लेखक-अरविंद जयतिलक
भारत और ब्रिटेन ने बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते (फ्री टेªेड एग्रीमेंट) पर आपसी सहमति की मुहर लगा दी है। गत दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन के पीएम सर कीर स्टार्मर के साथ फोन पर बातचीत के बाद इस समझौते का एलान करते हुए एक्स पर कहा कि ‘एक ऐतिहासिक मील के पत्थर के रुप में भारत और ब्रिटेन ने दोहरे अंशदान समझौते के साथ एक महत्वकांक्षी एवं पारस्परिक रुप से लाभकारी मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को सफलतापूर्वक संपन्न किया है।’ गौर करें तो यूरोपीय संघ से बाहर आने के बाद यह ब्रिटेन का सबसे अहम और बड़ा फ्री टेªड डील है। इस डील के उपरांत अब 99 फीसदी भारतीय निर्यात पर अब कोई आयात शुल्क नहीं लगेगा। वहीं भारत ब्रिटेन के टैरिफ को 150 फीसदी से घटाकर 75 फीसदी कर देगा। दसवें वर्ष तक घटकर यह 40 फीसदी हो जाएगा। ऑटोमेटिव टैरिफ 100 फीसदी से घटकर 10 फीसदी कर दिया जाएगा। अब भारत के टेक्सटाइल्स, समुद्री उत्पादों, लेदर, फुटवियर, खिलौनों, रत्न और जवाहरात जैसे श्रम वाले सेक्टरों को पहले से ज्यादा लाभ मिलेगा। गौर करें तो आज भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार तकरीबन चार लाख करोड़ रुपए से अधिक का है। ऐसे में प्रस्तावित टेªड समझौता मूर्त लेता है तो दोनों देशों को टैक्स में बड़ी राहत मिलेगी। मुक्त व्यापार करार के तहत व्यापार में दो भागीदार देश आपसी व्यापार वाले उत्पादों पर आयात शुल्क में अधिकतम कटौती करते हैं जिसका फायदा दोनों देशों को मिलता है। चूंकि भारत ने हमेशा से ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के देशों के साथ व्यापार के मामले में एक ‘मुख्य द्वार’ के रुप में देखा है ऐसे में मुक्त व्यापार समझौता न केवल ब्रिटेन बल्कि भारत के लिए भी फायदे का सौदा होगा। ब्रिटेन ने 2004 में भारत के साथ एक रणनीतिक साझेदारी शुरु की थी। इस रणनीतिक साझेदारी के तहत ब्रिटेन आतंकवाद, परमाणु गतिविधियों और नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत के साथ है। दोनों देशों द्वारा भरोसा जताया जा चुका है कि 2030 तक आपसी संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलना उनकी शीर्ष प्राथमिकता में होगा। दोनों देश स्वास्थ्य, शिक्षा में सहयोग के साथ मौजूदा द्विपक्षीय कारोबार को दोगुना करने और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर तालमेल बढ़ाने पर भी सहमति जता चुके हैं। अगर ब्रिटेन समझौते के साथ-साथ माइग्रेशन और मोबिलिटी पार्टनरशिप समझौते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाता हैं तो भारत के प्रशिक्षित लोगों को ब्रिटेन जाने की राह और आसान हो जाएगा। देखें तो बदलते वैश्विक परिदृश्य में आतंकवाद से निपटने, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन, पर्यावरण, रक्षा उपकरणों व अत्याधुनिक हथियारों का साझा उत्पादन तथा अफगानिस्तान के हालात जैसे कई अन्य मसलों पर दोनों देशों की सोच एक जैसी है। कई वैश्विक मंचों के जरिए दोनों देश इन मसलो पर अपने-अपने विचार साझा कर चुके हैं। अगर फ्री टेªड समझौते पर दोनों देश आगे बढ़ते हैं तो दोनों देशों के आर्थिक भागीदारी को नई ऊंचाई मिलेगी। इससे द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि होगी और बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलेगा। फ्री टेªड समझौते पर ब्रिटेन का भारत के साथ आना इसलिए भी फायदेमंद है कि आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। भारत ब्रिटेन को ही पछाड़कर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश बन चुका है। उम्मीद किया जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन सकता है। ऐसे में ब्र्रिटेन का भारत के साथ फ्री टेªड डील को लेकर गंभीर होना लाजिमी ही है। गौर करें तो 2004 के बाद से दोनों देशों के मध्य व्यापार एवं पूंजी निवेश में तीव्रता आयी है। जहां तक द्विपक्षीय व्यापार का सवाल है तो ब्रिटेन भारत का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी देश है। गौरतलब है कि दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार जो 2018-19 में 16.7 अरब डॉलर था, वह आज बढ़कर 40 अरब डॉलर यानी चार लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच चुका