लेखक~मुकेश सेठ
महाराष्ट्र बीजेपी के नेताओं की आक्रामकता से उद्धव की स्थिति हो रही असहज तो शिवसेना प्रमुख व मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे भी कूद पड़े हैं वीर सावरकर के सम्मान में
♂÷महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,सम्पादक,लेखक वीर सावरकर जी का कुछ वर्षों से जिस तरह पूर्व काँग्रेस अध्यक्ष व केरल राज्य के वायनाड लोकसभा क्षेत्र के सांसद राहुल गाँधी और उनकी पार्टी काँग्रेस आये दिन जिस तरह से अपमान की हद तक असम्मान कर रही है वह अब राहुल गाँधी ही नही बल्कि काँग्रेस के लिए आत्मघाती राजनीतिक क़दम साबित न हो जाये।
विदित हो कि काफ़ी समय से राहुल गाँधी अक्सर दोहराते रहे हैं कि वह”सावरकर नही,गाँधी हैं, “वह माफ़ीवीर नही राहुल गाँधी हैं”।
इस तरह के बयान उन्होंने फ़िर से कई बार दिए जब पिछले दिनों सूरत के सेशन्स कोर्ट द्वारा पिछड़ी जातियों वाले “मोदी”सरनेम वाले लोगों को निशाने पर रखते कुछेक वर्ष पूर्व दक्षिण के चुनावी सभा में कहने पर पूर्व विधायक पुरणेश मोदी द्वारा दायर की गई याचिका पर दो साल की सज़ा सुनाई।सज़ा सुनाने से पहले कोर्ट नें अपराधसिद्ध राहुल गाँधी से इस बयान के लिए माफ़ी माँगने का एक मौका दिया था।
किन्तु सांसद व काँग्रेस नेता ने कोर्ट में माफ़ी नही माँगी बल्कि बाहर उपरोक्त बयान देकर देश की राजनीति में तूफ़ान अवश्य खड़ा कर दिया।
उधर कोर्ट के द्वारा दो साल के सज़ायाफ़्ता घोषित होते ही उनकी लोकसभा की सदस्यता स्वमेव ही रद्द हो गयी है।

राहुल गांधी के समर्थन में कांग्रेसियों द्वारा वीर सावरकर के प्रति फ़ेसबुक, ट्विटर व सोशल मीडिया पर अशोभनीय तरीके से पोस्ट करने की बाढ़ ला दी गयी।
काँग्रेस के प्रवक्ताओं ने भी तमाम तरह से राहुल गाँधी को सही ठहराने की कोशिश की कि वह माफ़ी नही मांगेंगे।
उधर भारतीय जनता पार्टी नें देशभर में वीर सावरकर के प्रति राहुल गाँधी व काँग्रेस द्वारा की जा रही बयानबाजी को जबरदस्त मुद्दा बनाते हुए काँग्रेस और उनके नेता राहुल गाँधी और उनके राजनीतिक सहयोगियों के बीच भी वीर सावरकर के मुद्दे पर गहरे मतभेद को उजागिर कर राहुल गाँधी और काँग्रेस को घेरने में कामयाब होती दिख रही है।
यह बात सत्य है कि आने वाले चुनावों में महाराष्ट्र को छोड़कर शायद ही इसका बहुत बड़ा राजनीतिक लाभ बीजेपी न उठा पाए किन्तु पहले से ही कृशकाय होती जा रही काँग्रेस के लिए इतना भी नुकसान बड़ा साबित हो सकता है।
वीर सावरकर के गृह प्रदेश महाराष्ट्र में काँग्रेस व एनसीपी की सहयोगी बनकर ढाई साल तक एमवीए सरकार में मुख्यमंत्री बनकर सरकार चलाने वाले उद्धव ठाकरे भले ही अपनी खिसकती राजनीतिक ज़मीन बचाने के लिए वीर सावरकर के समर्थन में बयान दिए हो किन्तु कभी वीर सावरकर के लिए भारत रत्न की मांग करने वाली उद्धव ठाकरे की शिवसेना इन सब के बावजूद भी काँग्रेस एनसीपी गठबंधन में बनी रहने से उनकी बयानबाज़ी को सिर्फ़ ज़ुबानी जमाखर्च सावरकर समर्थक महाराष्ट्र वासी मान रहें हैं।
उधर महाराष्ट्र भारतीय जनता पार्टी नें इस मुद्दे पर राहुल गाँधी, काँग्रेस के साथ ही जमकर उद्धव ठाकरे व उनकी पार्टी उद्धव बाला साहेब ठाकरे पर हमलावर होकर जनता के बीच जाकर रैलियां निकाल रही है।
सूबे भर में ख़ासकर मुम्बई में बीजेपी”आम्ही सावरकर”वाले पोस्टर्स से पाट रखे हैं।
उधर महाराष्ट्र कोटे के सभी केंद्रीय मंत्री, राज्यमंत्री, सभी बीजेपी सांसद,उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस,प्रदेश अध्यक्ष व विधायक चंद्रशेखर बावनकुले, मुम्बई अध्यक्ष व विधायक आशीष शेलार समेत महाराष्ट्र सरकार में शामिल सभी मंत्रियों,बड़े नेताओं समेत अदना बीजेपी कार्यकर्ता भी अपनी डीपी मेंवीर सावरकर की फ़ोटो में”मी सावरकर, आम्ही सावरकर”लगाए हुए हैं।केंद्रीय मंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आदि मन्त्रीगण,वरिष्ठ नेता राहुल गाँधी,काँग्रेस के ऊपर सियासी तीर छोड़ने के साथ ही उद्धव ठाकरे पर जी जान से हमलावर है।उसकी रणनीति है कि किसी तरह से महाविकास अघाड़ी में इस मुद्दे को लेकर फूट पड़े,जिससे उसे आगामी महीनों में होने वाले बीएमसी चुनाव में सत्ता हासिल हो सके।
उधर शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिन्दे भी अपने मंत्रियों,विधायकों, सांसदों के साथ वीर सावरकर के सम्मान को लेकर सड़को पर उतर पड़े हैं और जमकर उद्धव ठाकरे पर निशाना साध रहे हैं।
हालांकि एनसीपी प्रमुख शरद पवार नें सावरकर मुद्दे पर राहुल गांधी और काँग्रेस को अपने नपे तुले अंदाज में दूर रहने की सलाह दी है किन्तु जब ज़ुबान से बयान निकल चुका है तो उद्धव ठाकरे, एनसीपी व काँग्रेस का कितना नुकसान करेंगी यह तो आने वाले बीएमसी के साथ महाराष्ट्र भर के नगर निकाय चुनाव के परिणाम स्पष्ट करेंगे।
याद रहना चाहिए कि राहुल गांधी,प्रियंका वाड्रा गांधी समेत काँग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को “चौकीदार चोर है”का चुनावी बयानबाजी और नारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद मोदी से माफ़ी मांग चुके हैं।इसी तरह फायटर प्लेन रॉफेल के सौदे में बड़े घोटाले होने की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट जब राहुल व उनकी काँग्रेस पहुँची थी तब भी सुप्रीम कोर्ट ने याचिका निरस्त करते हुए जबरदस्त फटकार लगाते हुए चेतावनी दी थी।
उधर माफ़ी नही मांगने और देश मे मोदी को तानाशाह से तुलना कर सत्य,न्याय व देश मे लोकतंत्र बचाने को निकले कहने वाले राहुल गाँधी और उनकी दिग्गज वकीलों की टीम सूरत के सेशन्स कोर्ट में सांसदी जाने से लेकर कई बिंदुओं पर पुनर्विचार करने की कोर्ट से गुहार लगाई है।राहुल गांधी और काँग्रेस के द्वारा वीर सावरकर के मुद्दे पर उल्टा बाँस बरेली चला वाली कहावत सिद्ध होने और पार्टी के बैक फुट पर जाने से राहुल गांधी और कांग्रेसियों द्वारा सोशल मीडिया पर किये गए धड़ाधड़ वीर सावरकर के विरुद्ध स्लोगन, बयानबाजी को डिलीट किया जा रहा है।
राहुल गांधी,प्रियंका गांधी और कांग्रेसियों को इतिहास के पन्ने पलटने चाहिए कि चाहे वह काँग्रेस के निर्विवाद दिग्गज नेता व अध्यक्ष और आजाद हिंद फ़ौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी,काँग्रेस अध्यक्ष व स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री व राहुल प्रियंका के परनाना पण्डित जवाहर नेहरूजी रहे हो,प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी रहे हो या फ़िर राहुल गांधी की दादी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी रही हो।देश की दिशा और दशा बदलने में प्रभावी भूमिका निभाने वाली इन शख्शियतों ने भी विचारधराओ में मत भिन्नता होने के बाद वीर सावरकर के सम्मान में कभी कमी नही की और सदा उनको भारत का सपूत ही कहा।
