लेखक-सुभाषचंद्र
कपिल सिब्बल का असर आ रहा नजर,फालतू सवाल जवाब करने से बेहतर है उनके खिलाफ रद्द कर दीजिए FIR “मीलॉर्ड”
गत 5 सितंबर को मीडिया में रिपोर्ट आई थी कि Editors’ Guild, की चीफ सीमा मुस्तफा और 3 अन्य पत्रकारों के खिलाफ खिलाफ FIR दर्ज की गई है जिसमें झूठी, गढ़ी हुई और प्रायोजित रिपोर्ट प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया है।
इस Guild की रिपोर्ट में इन चारों ने 3 मई को जलते हुए एक भवन को कुकी समुदाय के किसी व्यक्ति का घर बता कर झूठा प्रचार किया, इस बात की सच्चाई जाने बिना ऐसी रिपोर्ट देकर राज्य में और आग लगाने की कोशिश की वास्तव में वह घर Forest department के एक अधिकारी का था।
मैंने उसी दिन लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट अब इन लोगों की गिरफ़्तारी पर रोक लगाने से बचे,लेकिन अगले ही दिन 6 सितंबर को CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने उनकी गिरफ़्तारी पर 11 सितंबर तक के लिए रोक लगा दी।
उसके बाद एंट्री हो गई कपिल सिब्बल की और फिर 15 सितंबर तक रोक बढ़ाई गई , चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सवाल खड़ा कर दिया कि गिल्ड की Fact Finding team की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा कैसे दर्ज किया गया।
अब एक भवन को कुकी समुदाय का भवन बता कर रिपोर्ट देकर कुकी समुदाय को दंगे भड़काने के लिए उकसाने का काम Guild करेगा तो उस पर FIR की जगह क्या माला पहनाई जाएगी और मीलॉर्ड इसी सवाल से मामले को उलझाना चाहते हैं।
फिर सुनवाई हुई जिसके बाद मीलॉर्ड की उसी बेंच ने गिरफ़्तारी पर रोक 2 हफ्ते के लिए बढ़ा दी और सवाल वही खड़ा किया है शिकायतकर्ता से बेंच ने कि विभिन्न जातीय समुदायों के बीच शत्रुता बढ़ाने (promote) करने का आरोप कैसे लगाया गया इन पत्रकारों के खिलाफ यानी अब यह रोक “स्थाई” हो जाएगी जैसे वो पत्रकार किसी बेहद प्रभावशाली हस्तियों के “लाड़ले” हों?
या तो मीलॉर्ड समझना ही नहीं चाहते और या लोगों को बेवकूफ समझते हैं कि उन्हें कुछ नहीं समझ आता कि Guild की रिपोर्ट ने कुकी समुदाय भड़काने का काम किया ऐसा जलता हुआ भवन उनका बता कर जो उनका था ही नहीं और जो एक Forest अधिकारी का था।
मणिपुर मामले को राजनीतिक रूप देने में CJI चंद्रचूड़ के बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी जब उन्होंने सीधा मोदी सरकार को ललकारा था यह कह कर कि “सरकार कुछ कार्रवाई नहीं करेगी तो हम करेंगे” और CJI के आचरण की वजह से सरकार को संसद में No Confidence Motion भी झेलना पड़ा लेकिन आज वही CJI किन्हीं वजहों से दंगे की साजिश करने वाले पत्रकारों के पक्ष में झुके से हैं ऐसा जनमानस मे छवि बनती जा रही है?
CJI चंद्रचूड़ जी जहां एक तरफ FIR पर सवाल कर रहे हैं तो दूसरी तरफ इस केस को मणिपुर हाई कोर्ट की बजाय दिल्ली हाई कोर्ट में भेजने पर विचार कर रहे हैं।
ऐसा करना एक राज्य की न्यायपालिका की ईमानदारी और सक्षमता पर प्रश्न उठाने वाली बात है जो न्यायपालिका के लिए शुभ लक्षण नहीं है।
हमें सारे मामले में सिब्बल factor का असर साफ़ नज़र आ रहा है क्योंकि आजकल वह जो अदालत में चाहते है उन्हे मिल रहा है।
इधर CJI चंद्रचूड़ Editors’ Guild के पत्रकारों पर मेहरबान लग रहे हैं तो दूसरी तरफ उदयनिधि स्टालिन के “सनातन” को खत्म करने के बयान पर जल्दी सुनवाई से मना कर दिया। जब तक ऐसी बातों पर दंगे न हों और इसी बहाने सरकार को कोसने और उसके खिलाफ़ जनमानस को करने के लिए क्या विपक्ष के हाथों जाने अनजाने तो नही खेल रहा न्यायायिक क्षेत्र के कतिपय जिम्मेदार?
क्या यह आरोप सही था कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लोगों को बगावत करने की अपील की थी ?

(लेखक उच्चतम न्यायालय के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी मत हैं)