अमला पॉल) और उसकी मां (शोभा मोहन) की। पांच क्लास तक पढ़ा नजीब अपने अपरिवार का गुजारा करने के लिए रेत की मजदूरी करता है, मगर परिवार और अपने आने वाले बच्चे को बेहतर जिंदगी देने के लिए वह खाड़ी देश जाकर पैसे कमाने की सोचता है। टिकट और वीजा का इंतजाम करने के लिए वह अपना घर गिरवी रख देता है।
वह सऊदी अरब पहुंच तो जाता है, मगर खुद को रेगिस्तान के बीच भेड़ और ऊंटों की देखभाल करने वाले एक गुलाम के रूप में पाता है। असल में वह एयरपोर्ट पर गलत प्रायोजक के साथ चला गया था, जिसके फलस्वरूप अब वो चरवाहे के रूप में एक गुलाम है। नजीब के साथ उसका दोस्त हाकिम (केआर गोकुल) भी है।
बस वहीं से उसके जीवन की भयानक दास्तान की शुरू होती है नजीब के दोस्त हाकिम को किसी और शिविर में ले जाया जाता है। जबकि उसे खाने के लिए एक रोटी और पीने के लिए भरपूर पानी तक नहीं मिलता। वहां से बच निकलने की कोशिश करने पर उसे डराने के लिए गोलियां बरसाई जाती हैं, मारा-पीटा जाता है, उसका एक पैर टूट जाता है। उनकी भाषा न आने के कारण वो अपनी बात उन्हें समझा नहीं पाता।
रेगिस्तान में उसका जीवन जानवरों से भी बदतर हो जाता है, मगर तीन साल उस यातनामय जीवन के बाद जब वो तकरीबन अपने परिवार के साथ-साथ खुद को भी खो चुका है, तब अल्लाह के फरिश्ते की तरह अफ्रीकी गुलाम इब्राहिम कादरी (जिमी जीन लुई) और हाकिम उसे मिलते हैं। उसके बाद कैसे इब्राहिम की मदद से वो उस रेगिस्तान के अत्याचारी जीवन से निकल पाता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
(लेखक मशहूर ब्लॉगर हैं)