लेखक- सुभाष चंद्र
आज लोकसभा में वक़्फ़ संशोधन बिल पेश हो गया और लेख लिखने तक चर्चा अभी भी चल रही है।
बिल हर हाल में पास हो जाएगा लेकिन कुछ वक्ताओं की बातें सुनकर यह अहसास हुआ कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी वक़्फ़ से वाकिफ नहीं हैं।
आखिर एक बात का रोना हर वक्त क्यों रोया जाता है कि मुस्लिम गरीब हैं और मजलूम हैं जबकि उनका संगठन वक्फ बोर्ड वर्षों से काम कर रहा है, अकूत संपत्ति का मालिक है यह बोर्ड। लेकिन उस संपत्ति से होने वाली आय उसने क्या कभी गरीब मुस्लिमों पर वक़्फ़ बोर्ड ने खर्च की है, मदरसे भी बनाए और चलाए जाते हैं तो वह भी सरकार के पैसे से।
मुस्लिमों को सोचना चाहिए कि आखिर आम मुसलमान को वक़्फ़ बोर्ड से क्या मिला ,मुस्लिम समुदाय के लोग जब आपराधिक मामलों में फंसते हैं तो उन्हें बचाने के लिए बोर्ड नहीं आता बल्कि जमीयत उलेमा-ए-हिन्द वकील देता है।
ट्रिपल तलाक झेलने वाली मुस्लिम महिलाओं को क्या कभी बोर्ड ने कोई मदद दी बल्कि ट्रिपल तलाक का विरोध ही किया और तलाकशुदा महिलाओं को अल्लाह के भरोसे दर दर भटकने के लिए छोड़ देता था यह वक़्फ़ बोर्ड।
क्या कभी मुस्लिमों के लिए स्कूल बनाएं जहां उच्च शिक्षा दी जाए, क्या कभी हॉस्पिटल बनाए जिनमें मुस्लिमों समेत सभी लोगों का इलाज किया जाता हो।
वक़्फ़ की संपत्ति किसी मुस्लिम द्वारा दान की हुई होनी चाहिए वह भी जरूरतमंदों के परोपकार के लिए और ऐसे जरूरतमंद जरूरी नहीं मुस्लिम हो।
गैर मुस्लिमों को छोड़िए वक़्फ़ ने कभी मुस्लिमों की भी मदद नहीं की, यह कैसे हो सकता है कि एक तरफ तो मुस्लिम गरीब हैं और दूसरी तरफ वह अपनी इतनी संपत्ति दान कर देते हैं जिस पर वक़्फ़ बोर्ड बड़े बड़े होटल, रिसोर्ट और भवन खड़े कर लेता है।
मुस्लिम आपको कभी अंगदान करते नहीं मिलेंगे लेकिन अंगदान लेते जरूर मिलेंगे,इस्लाम में दान (जकात) गैर मुस्लिमों को तब ही दिया जाता है जब वह इस्लाम का विरोध न करते हो और इस्लाम की तरफ उनका रुझान हो।
आज के विधेयक से साफ़ है कि वक़्फ़ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगेगी ,किसी की संपत्ति पर उंगली रखने से वह वक़्फ़ की नहीं होगी कोई भी सरकारी संपत्ति वक़्फ़ की नहीं मानी जाएगी और कोई भी मुस्लिम अपनी ही संपत्ति वक़्फ़ को दे सकेगा, जिसके लिए उसका 5 साल तक इस्लाम महजब को मानना जरूरी होगा।
संपत्ति का पंजीकरण भी होगा और कलेक्टर उसकी देखभाल करेगा, वक्फ बोर्ड के निर्णय को कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।
काँग्रेस सांसद इमरान मसूद आज लोकसभा में कह रहे थे कि उत्तर प्रदेश में वक़्फ़ की 74% संपत्ति सरकारी घोषित कर दी गई हैं ,लूट कर संपत्ति वक़्फ़ में जोड़ी हैं तो उनका कब्ज़ा तो सरकार लेगी ही।
वैसे इमरान मसूद को पता होना चाहिए कि हैदराबाद से सांसद अकबरुद्दीन ओवैसी खुद कहते रहते हैं कि उत्तर प्रदेश में वक़्फ़ की 129 लाख में से 112 लाख संपत्तियों के कागज ही नहीं हैं वक़्फ़ बोर्ड के पास।
ऐसा कोई नहीं है जिसे वक़्फ़ बोर्ड ने ठगा नहीं हो, इसलिए 1000 चर्च भी इस बिल के समर्थन में खड़ी हैं,मजे की बात है 239 विपक्षी सांसदों में केवल 24 मुस्लिम है और 215 गैर मुस्लिम सांसद हैं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और विपक्ष को वक़्फ़ बोर्ड/कौंसिल में 2 मुस्लिम महिलाओं और 2 गैर मुस्लिमों को रखने से सबसे ज्यादा दर्द हो रहा है , महिलाओं को तो ये लोग कुछ समझते ही नहीं और जब गैर मुस्लिमों की संपत्ति हथियाने का काम करते हो तो उनका भी तो कोई प्रतिनिधि होना ही चाहिए।
मुस्लिम समुदाय के लोग भावनाओं में न बह कर एक बार ठंडे दिमाग से सोचें कि उन्हें क्या सच में वक़्फ़ बोर्ड से कुछ मिला है ?
इस बिल से मुस्लिमों का ही कल्याण होने वाला है और सबसे ज्यादा राष्ट्र की एकता और अखंडता को मजबूती मिलेगी।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)