★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
√ “अंतर्राष्ट्रीय सेप्सिस दिवस” पर KGMU में आयुष विभाग के आयुर्वेद विशेषज्ञ डा देवेश कुमार श्रीवास्तव” ने आयुर्वेद पर दिया व्याख्यान
√ डॉ श्रीवास्तव ने कहा उनके द्वारा विकसित रिलैक्सेशन थिरैपी चिकित्सा से जीर्ण शीर्ण रोगी भी हो जाते हैं सब्सिडीऔर यूपी सरकार के दो विभागों में इस थिरैपी के द्वारा होती है चिकित्सा
♂÷ गत दिवस उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित KGMU में “अंतर्राष्ट्रीय सेप्सिस दिवस” पर सेमिनार का अयोजन सम्पन्न हुआ।
जिसमे KGMU के पल्मोनरी क्रिटिकल केयर के हेड प्रोफेसर वेद प्रकाश गुप्ता की अध्यक्षता में चिकित्सा जगत के तमाम प्रख्यात विशेषज्ञ हस्तियों ने अपने व्याख्यान दिए कि किस तरह से गम्भीर,जानलेवा बीमारियों से बचा जा सके और इन बीमारियों के होने पर रोगग्रस्त लोंगो के इलाज़ के लिए क्या किया जाना चाहिये।
इस सेमिनार में विशिष्ट अतिथि के रूप मे आयुष विभाग उत्तर प्रदेश सरकार व सुश्रुत आरोग्यधाम,लखनऊ के फाउंडर के पूर्व वरिष्ठ आयुर्वेद पंचकर्म रिलैक्सेशन थिरेपी के विशेषज्ञ डा देवेश कुमार श्रीवास्तव ने “सेप्सिस बचाव के लिए आयुर्वेद की क्या भूमिका है” विषय पर व्याख्यान दिया।
इस मौके पर वाइस चांसलर सोनिया नित्यानंद ,प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद समेत प्रदेश भर से आमन्त्रित प्रोफेसर, डाक्टर मौजूद रहे।
व्याख्यान में डॉ. देवेश श्रीवास्तव ने बताया कि एलोपैथ के साथ-साथ आयुर्वेद, पंचकर्म, योग, रिलैक्सेशन थिरेपी के उपचार दैनिक दिनचर्या, रहन सहन, खान पान,घरेलू मसाले, भोजन, आसपास उपलब्ध जड़ी बूटियों व आयुर्वेद के तीन स्तंभ आहार,निद्रा,ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर सेप्सिस व कोई भी जीर्ण शीर्ण रोग से लोगों को बचाने के साथ साथ मृत्युदर को भी घटाया जा सकता है। आयुर्वेद एक संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है जिसके माध्यम से शरीर के रोगों को जड़ से ठीक किया जा सकता है।
डा. देवेश ने बताया कि सेप्सिस से बचाव के लिए सभी अस्पतालों व कर्मचारियों की साफ सफाई कोरोना में जैसी होती थी ठीक उसी तरह से साफ़ सफ़ाई होने से ही सेप्सिस से बचा जा सकता है, सेप्सिस से बचने के लिए सबसे जरूरी उपाय यह है कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाय,और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति प्रातः उठकर 3,4 गिलास पानी पीना, 5-5 नीम तुलसी की पत्ती का सेवन करना,5 किलोमीटर नित्य भ्रमण व दौड़, काली चाय, एक इलायची, 7 कालीमिर्च, 1लौंग, 1अंगुल डालचीनी,थोड़ी सी जावित्री डेढ़ कप पानी में उबाल कर छानने के पश्चात नींबू का रस डाल कर पिए,खाने में हरी साग सब्जियों का सेवन करे, खाने को 32 बार चबा-चबा कर खाए और सबसे जरूरी यह है की वर्ष में एक बार पंचकर्म जरूर कराना चाहिए कि जिससे गम्भीर रोगों से बचकर स्वस्थ जीवन जिया जा सके।
डॉ. श्रीवास्तव ने आगे कहा कि यह संक्रमण के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया के कारण उत्पन्न होने वाली एक चिकित्सीय आपात स्थिति है, यह जीवन के लिए खतरनाक स्थिति हो सकती है। सेप्सिस के दौरान रक्त का थक्का जमने और सूजन के कारण अंगों और महत्वपूर्ण अंगों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है जिससे अंग ठीक से काम करना बन्द करते जाते है और यहां तक कि पेशेंट की मृत्यु भी हो सकती है।
