लेखक -ओम लवानिया
कभी-कभी सिनेमा में लेखक पहले अपने किरदार को क्रिएट करता है और लॉक कर लेता है। उसके बाद उसकी कहानी और अन्य किरदारों को जोड़ता है।
दो साल पहले मैंने अपनी पसंदीदा फ्रेंचाइजी पाइरेट्स ऑफ़ द कैरेबियन की मेकिंग हिस्ट्री पर लिखा था कि कैसे मंकी वीडियो गेम से लाइव एक्शन एडवेंचर फ़िल्म बनाई गई। यूँ तो इसके हर किरदार पर मेहनत की गई थी किंतु कप्तान जैक स्पैरो पर कुछ अधिक थी। बल्कि इसके चयन में भी सतर्कता बरती गई और जॉनी डेप ने कैप्टन जैक से ऐसी मुलाकात की, कि सबका चहेता बन गया।
जब मेकर्स ने पाइरेट्स को रिबूट और जॉनी डेप के साथ डील रद्द की थी तो सोशल मीडिया में ट्रेंड रहा था कि विथ आउट डेप, नो जैक, सॉरी कप्तान जैक। हालांकि अभी तक कोई अपडेट नहीं है।
पुष्पा को देखकर कप्तान जैक स्पैरो का मैलापन याद आता है। काफी समानता भी है। अर्थात् चतुराई, या कहे बुद्धिमता, अपने क्षेत्र में कप्तान है।
इन किरदारों ने अपनी कहानियों से दर्शकों को थ्रिल दिया है। अभिनेता, अपने अपने किरदार में घुसकर स्वयं को भूल गए है और किरदारों को बड़ा कर दिए है। फिल्मी ट्रीटमेंट दर्शकों की माँग के अनुरूप रखा गया है। वर्षों से नहाए नहीं हो, तिस पर जैक तो पानी में रहता है।
कैप्टेन जैक के लिए दीवानपन, चौथे भाग के लिए अहमदाबाद तक खींच ले गया था कि तीन डी में देखेंगे। तो वही, पुष्पा ने भी ऐसा क्रेज रखा है किंतु इतना लंबा ट्रैवल नहीं करवाया था।
जुनूनी फ़िल्म मेकर्स किसी सोच से प्रभावित होकर किरदार गढ़ देते है और उसे कहानी देकर फ्रेंचाइजी खड़ी कर देते है। पाइरेट्स ऑफ़ में भी लेखक ने सुपरनेचुरल थीम का सहारा लिया है। कप्तान साहब टापू से जिंदा लौटकर पहुंचते है।
बेशक मैंने कहानियों की तुलना नहीं है लेकिन किरदारों की तुलना मेरे हिसाब से सटीक बैठती है, आप क्या सोचते है।
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं)