लेखक – सुभाष चन्द्र
कल यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष Ursula von der Leyen दो दिन के भारत दौरे पर आई हैं और उनकी यात्रा का मकसद वैश्विक आर्थिक चिंताओं को ध्यान में रख कर व्यापार, निवेश और Clean Energy में सहयोग को बढ़ाना है ,EU भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता भी चाहता है जिसके 2025 के अंत तक होने की बात कही जा रही है।
Ursula ने कहा है कि EU के लिए भारत एक भरोसेमंद मित्र है और रणनीतिक साथी है (Strategic Ally) भारत उनके साथ वार्ता में मणिपुर का मुद्दा उठाए जाने पर खरी खरी सुनाने के लिए तैयार है , Ursula ने कहा कि यूरोप को संघर्षों के युग में भरोसेमंद मित्रों की आवश्यकता है ।Ursula मणिपुर न भी उठाए, तब भी भारत को उन्हें साफ़ कह देना चाहिए कि हमारे आंतरिक मामलों में कोई दखल सहन नहीं होगी।
Ursula को यूरोप के खपती Human Rights Activists की बातों को अनदेखा करना होगा। Associate EU Director at Human Rights watch Claudio Francavilla ने Ursula की यात्रा के मौके पर कहा है कि उन्हें भारत में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाना चाहिए और EU को इस बारे में जोर शोर से आवाज़ उठानी चाहिए जब मोदी “असहमति और अल्पसंख्यकों” का दमन कर रहे हैं।
EU संसद ने 11 जुलाई, 2023 को प्रस्ताव पारित कर मणिपुर मामले पर भारत की निंदा की थी जो भारत के आंतरिक मामलों में सीधे हस्तक्षेप था – Ursula यदि भारत को भरोसेमंद मित्र मानती हैं तो उन्हें अपनी यात्रा के दौरान प्रतिज्ञा करनी होगी कि यूरोपीय देशों की धरती भारत विरोध के लिए उपयोग नहीं की जाएगी।
हमें अल्पसंख्यकों पर ज्ञान देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिन अल्पसंख्यकों की बात वहां के मानवाधिकारों के ढोंगी करते हैं, वे आज यूरोप के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं।जर्मनी, ब्रिटेन भुगत रहा है और फ्रांस को जब मर्जी आग के हवाले कर दिया जाता है ।
मणिपुर या भारत के किसी भी प्रांत के मामलों से Ursula को EU को अलग रखना प्राथमिकता होनी चाहिए।मुक्त व्यापार समझौते के यह एक आधार बन सकता है अन्यथा ऐसे समझौते का कोई मतलब नहीं है ,दरअसल अधिकांश यूरोपीय देशों की हालत ख़राब है और ये सभी NATO के सदस्य है जिन्हें राष्ट्रपति ट्रंप ने झटका दिया हुआ है क्योंकि EU के कई देश NATO में अपना योगदान नहीं दे रहे लेकिन यूक्रेन को लेकर अमेरिका का विरोध भी करते हैं परंतु NATO में रहकर अमेरिका की “छत्रछाया” में भी चाहते हैं।
EU के साथ संबंध तब ही सार्थक हो सकते हैं जब वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देना बंद करे लेकिन ऐसा करना EU के लिए संभव नहीं लगता क्योंकि वह दिखावटी मानवाधिकारों के जाल में स्वयं ऐसा फंसा है कि कब इस्लामिक शक्तियां उस पर हावी हो जाएंगी, उसे पता भी नहीं चलेगा।
EU को एक तरह से 2 दिन पहले इटली की प्रधानमंत्री Giorgia Meloni ने कहा है कि “मैं, ट्रंप और मोदी बात करते हैं तो वामपंथी इसे लोकतंत्र को खतरा बताया जाता है लेकिन जब
वामपंथी नेताओं के बीच सहयोग होता है, तो वामपंथी उसकी प्रशंसा करते हैं।
ट्रंप की जीत से वामपंथियों की चिड़चिड़ाहट अब भय में बदल गई है केवल इसलिए नहीं कि दक्षिणपंथी हर जगह जीत रहे हैं बल्कि इसलिए कि वे अब वैश्विक स्तर पर सहयोग कर रहे हैं।
पिछली सदी के अंत में जब बिल क्लिंटन ने टोनी ब्लेयर के साथ जब “वैश्विक वामपंथी उदारवादी नेटवर्क” बनाया तो उन्हें “अनुभवी एवं प्रतिष्ठित स्टेट्समैन” कहा गया लेकिन मुझे, ट्रंप, अजेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली और मोदी के मिलकर बात करने को लोकतंत्र के लिए खतरा बनता जा रहा है”।
Ursula को EU में भारत विरोधी प्रचार होता देख कर कुछ इटली की पीएम जॉर्ज Meloni से सीखना चाहिए
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)