शरीर में सेप्सिस का सबसे आम कारण जीवाणु संक्रमण है। इसे रक्त विषाक्तता या सेप्टीसीमिया भी कहा जाता है।
रिलैक्सेशन थिरैपी चिकित्सा के आविष्कारक डॉ. देवेश ने आगे जानकारी देते हुए सम्बोधन जारी रखा कि लंबे समय से बीमार पड़े व्यक्ति को रिलैक्ससेशन थिरैपी, आयुर्वेद, पंचकर्म पद्धति से ठीक जा सकता है,इस चिकित्सा से जोड़ों के दर्द से पीड़ित व्यक्ति कुछ ही दिनो में चलने लायक बन सकता है,हार्ट ब्लाकेज, किडनी, लीवर,आंतों आदि सभी रोगों को ठीक कर व्यक्ति को पूर्ण स्वस्थ किया जा सकता हैं।
डा देवेश कुमार श्रीवास्तव ने जानकारी दी कि”रिलैक्सेशन थिरैपी चिकित्सा पद्धति”को उत्तर प्रदेश सरकार के दो विभागो को उन्होंने निशुल्क समर्पित किया है जिससे मरीज़ों का सफ़ल उपचार हो रहा है।
डॉ. श्रीवास्तव ने सेप्सिस होने के कारण पर चर्चा करते हुए बताया कि इसका सबसे सामान्य कारण कारण जीवाणु संक्रमण है , लेकिन यह कोविड-19 वायरस सहित परजीवी, फंगल या वायरल संक्रमण के कारण भी हो सकता है । सेप्सिस की ओर ले जाने वाले संक्रमणों के प्रकारों के साथ-साथ सामान्य स्थान ये हैं जिसमें केंद्रीय तंत्रिका तंत्र: मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में संक्रमण,
पेट में अपेंडिक्स का संक्रमण (अपेंडिसाइटिस), पेट की गुहा का संक्रमण (पेरिटोनिटिस), आंत की समस्या और यकृत या पित्ताशय का संक्रमण।
त्वचा: घावों या त्वचा की सूजन के माध्यम से, या अंतःशिरा, कैथेटर द्वारा बनाए गए उद्घाटन के माध्यम से त्वचा में बैक्टीरिया का प्रवेश भी सेल्युलाईट सेप्सिस का कारण बन सकता है।
फेफड़े : निमोनिया जैसे फेफड़ों का संक्रमण, मूत्र मार्ग में संक्रमण, विशेष रूप से उन रोगियों में जिनके पास मूत्र निकालने के लिए मूत्र कैथेटर होता है।
सेप्सिस किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है लेकिन कुछ लोगों को इसका खतरा ज़्यादा होता है। जैसे कि बचपन में कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स या एंटीबायोटिक दवाओं का पिछला उपयोग,बड़ी उम्र में प्रतिरक्षा प्रणाली,क्रोनिक लिवर या किडनी की बीमारी,श्वास नली या कैथेटर जैसे आक्रामक उपकरण का प्रयोग,बड़े घाव या जलने जैसी गंभीर चोटों वाला व्यक्ति
सेप्सिस के चपेट में आ सकता है।
डॉ. ने बताया कि सेप्सिस के मुख्य तीन चरण होते हैं जिनमे पहले सेप्सिस में इसमें संक्रमण रक्तप्रवाह में चला जाता है जिससे शरीर में सूजन हो जाती है, दूसरा गंभीर सेप्सिस से सूजन और संक्रमण इतना गंभीर हो जाता है कि यह अंगों के कार्य को प्रभावित करना शुरू कर देता है।
तीसरा सेप्टिक शॉक से यह सेप्सिस की एक गंभीर जटिलता है जिससे रक्तचाप में महत्वपूर्ण गिरावट हो सकती है जो गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकती है।जिसके चलते प्रभावित लोगों को आघात,अंग की शिथिलता,हृदय या श्वसन विफलता से मौत हो जाती है।
सेप्सिस के लक्षण के बाबत उन्होंने जानकारी दी कि इसमें ठंड लगना,काँपना,तेज़ हृदय गति,
मनभटकाव या मस्तिष्क में भ्रम की स्थिति,बुखार या हाइपोथर्मिया,गर्म या पसीने वाली/चिपचिपी त्वचा,
हाइपरवेंटिलेशन या सांस की तकलीफ हो जाती है।
