लेखक-राघवेंद्र पाठक
अमेरिका में अब भी डेमोक्रेटिक पार्टी जो बायडेन के नेतृत्व में सत्तारूढ़ है। अगले 50 दिनों तक बायडेन के जरिये बराक ओबामा और बिल क्लिंटन जैसे पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति रह चुके या राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी रह चुकीं कमला हेरिस अपने स्टेट्स डिपार्टमेंट और डीप स्टेट के माध्यम से ऐसी खुराफात करते रहेंगे, ताकि नवनिर्वाचित रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब 20 जनवरी को सत्तारूढ़ हों तो वे अपने चार साल के कार्यकाल में और कुछ न कर पाएं, केवल उलझनों को ही सुलझाते रह जाएं।
गहरा राज्य या डीप स्टेट की जड़ें काफी गहरी हैं। कहा जाता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के सत्तारूढ़ होने पर अमेरिका का डीप स्टेट पूरे विश्व में भर- भर के परेशानियां खड़ा करता है। इसकी जड़ें और प्रतिनिधि पूरे विश्व में फैले हुए हैं।
एक अनुमान के अनुसार डीप स्टेट का प्रतिनिधित्व करने वाले खासकर व्यापारी 500 ट्रिलियन डालर से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं। इस संपत्ति को इस तरह समझा जा सकता है कि खुद अमेरिका महज 28 ट्रिलियन डालर की जबकि विश्व की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी चाइनीज अर्थव्यवस्था केवल लगभग 18 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था है।
इन स्थितियों में लोग इनसे टकराने की जगह समझौता कर लिया करते हैं। यही कारण है कि देश के बड़े उद्योगपतियों यथा टाटा, बिड़ला या अंबानी ने एक तरह से इनसे अनडरस्टैंडिंग कायम कर रखी है। लेकिन राष्ट्रवादी सरकारें और उद्योगपति डीप स्टेट के आंखों की किरकिरी बने रहते हैं। यही कारण है कि उद्योगपति अडाणी इनके निशाने पर हैं।
बंगलादेश में शेख हसीना की सरकार ने अपने बगल में एक ईसाई देश बनाने की डीप स्टेट और अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट की मांग को खारिज कर दिया इसलिए बंगलादेश में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई शेख हसीना की सरकार को साजिशन सत्ताच्युत करवा दिया।
भारत भी डीप स्टेट के निशाने पर है। डीप स्टेट को यहाँ कमजोर और उनकी पिट्ठू सरकार चाहिए थी जो उनके कहने पर चाइना से भी भिड़ने को तैयार हो जाए। लेकिन नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार वैसा करने को तैयार नहीं है। विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत और यहाँ के नागरिकों के हित केंद्र सरकार की प्राथमिकता में हैं। यही कारण है कि डीप स्टेट के फंड पर देश को अस्थिर करने के लिए कभी किसान आंदोलन तो कभी शाहीन बाग का आंदोलन कराया जाता है।
पूरे विश्व में डीप स्टेट से बड़े- बड़े हथियार व्यापारी जुड़े हुए हैं जो नहीं चाहते कि विश्व में शांति और सौहार्द का वातावरण रहे। यही कारण है कि उन्हें दक्षिणपंथी रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पसंद नहीं हैं। यही कारण है कि अमेरिका का स्टेट्स डिपार्टमेंट या विदेश विभाग 20 जनवरी को सत्ता छोड़ने से पहले यूक्रेन- रशिया युद्ध में ऐसी स्थितियां पैदा कर दे रहा है कि ट्रंप से यह युद्ध रुकाए न रुके। इसके उलट इजराइल को युद्धविराम के लिए मजबूर किया गया।
वर्तमान अमेरिकी सरकार को बंगलादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार नहीं दिखाई दे रहे जबकि अक्सर उन्हें भारत में माइनॉरिटी उत्पीड़न के तथाकथित मामले दिखाई देने लगते हैं।
पूरे विश्व के लिए आने वाले 50 दिन बहुत भारी हैं। ट्रंप के सत्ता संभालते ही सबकुछ नहीं तो बहुत कुछ जरूर बदल जाएगा, जो भारत और विश्व समाज के हित में होगा। टैरिफ जरूर लगेंगे पर युद्ध रुक जाएंगे। तो आइए अगले 50 दिन दम साधकर आहिस्ता- आहिस्ता चलें..!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी मत हैं)