लेखक- डॉ. भूपेंद्र सिंह
म्यांमार के अराकान आर्मी ने कल बयान दिया है कि वह बंग्लादेश में हिंदुओं और बौद्धों के प्रति जारी अत्याचार को बहुत ध्यान से देख समझ रही है, और इसको देखते हुए वह अपने सीमा से व्यापार के रास्ते को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने जा रही है। बीते सप्ताह अराकान आर्मी ने म्यांमार की सेना को परास्त करके बंग्लादेश के 274 किमी लंबी सीमारेखा पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
अराकान आर्मी वहीं संगठन है जिसने कभी रोहिंग्याओं को देश निकाला देकर उनके घरों और बस्तियों में आग लगा दी थी। बंग्लादेश में फ़िलहाल 11 रोहिंग्या आतंकी संगठन चल रहे हैं जिसमें से RSA सबसे प्रमुख है। अराकान आर्मी ने कहा है कि वह रोहिंग्याओं के इन आतंकी संगठनों को बर्दाश्त नहीं करेगी। अराकान आर्मी ने उधर बांग्लादेश का बाह मरोड़ा ही था कि आवश्यक वस्तुओं के दाम को नियंत्रित करने के लिए बंग्लादेश की अवैध सरकार ने फिर से भारत से व्यापार जारी रखने का निर्णय लिया। फिलहाल दस लाख डॉलर की आलू जसौर में भेजी गई है। अभी भी यूनुस सरकार को पूरी तरह से समझ नहीं आ रहा है कि वह बिना भारत, चीन और म्यांमार के देश नहीं चला पायेंगे।
अराकान आर्मी चीन समर्थित आतंकी/ विद्रोही संगठन है। चीन बंग्लादेश में अमेरिका को बर्दाश्त नहीं करेगा और कुछ भी करके बंग्लादेश में अमेरिकी एजेंट को अस्थिर करता रहेगा। अराकान आर्मी और भारत की सेना के बीच काफ़ी समय पहले शांति समझौता हो चुका है, और गलवान समेत विभिन्न क्षेत्रों में जब चीन की सेनायें पीछे हटीं तो अराकान आर्मी को भी स्पष्ट हो गया कि उसे भारत से अब अनावश्यक संघर्ष नहीं करना चाहिए।
जैसी की जानकारियाँ आ रही हैं उसके अनुसार संभवतः अराकान आर्मी रोहिंग्याओं पर नए सिरे से अत्याचार करने के मूड में है ताकि वह न केवल बंग्लादेश के रोहिंग्या संगठनों से डील करने की स्थिति में आ सके, बल्कि रोहिंग्याओं को अपने क्षेत्र से विस्थापित कर सके। पिछली बार इन लोगों ने 8 लाख रोहिंग्याओ को भगाया था जबकि 2 लाख के घरों को आग के हवाले करके वापसी की संभावना भी समाप्त कर डाली। ये रोहिंग्या अब बंग्लादेश और भारत आ गए हैं। आशा की जा रही है कि यदि वहीं स्थितियां दोहरायी गई तो नए सिरे से शरणार्थी संकट आ सकता है जिसके लिए फिलहाल न बंग्लादेश तैयार है और न ही भारत। संभवतः भारत अराकान आर्मी को ऐसा न करने के लिए ही चर्चा करेगा।
यदि प्राप्त सूचनाओं को माना जाये तो अराकान आर्मी के बंग्लादेश की भी कुछ ज़मीन हड़प ली है, हालाँकि किसी बड़े मीडिया ग्रुप ने इसकी पुष्टि अभी तक नहीं की है। लेकिन अराकान आर्मी की चाभी जिन देशों से भरी जा रही है, उससे स्पष्ट है कि ये बंग्लादेश को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाले, और सोचने वाली बात यह भी है कि ये लोग पिछले तीन साल से अधिक समय से संघर्ष कर रहे थे लेकिन इन्हें कोई सफलता नहीं मिल पा रही थी और अचानक एक सप्ताह में म्यांमार की सेना और बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स दोनों को इन्होंने भगा दिया।
चीन और ईरान, दोनों को ख़तरा स्पष्ट दिख रहा है। मैंने पूर्व में भी लिखा है कि अमेरिका में ट्रम्प के आते ही रूस के लिए, भारत के लिए स्थितियां जहाँ अच्छी होने वाली हैं, वहीं ईरान और चीन के लिए समस्या खड़ी होने वाली है। ट्रम्प ने पहले ही कह दिया है कि वह ताइवान में अमेरिकी दूतावास शुरू करेंगे और वहाँ के लोगों के न्याय के पक्ष में हैं। दूसरी तरफ़ चीनी सामानों पर टैरिफ़ लगना तय हो चुका है। उधर ईरान भी हिजबुल्ला, हमास, इस्लामिक रेजिस्टेंस, हौती विद्रोहियों और अल बाशद की हार के साथ किनारे लग गया है। कोई शिया देश भी ऐसा नहीं है जो साथ देने की स्थिति में हो। इराक पहले से नॉनफंक्शनल स्टेट बन चुका है। सुन्नी देश अमेरिका का साथ किसी क़ीमत पर नहीं छोड़ने वाले। फिर मजबूरी में ईरान और चीन को साथ खड़ा होना होगा क्यूंकि चीन के साथ न जापान खड़ा होने वाला है, न कोरिया, और ट्रम्प के आते ही रूस किनारे हो जाएगा और भारत तो अंदर अंदर पहले से ही कमजोर चीन चाहता है।
बंग्लादेश में चीन किसी भी कीमत पर अमेरिका को बर्दाश्त नहीं कर सकता। बंग्लादेश की चाल, भारत के ख़िलाफ़ उतनी नहीं चली गई है जितनी चीन के ख़िलाफ़। यह चीन के ख़िलाफ़ एक महत्वपूर्ण कदम था। भारत इसलिए फसा है क्यूंकि हिंदू वहाँ रहते हैं। चीन, बंग्लादेश के वर्तमान सरकार को कभी भी स्थिर नहीं होने देगा। अराकान आर्मी का एक सप्ताह ही बंग्लादेश के लिए भारी पड़ रहा है, आगे का समय कैसा बीतेगा, समझना मुश्किल नहीं है।
(लेखक अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)