अत्यधिक असुविधा या दर्द
गंभीर सेप्सिस के लक्षण के बारे में बताया कि शरीर का तापमान गिरने के कारण ठंड लगना,
सांस लेने में परेशानी,त्वचा का नीला पड़ना, अधिकतर उंगलियां, होंठ, पैर की उंगलियां,चक्कर आना,अत्यधिक थकान,पेशाब कम आना,
थ्रोम्बोसाइटोपेनिया,मानसिक क्षमता में परिवर्तन,बेहोशी की हालत औरहृदय की असामान्य कार्यप्रणाली मुख्य है।
चिकित्सक ने कहा कि सेप्सिस शॉक के लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, त्वचा का नीला पड़ना और तीव्र भ्रम जैसे कुछ लक्षण गंभीर सेप्सिस के समान हैं और सेप्टिक शॉक का मुख्य लक्षण लो ब्लडप्रेशर यानी बहुत कम रक्तचाप है।
उन्होंने इसकी जटिलताओ के बारे में जानकारी दी कि जब इलाज नहीं किया जाता है तो गंभीर सेप्सिस मामलों में और गम्भीर मर्ज हो जाते है जिनमें डिप्रेशन यानी अवसाद, रक्त के थक्के अंग क्षति संक्रमण,
अंग विफलता मुख्यतः हृदय, गुर्दे और फेफड़े।
डॉ. श्रीवास्तव ने आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से स्रोताओं को अवगत कराया कि सेप्सिस होने पर उसके उपचार में जड़ी-बूटियाँ सर्वाधिक उपयोगी हैं ऐसे में हल्दी में पाए जाने वाले करक्यूमिन यौगिक में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो शरीर की प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। इसमें एंटीसेप्टिक गुण भी होते हैं जो शरीर में संक्रमण को ठीक करने में मदद करते हैं।
लहसुन: इसमें एंटी बैक्टीरियल और एंटीबायोटिक गुण होते हैं जो व्यक्ति में बैक्टीरियल संक्रमण का मुकाबला करने में मदद करते हैं।
शहद: इसमें एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होती है और यह शरीर में बैक्टीरिया और फंगल संक्रमण से लड़ने में भी मदद करता है। यह एक शक्तिशाली प्रतिरक्षा बूस्टर है और पचाने में आसान है।
नीम: इसमें मजबूत एंटी-वायरल, एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो संक्रमण की रोकथाम में बेहद सहायक होते हैं। इसमें विषहरण गुण भी होते हैं जो रक्त को शुद्ध करने और रक्त परिसंचरण में सुधार करने में मदद करते हैं।
मंजिष्ठा: यह एक शक्तिशाली रक्त शोधक है जो लसीका प्रणाली के कार्य को बढ़ाने में मदद करता है और इस प्रकार प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है।
गिलोय: इसमें प्राकृतिक ज्वरनाशक प्रभाव होता है जिससे बुखार का इलाज करने में मदद मिलती है। इसके अलावा इसमें शक्तिशाली सूजन-रोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी प्रदर्शित होते हैं, जो उपचार में सहायक होते हैं
तुलसी: इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटीबायोटिक गुण होते हैं जो वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसमें ज्वरनाशक गुण भी होते हैं जिससे बुखार जल्दी ठीक हो जाता है।
डॉ. श्रीवास्तव ने सेप्सिस के इलाज के लिए कुछ जरूरी औषधि लेने की सलाह देते हुए बताया कि, गिलोय, तुलसी रस, त्रिफला चूर्ण, लहसुन आदि का सेवन करने से सेप्सिस से बचा जा सकता है और पंचसकार चूर्ण जिसमें सोंठ हरीतकी, पिप्पली, त्रिवृत और सौवर्चला लवण जैसी पांच सामग्रियां शामिल हैं। इस हर्बल चूर्ण का उपयोग अचानक पेट दर्द, सूजन, कब्ज आदि से निपटता है। यह शरीर के समग्र विषहरण में मदद करता है।