( राजेश बैरागी)
(गौतम बुद्ध नगर)
क्या कोई बता सकता है कि हरियाणा में एक बार फिर भाजपा की जीत से सबसे ज्यादा कौन प्रसन्न है,मैं जानबूझकर कुमारी शैलजा को बदनाम करने का प्रयास नहीं कर रहा हूं। उन्होंने तो बीते दिन “सालासर बालाजी धाम” जाकर मनौती भी मांगी थी। कोई नहीं जानता कि उन्होंने “सालासर बालाजी” से क्या मनौती मांगी होगी। मैं स्वयं को धिक्कारने लगता हूं जब मेरे मन में यह विचार आता है कि उन्होंने निश्चित ही हरियाणा में कांग्रेस की हार की अर्जी लगाई होगी। दरअसल अपनी शेष और अपने पुत्र की अशेष राजनीति के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस पार्टी को दांव पर लगा दिया। उन्होंने तानाशाह की भांति 90 में से 65 टिकट अपने लोगों को दिलाया और कुमारी शैलजा।
हरियाणा में जन्मभर की राजनीतिक तपस्विनी और कांग्रेस का बड़ा दलित चेहरा कुमारी शैलजा को चुनाव में निकट भी फटकने नहीं दिया। क्या यह भाजपा की जीत है?
दस वर्ष के शासन में क्या कुछ भी सत्ता विरोध पैदा नहीं हुआ,यदि ऐसा नहीं होता तो नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद नसीब नहीं होता। केवल छः महीने के मुख्यमंत्री बदलाव ने क्या मतदाताओं का मन-मस्तिष्क बदलकर रख दिया? कुमारी शैलजा को इन सब प्रश्नों से कोई लेना-देना नहीं है,उनकी मांगी मुराद मिल गई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी हठधर्मी रणनीतियों को लेकर अभी भी शायद शर्मिंदा न हों। परंतु फैक्ट्री में बनाकर देश दुनिया को डिब्बाबंद जलेबी निर्यात करने का अनोखा विचार देने वाले राहुल गांधी आज कहीं नजर नहीं आए।हो सकता है कि उन्हें स्वयं अपने आईडिया पर भरोसा न रहा हो। हरियाणा में भाजपा की जीत का सबसे बड़ा गम आम आदमी पार्टी को हो सकता है।
पंजाब के बिल्कुल पड़ोसी राज्य में खाता न खुलने का खामियाजा दिल्ली चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। हालांकि जम्मू-कश्मीर में एक आप उम्मीदवार की जीत में कोई योगदान न होने के बावजूद आप नेताओं को अपनी पार्टी के विस्तार का गुमान हो सकता है।