लेखक- ओम लवानिया
भारत अतातायी लुटेरों से लड़ता आया है और इतिहास में है कि सदैव सहिष्णु नीति अपनाई है किंतु अधर्मियों को अच्छे से पाठ पढ़ाया है। भारत में पहले मुगल, फिर ब्रिटिश आए और दोनों ने खूब लूटपाट की और निर्मम नरसंहार किया गया। किंतु भारत के वीर सपूतों ने लंबे संघर्ष से उन्हें खदेड़ कर भारत से निकाला। मुगल और ब्रिटिश ने भारत की डेमोग्राफ़ी को बदलने की पुरजोर कोशिशें की थी। काफ़ी हद तक सफल रहें है।
मुगलों के समक्ष छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, तो गौरी को पृथ्वीराज चौहान ने सबक सिखाया। ऐसे ही ब्रिटिश शासन को मंगल पांडे की क्रांति ने भयभीत किया था और इसी ने भारतीय युवाओं के हृदय में स्वतंत्रता की नींव रखी थी। हालांकि जब इसका अंतिम दौर आया था तो एक सिस्टम ने पूरी क्रांति को टेक ओवर कर लिया था और स्वयं हीरो बन गए। बाक़ी वीर योद्धाओं को गुमनामी में धकेल दिया।
खैर अब मुख्य मुद्दे पर आते है। हिंदी सिनेमा यानी बॉलीवुड मुगल और ब्रितानी सोच में बंदी है। अर्थात मुगल अकबर महान है, वही, वेस्टर्न कल्चर सिनेमाई कंटेंट से यूथ की जीवन शैली को बदलने का प्रयास हुआ है। जो डेमोग्राफिक चेंज मुगलों व गोरों ने किया था बॉलीवुड ने शत-प्रतिशत इंप्लीमेंट किया है। बल्कि अपना सिस्टम बनाया है जो पूरे फार्मूला को लागू करता है। इसमें भारतीयता का अपमान सर्वप्रथम है।
बाहुबली फ़िल्म जो थी न, मंगल पांडे की थीम पर सिनेमाई क्रांति थी। इससे पूरा बॉलीवुड सिस्टम सहम गया था और भय में था। इसके बाद केजीएफ, आरआरआर, कांतारा और अब पुष्पा बहुत बड़े बदलाव का मूवमेंट है। इससे बहुसंख्यक दर्शक कनेक्टिव है और खुश है। बेशक, केजीएफ और पुष्पा में क्राइम है। परंतु पुष्पा में महिला अपमान पर काली माँ का रौद्र रूप दिखाई देगा। साउथ ब्लॉक के तेलुगू और कन्नड़, बॉलीवुड से मुगलिया व ब्रितानी सोच को स्वतंत्र करने की क्रांति छेड़ दी है। ताकि भारतीय सिनेमा अपने मूल से पुनः जुड़ सके।
इनकी क्रांति के साथ बहुसंख्यक दर्शक कनेक्ट कर रहा है तो इसके पीछे भारतीय सोच और उसका भव्य प्रदर्शन है। बाहुबली में शिव तांडव स्त्रोत, कांतारा में लोकल देव, सलार और पुष्पा में महिला सम्मान में काली माँ का तांडव बड़े स्केल पर दिखाया है। आरआरआर में राम अवतार को जोड़ा गया और भव्यता दी।
अकबर की महानता क्यों देखें, हम अपने श्रीराम की मर्यादा देखेंगे। काली माँ का तांडव देखेंगे।
बाहुबली, केजीएफ, कांतारा और पुष्पा से बॉलीवुड सिस्टम काँप गया है। नो डाउट, कई दूसरी क्रांति फ्लॉप भी हुई है लेकिन बाहुबली में जिस चिंगारी को भड़काया था उसे कम नहीं पड़ने दिया है। पुष्पा ने डबल हवा दे दी है। बॉलीवुड के भीतर बैठें लोग, सिस्टम के आगे बेबस है। कुछ बोलने की हिम्मत नहीं है। इनसे नहीं हो रहा है तो साउथ इंसेटिव ले रहा है और अच्छे से ले रहा है। भारतीय सिनेमा से मुग़लिया व ब्रितानी सोच खत्म हो सके। जो भारत का है उसे भारत में रहने दें। दूसरे की संस्कृति को काहे लें।
भले आप को साउथ का पैन भारत आना हल्का लगे, किंतु मुझे स्वतंत्रता की क्रांति प्रतीत होती है और इसे स्वतंत्र करवाने का भरपूर प्रयास है। आख़िरी सुपरस्टार वाले वक्तव्य के अहंकार पर बहुत करारा तमाचा है पुष्पा, सिस्टम क्लीन हो।
बॉलीवुड ट्रेड पंडितों को देखिए, कैसे पुष्पा से गदगद है। क्योंकि उन्हें असल भारतीय सिनेमा दिखाई दे रहा है। जिसे बॉलीवुड ने मेट्रो और वेस्टर्न कल्चर में क़ैद कर रखा है।
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं)