लेखक -राघवेंद्र पाठक
√ समुद्र मंथन के काल के बने हैं ग्रहों के संयोग तो 144 वर्ष में एक बार लगने वाला है यह दुर्लभ महाकुम्भ
सनातन के महापर्व मकर संक्रांति की आप सबको बहुत- बहुत बधाई। जैसा कि कहा जा रहा है 144 वर्षों बाद ग्रहों का विलक्षण संयोग बन रहा है। लेकिन बात इतनी ही नहीं है। ग्रहों का यह मिलन और सामंजस्य समुद्र मंथन के दिनों को भी दोहरा रहा है। यानी समुद्र मंथन जब हुआ, उस समय ग्रहों का जैसा समन्वय था, इस बार ग्रह उस स्थिति में पुनः पहुंचे हुए हैं। ईश्वर ने प्रयागराज कुंभ आयोजन के मेजबान के रूप में योगी जी और देश के यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी को चुनकर अपने संकेत साफ़ कर दिए हैं। सो प्रयागराज जाएं और उस इतिहास का हिस्सा बनें जो आपको अपनी महान और गौरवशाली संस्कृति के सत्य दर्शन का महान अवसर उपलब्ध करा रही है।
जैसा कि हम जानते हैं, समुद्र मंथन में कई अनमोल और बहुमूल्य वस्तुओं के साथ विष भी निकला था और अमृत भी। संसार को विष के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान् शिव ने लोककल्याण के लिए विष को पी कर अपने कंठ में स्थान दिया और इस तरह नीलकंठेश्वर कहलाए। यह काम वही कर सकते थे सो महादेव भी वही हैं।
अमृत के लिए देव और दानवों में विवाद हो गया। इस दौरान दैत्य सेनापति राहू ने छल से अमृत की कुछ बूंदें पी लीं। उसके अमर हो जाने की आशंका से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। इस प्रकार सिर राहू और धड़ का हिस्सा केतु बन गया। अमृत पीने के कारण दोनों अमर हो गए। ज्योतिष के नवग्रह चार्ट में राहू और केतु को भी जगह दी गई है, जो सातवीं नजर से एक- दूसरे को देखते हैं। इस विषय पर चर्चा फिर कभी। लेकिन इस तथ्य का उल्लेख जरूरी है कि भगवान् विष्णु ने मोहनी रूप धारण कर राहू- केतु को छोड़ शेष विधर्मियों को अमृत पान से वंचित कर दिया।
अमृत हथियाने के लिए अंतरिक्ष में देव- दानवों में हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में भी गिरीं, जिससे ये स्थल तीर्थ बन गए। और इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर बारह सालों बाद अमृत फल करने की लालसा में महाकुम्भ का आयोजन किया जाने लगा। इस प्रकार हर तीन वर्ष में इन चारों स्थानों में से एक में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है।
इन सभी तीर्थों में जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है तीर्थराज प्रयाग यानी तीर्थों का राजा। कहना मुश्किल नहीं कि प्रयागराज कुंभ मेले और स्नान की मान्यता अधिक है। जहाँ तक इस बार के आयोजन की बात का सवाल है तो ऊपर ही उल्लेख कर दिया गया है कि न केवल 144 वर्षों बाद ग्रहों का यह विलक्षण संयोग बन रहा है वरन् ग्रहों का यह संयोग समुद्र मंथन का भी साक्षी है।
इस आयोजन के मेजबान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उल्लेख किए बिना इस विशेष कुंभ की चर्चा अधूरी रह जाएगी। कहा जा सकता है कि इस कुंभ को दिव्य और भव्य बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो लगता है कि प्रकृति ने इस पुण्य कार्य के लिए मोदी और योगी की जोड़ी को चुना है।
अनुमान लगाया जा रहा था कि 40 करोड़ श्रद्धालु कुंभ मेले में स्नान कर सकते हैं। लेकिन दो दिनों यानी 13 जनवरी को प्रथम पूर्णिमा स्नान और आज मकर संक्रांति स्नान के दूसरे स्नान के साथ ही शुरुआती दो दिनों में ही लगभग तीन करोड़ श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा और त्रिवेणी में डुबकी लगा ली है। ऐसे में आश्चर्य नहीँ होना चाहिए यदि कुंभ में श्रद्धालुओं की संख्या 50 करोड़ की संख्या को पार कर जाए।
भारत में यह सनातन और हिन्दू पुनरुत्थान का युग कहा जा सकता है जो अपने स्वर्णकाल की ओर बढ़ रहा है। मोदी जी और योगी जी ने हिन्दू तीर्थ और श्रद्धालु प्रथम की नीति अपना रखी है। लगता है कि भगवान् ने बहुत कुछ कराने के लिए इन्हें ही चुना है। सो आप भी इस इस अवसर का साक्षी बनें और कुंभ के महाशिवरात्रि पर छठे और अंतिम स्नान से पहले किसी भी स्नान का हिस्सा बनकर इस अद्भुत अवसर में शामिल होकर पुण्य के सहभागी बनें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)