है। इससे दोनों देशों के तकरीबन 5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला है। गौर करें तो ब्रिटेन में लगभग 800 से अधिक भारतीय कंपनियां हैं जो आईटी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। इस संदर्भ में टाटा इंग्लैंड में नौकरियां उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी भारतीय कंपनी का दर्जा हासिल कर चुकी है। भारतीय कंपनियों का विदेशों में कुल निवेश 85 मिलियन अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया है। दूसरी ओर ब्रिटेन से भारत के बीपीओ क्षेत्र में आउटसोर्सिंग का काम भी बहुत ज्यादा आ रहा है। आउटसोर्सिंग दोनों देशों के लिए लाभप्रद है। एक ओर यह ब्रिटिश कंपनियों की लागत कम करता है वहीं लाखों शिक्षित भारतीयों के लिए रोजगार का अवसर उपलब्ध कराता है। ब्रिटेन में बड़ी तादाद में अनिवासी भारतीयों की मौजुदगी है। यह संख्या लगभग 2 मिलियन तक पहुंच चुकी है। भारतीय लोग दुनिया के अन्य देशों की तरह ब्रिटेन की आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को भी शानदार गति दे रहे हैं। पिछले दो दशकों में आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने कई तरह की पहल की है। नतीजा ब्रिटेन में परियोजनाओं की संख्या के मामले में भारत दूसरे सबसे बड़े निवेशकर्ता देश के रुप में उभरा है। दूसरी ओर ब्रिटेन भी वर्तमान भारत में कुल पूंजीनिवेश करने वाले देशों में बढ़त बनाए हुए है। आयात-निर्यात पर नजर डालें तो भारत मुख्य रुप से ब्रिटेन को तैयार माल एवं कृषि एव इससे संबंधित उत्पादों का निर्यात करता है। इसके अतिरिक्त वह अन्य सामान मसलन तैयार वस्त्र, इंजीनियरिंग सामान, चमड़े के वस्त्र व वस्तुएं, रसायन, सोने के आभुषण, जूते-चप्पल, समुद्री उत्पाद, चावल, खेल का सामान, चाय, ग्रेनाइट, जूट, दवाईयां इत्यादि का भी निर्यात करता है। जहां तक आयात का सवाल है तो भारत इंग्लैंड से मुख्यतः पूंजीगत सामान, निर्यात संबंधी वस्तुएं, तैयारशुदा माल, कच्चा माल व इससे संबंधित अन्य सामानों का आयात करता है। दोनों देश वैश्विक निर्धनता की समाप्ति, वैश्विक संगठनों में सुधार और आतंकवाद के खात्मा के लिए परस्पर मिलकर काम कर रहे हैं। भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में पाकिस्तान ब्रिटेन के निशाने पर है। पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक, सर्जिकल स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर का ब्रिटेन समर्थन कर चुका है। अच्छी बात है कि दोनों देश संयुक्त राष्ट्रª सुरक्षा परिषद में सुधारों पर भी सहमत हैं, जिससे कि 21 वीं शताब्दी की वास्तविकताओं को अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिबिम्बित किया जा सके। इसके अलावा दोनों देश अफगानिस्तान में स्थायित्व लाने और इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष जैसे अन्य विवादित मसलों के समाधान में भी एक जैसे विचार रखते हैं। उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ी है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन की यात्रा कर दोनों देशों के संबंधों को एक नई ऊंचाई दी है। तब उनकी तीन दिवसीय ब्रिटेन यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच तकरीबन 9 अरब डॉलर मूल्य के सौदे हुए। इसमें असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के अलावा वित्त, रक्षा, परमाणु उर्जा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य एवं साइबर सुरक्षा पर भी सहमति बनी थी। तब दोनों देशों ने रेलवे रुपया बांड जारी करने के अलावा आतंकवाद के मसले पर समान सहमति जतायी। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र संघ आतंकवाद की परिभाषा तय करे। तब इंडिया-यूके सीईओ फोरम में अपनी सरकार की ओर से उठाए गए आर्थिक सुधारों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिटिश कंपनियों को भारत के तमाम सेक्टरों में पैसा लगाने के लिए आह्नान किया। अच्छी बात है कि दोनों देश भरोसे की कसौटी पर खरा हैं और कोविड-19 के बुरे दौर में भी एकदूसरे का हाथ मजबूती से निभा चुके हैं। अब अगर दोनों देश फ्री टेªड डील पर कंधा जोड़ने को तैयार हैं तो यह पहल दोनों देशों के आर्थिक-सामरिक संबंधों को मिठास से भर देने वाला है।

(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)