राहुल गाँधी और आज के कांग्रेसियों को वीर सावरकर जी का देश की स्वतंत्रता में दिए गए अद्भुत व अतुलनीय योगदान को पढ़ना और समझना चाहिए।ब्रिटिश राज में दुनियां के वह ऐसे एकलौते क्रांतिकारी थे जिनकी दहशत में बर्तानिया हुकूमत ने दो जन्मों का कारावास सुनाते हुए काले पानी की कठोरतम सज़ा दी थी।अंडमान निकोबार द्वीप समूह में बसे और बने सेल्युलर जेल में उन पर सजा के दौरान ज़ुल्म की इंतेहा की जाती रही।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 1964 में जब सावरकर बहुत बीमार हुए थे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने केंद्र सरकार की तरफ से उनके इलाज के लिए 39 सौ रुपए जारी किए थे। बाद में एक हजार रुपए की मदद और केंद्र की कांग्रेस सरकार की ओर से भेजी गई थी। उस समय महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की सरकार थी, जिसने सितंबर 1964 में सावरकर के लिए तीन रुपए महीने का प्रावधान किया। यह रकम उनको फरवरी 1966 में उनके निधन तक मिलती रही थी।
इसी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1970 में वीर सावरकर की याद में डाक टिकट जारी किया था। हालांकि यह भी तथ्य है कि वे सावरकर को पसंद नहीं करती थीं लेकिन उन्होंने पार्टी के नेताओं और अन्य सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सलाह पर सावरकर का सम्मान किया। राहुल गांधी को ये ऐतिहासिक तथ्य भी याद रखने चाहिए।
कुल मिलाकर यह कहना समयोचित होगा कि काँग्रेस व उनके नेताओँ पर राहु शनि की कुदृष्टि वर्षो से उसी दौरान पड़ चुकी है जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आई है।देखा जा रहा है कि मुद्दाविहीन विपक्ष ख़ासकर काँग्रेस व उसके नेता राहुल गांधी पोलिटिकल माईलेज के लिए जीतोड़ मेहनत देश से लेकर विदेशों तक मे करते हैं किंतु राहुल गाँधी की बयानबाजी कहें या फिर उनके सलाहकारों की मति मारी कहे या यह भी कहना गलत नही होगा कि एक गुट है जो बड़े नेता के इशारे पर राहुल गाँधी को निपटा देना चाहता हो।
कुछेक महीने पहले भारी शोरशराबे के साथ राहुल गांधी ने देश मे केरल से लेकर तमाम प्रदेशों तक हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर काँग्रेस में प्राण फूंकने की कोशिश की।फ़िर लंदन जाते हैं वहाँ पर भारत के प्रधानमंत्री मोदी को तानाशाह कहते हुए देश मे लोकतंत्र खत्म होने की बात कहते हैं, चुनाव आयोग,न्यायपालिका पर उंगली उठाते हैं और साथ अमेरिका योरोप से भारत मे लोकतंत्र की बहाली करवाने में विदेशी दख़ल की गुहार लगाते हैं।देश भर में इसकी कड़ी आलोचना हुई कि जो चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता के लिए संयुक्ता राष्ट्र संघ प्रशंसा करते नही अघाता, न्यायपालिका निडर रूप से सक्रिय है और सरकार जनरूप और संविधान से चल रही है उस पर ऐसे बयान देकर राहुल गांधी ने ख़ुद की पदयात्रा का लाभ लेकर पार्टी में आदमक़द हो रहे थे कि उनके समेत काँग्रेस को ज़मीन सूंघना पड़ा।ऐसे में उस बस विदेशी यात्रा व राहुल की बयानबाजी को भरपूर मुद्दा बनाकर कांग्रेस की छीछालेदर करने में जुटी बीजेपी को राहुल गांधी और काँग्रेस ने एक बार फ़िर वीर सावरकर के प्रति असम्मानजनक बयानबाजी से बीजेपी को फ्रंटफुट पर खेलने का जबरदस्त अवसर मुहैया कराया है।

÷लेखक तहलका न्यूज़ के ऑथर व सम्पादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं÷