लेखक -सच्चिदानंद वर्मा
गुरु पूर्णिमा गुरु के प्रति श्रद्धा ,भक्ति व आदर प्रकट करने का दिन है। हालांकि शिष्यों के हृदय में गुरु प्रतिपल रहते हैं। लेकिन शिष्यों के लिए अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए यह दिन विशेष अवसर के रूप में आता है। जरूरी नहीं कि गुरु सशरीर ही हों, गुरु देह त्याग चुके भी हो सकते हैं । हम आपको याद दिला दें कि हम यहां शिक्षा गुरु की बात नहीं कर रहे हैं। उनके लिए शिक्षक दिवस है। यहां हम उस गुरु की बात कर रहे हैं जिन्होंने ईश्वर प्राप्त कर लिया है तथा जो अपने शिष्यों को आत्मसाक्षात्कार का मार्ग दिखाते हैं।
ईश्वर प्राप्ति अर्थात आत्म साक्षात्कार के मार्ग पर चलने वालों के लिए गुरु का मिलना जरूरी है,गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति कठिन ही नहीं दुर्लभ है तथा यह बात भी सत्य है कि ईश्वर की कृपा से ही गुरु की प्राप्ति होती है। बंगाल की महान महिला संत आनंदमयी मां कहती हैं कि जैसे हम किसी अधिकारी या मंत्री से मिलने के पूर्व उनके सचिव से संपर्क करते हैं वैसे ही ईश्वर प्राप्ति के लिए हम गुरु को साधते हैं। इसलिए गुरु का दर्जा काफी ऊंचा हेै। संत कबीर ने तो यहां तक कह दिया कि गुरु गाविंद दोउ खड़े काके लागूं पाय , बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताए। अथार्त कबीर ने गुरु का दर्जा ईश्वर से भी ऊंचा दिया है। कबीर ने यह भी कहा कि गुरु की महिमा वर्णनातीत है।इसे समुद्र को स्याही और धरती को कागज समझ कर भी नहीं लिखा जा सकता।लेकिन बिना शिष्य के गुरु भी अधूरा महसूस करता है। 19 वीं शताब्दी के महान संत रामकृष्ण परमहंस तो रो रो कर अपने शिष्यों को पुकारते थे कि कहां हो तुम लोग सामने क्यों नहीं आ रहे हो। मां काली ने उनसे कहा था कि तुम्हारे अनेक शिष्य होंगे जो समय के अनुसार मिलेंगे। लेकिन रामकृष्ण अपने शिष्यों से मिलने के लिए इतने आतुर थे कि विलंब होने पर वे रो रो कर पुकारते थे कि क्यों नहीं तुम लोग आ रहे हो।कालातंर में उनके अनेक शिष्य हुए जिनमें से एक विवेकानंद को दुनिया जानती है। 20वीं सदी के दक्षिण भारत के महान संत रमण महर्षि बताते हैं कि गुरु अपने शिष्य के ईश्वर प्राप्ति की राह में आने वाले बाधाओं को दूर कर देता है। गुरु ही परमात्मा है।गुरु दिखता है तो मनुष्य की तरह लेकिन वह ईश्वर सदृश्य होता है।
भारत के संतों के अनुसार गुरु धरती पर सिर्फ इसलिए अवतार लेते हैं ताकि वे मनुष्यों का उद्धार कर सकें।विशेषकर उन लोगों का जो जीवन मरण के दुष्चक्र से छुटकारा पाना चाहते हैं।गुरु उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं तथा भवसागर पार करा देते हैं।रामाश्रम सत्संग के परमगुरु श्रीकृष्णलाल ने तो अपने शिष्य व उत्तराधिकारी डॉ करतार सिंह की आत्मउन्नति के लिए खुद ही साधना किए थे। गुरु जाति , संप्रदाय,धर्म व देश तक सीमित नहीं होते हैं। वे पूरे संसार के लिए होते हैं। असल में , गुरु मनुष्य के रूप में साक्षात ईश्वर ही होते हैं। वो जो बोलते हैं वह सब ईश्वर उनसे बुलवाते हैं। हमें गुरु में पूर्ण निष्ठा व समर्पण होना चाहिए। जब हम गुरु में समस्वर हो जाते हैं तो वे हमारे सारे कर्म अपने ऊपर ले लेते हैं। फिर वे हमारे जीवन को अपनी योजनानुसार चलाते हैं। गुरु में तीन गुण होते हैं। वे सर्वज्ञ ,सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक होते हैं। भगवान महावीर हो या महात्मा बु़द्ध सभी ने अपने शिष्यों को सद्मार्ग पर चलना सिखाया था। हमारे गुरु परमहंस योगानंद ने अपनी विश्व विख्यात पुस्तक योगी कथामृत में लिखते हैं कि महावतार बाबाजी ने अपने शिष्य योगावतार लाहिड़ी महाशय से बोला था कि पश्चिम देशों के अनके मुमुक्षुओं के ज्ञान स्पंदन बाढ़ की भांति मेरी ओर आते रहते हैं। मैं अमेरिका और यूरोप में संत बनने योग्य अनेक लोगों को देख रहा हूं,जिन्हें जगाए जाने भर की देर है। उन्होंने लाहिड़ी महाशय द्वारा सारे संसार को क्रिया योग दिया जिसके द्वारा ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं।इसी क्रिया योग के प्रचार प्रसार के लिए महावतार बाबाजी ने परमहंस योगानंद को चुना था जिनको प्रशिक्षित करने का जिम्मा महाअवतार बाबाजी ने ज्ञानावतार स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी को दिया था।परमहंस योगानंद ने गुरु शिष्य परंपरा को आगे बढाया और इसका परिणाम है कि आज आध्यात्म के क्षेत्र में तरक्की के लिए पूरा विश्व भारत की ओर आकर्षित हो रहा है। पूरे विश्व में परमहंस योगानंद के अनुयायी हैं जो उनके बताए मार्ग राजयोग पर चल कर ईश्वरानुभूति में आनंदित हैं।उन्होंने पूरे संसार को ज्ञान का भंडार दिया है।अनेक पुस्तक व धर्मग्रंथों पर भाष्य लिखा है। ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक भक्तों के लिए एक विशेष पाठ्यमाला भी है। परमहंस योगानंद ने भारत में योगदा सत्संग सोसायटी व अमेरिका में सेल्फ रिएलाइजेशन फेलोशिप स्थापित कर अपने शिष्यों के लिए अनेक आश्रम व सेंटर खोल दिए थे। जहां आत्मसाक्षात्कार के लिए आतुर उनके अनेक शिष्य प्रशिक्षित हो रहे हैं।गुरु पूर्णिमा ऐसे ही गुरुओं के प्रति प्रेम, भक्ति व कृतज्ञता को प्रकट करने के अवसर के रूप में आता है।

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार हैं )