लेखक-विशाल कुकरेती
√ चीन समझ गया कि यह पहले की सरकारों का कमजोर देश नही बल्कि मोदी सरकार में शक्तिशाली भारत का हो रहा उदय
√ वर्ष 1972 में LOC निर्धारित हो गयी कि ये हमारी सीमा और वो पाकिस्तान की,
उसके बाद भी पाकिस्तान में जो भारतीय क्षेत्र है उसे हम पाकिस्तानी अधिकृत क्षेत्र कहते हैं।
LAC आज तक तय नही है।
चीन के हिसाब से पूरा लद्दाख से लेकर अरुणांचल उसका है और हमारे हिसाब से अक्साई लद्दाख हमारा है और अरुणांचल के वो क्षेत्र भी जो अब चीन के पास हैं।
इसी तरह हमें कैलाश आदि क्षेत्र भी अपने पास चाहिए जो आज चीन के पास हैं।
अब चूंकि LAC में कोई निर्धारित सीमा नही है तो भारत और चीन के बीच एक बफर क्षेत्र या नो मैन्स लैंड है, जहां चीनी और भारतीय सैनिक गश्त तो मारते हैं अपनी हाजरी लगाने को लेकिन फिर वापिस अपने अपने क्षेत्रों में चले जाते हैं।
लेकिन गलवां जैसी घटना में ये हुआ कि चीनी उस बफर क्षेत्र में गश्त के बहाने आये और वापिस नही गए।
यहीं से फिर भारत चीन में टेंशन शुरू हुआ और भारत की सेना भी बफर क्षेत्र में जाकर बैठ गयी कि जबतक तुम वापिस नही जाओगे तो हम भी नही जाएंगे और इसी में वो झड़प भी हुई जहां हमारे 20 और चीन के 40 से लेकर 100 तक सैनिक मारे गए।
अभी परसों ही चीन 6 में से 4 क्षेत्रों में जो पीछे हटा है वो ऐसे ही क्षेत्र हैं। लेकिन 2 में जिसमें बात अटकी है उसमें चीन का कहना है कि यहां तो हम कांग्रेस सरकार के समय से हैं, तो वो आनाकानी कर रहे हैं पीछे हटने के लिए।
असल मे जब ऐसा ही वो कांग्रेस सरकार के समय मे करते थे तो विपक्षी दल चीन को जवाब देने की मांग करते थे तो कांग्रेस जवाब देती थी कि इन छोटी बातों पर ध्यान नही देना चाहिए।
चर्चा तो यह भी है कि कांग्रेसी MOU ही ऐसा था कि चीन धीरे धीरे ऐसे ही LAC में आएगा और आते आते भारत की सीमा के अंदर घुस जाएगा।
इसी वजह से जब सेना कहती थी कि कल को इसे लेकर युद्ध हो गया तो हमारे लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तो बना दो तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार के रक्षा मंत्री ए के एंटोनी कहते थे कि हम इंफ्रास्ट्रक्चर नही बनाएंगे, ये हमारी पॉलिसी है क्योंकि जब इंफ्रास्ट्रक्चर ही नही होगा तो चीन हमारी सीमा के अंदर आ ही नही पायेगा।
असल मे कांग्रेसियो के अंदर 1962 के वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय भारत की चीन से हुई बुरी तरह से हार का डर कभी गया ही नहीं। वह चीन के मुकाबले भारत की ताकत को हरदम कम मानने की हीन भावना की ग्रंथि से ग्रसित हैं।
एक कांग्रेसी मानने लगे थे कि माओ दिल्ली में झंडा गाड़ने आ रहा है और इसी वजह से प्रधानमंत्री नेहरू ने असम तक पूरे नार्थ ईस्ट से सेना को पीछे हटने को कह दिया था कि नार्थ ईस्ट भले ही चले जाये लेकिन कम से कम माओ इतने में ही खुश होकर दिल्ली की तरफ तो नही बढ़ेगा।
वो तो भारतीय सेना ने नेहरू का आदेश नही माना जिसके परिणाम स्वरूप आज नार्थ ईस्ट भी हमारे पास है।
जबसे से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आई है तब से वहां बुनियादी सुविधायें तूफानी गति से बन रहा है। ऐसे में चीन को ये पसन्द नही आ रहा कि ऐसे कैसे भारत के अंदर से हमारा खौफ जा रहा है और इसी वजह से उसने फिर सोचा कि वो LAC में घुस कर कब्जा कर सीमा विस्तार कर लेगा लेकिन इस बार उसका पाला कांग्रेस की नही बल्कि मोदी सरकार से पड़ा था।
इसी बात को सरकार भी कहती है कि चीन ने हमारी एक इंच भी जमीन नही ली है क्योंकि जहां ये झड़प या विवाद हो रखा है वो जमीन पर क्लेम तो दोनों का है और मैप भी दोनों अपनी बताते हैं लेकिन उसपर कंट्रोल किसी का नही वरना LAC का नाम LOC होता।
लोग इस कंट्रोल और एक्चुअल कंट्रोल का अंतर नही समझते इसलिए राहुल गाँधी और कांग्रेस , भारत के साथ नेहरू सरकार की असहनीय कमजोरी और गलतियों को छुपाने के साथ साथ जनता को बर्गलाने में लगी रहती है।
बहरहाल भारत सरकार वो दो क्षेत्र से भी चीन को पीछे हटने को कह रही है, जहाँ चीन को नही घुसना था।
लेकिन ये भी बफर क्षेत्र हैं ना कि वो क्षेत्र जहाँ चीन प्रधानमंत्री नेहरू के जमाने से है और आज वहां उसका न सिर्फ कब्जा है बल्कि वहां उसने इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने से लेकर गांव बसा रखे हैं, ठीक उसी तरह जैसे हमारे पाक अधिकृत जम्मू कश्मीरमें पाकिस्तान ने कर रखा है।
ये विवाद तो शायद युद्ध के बिना सुलझेगा ही नहीं या फिर कुछ ऐसा अप्रत्याशित हो जाये कि चीन को मजबूर होना पड़े, हमारे सारे इलाके देने को जिसपर हम दावा करते हैं और फिर एक असली बॉर्डर बनाकर हम चीन और भारत की सीमा निर्धारित कर सकें।
खैर, जो भी हो लेकिन चीन को इतना तो समझ आ गया है ये वो भारत नही जैसा वो कांग्रेस सरकार के समय से समझता आ रहा था। आज चीन के सामने मिरर डिप्लॉयमेंट रहती है। भारत ने पाकिस्तान के लिए तो कह भी दिया कि वो अपनी मौत खुद मरेगा और अब हमारा सबसे बड़ा और असली दुश्मन चीन है और यही बात रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग को समझाई है कि अगर पश्चिमी देशों से लड़ना है तो ये सब विवाद सुलझाना पड़ेगा और असल मायने में BRICS को मजबूत करना पड़ेगा, वरना BRICS के दो मेम्बर ही आपस में दुश्मन बने रहेंगे तो हम खाक पश्चिम के G7 को मात दे पाएंगे?
वैसे भी लड़ाई सीमा विवाद से बड़ी बन चुकी है।
BRICS गोल्ड बैक करंसी लाने की सोच रहा है तो वेस्ट डिजिटल करंसी की ओर जा रहा है। सबको समझ आ गया है कि डॉलर के दिन लदने शुरू हो गए हैं और अब अमरीका डॉलर की दादागिरी ज्यादे दिन नही चला सकता दुनिया के देशों पर।
ऐसे में दुनिया के देशों को आफर दिया जाएगा कि आप डिजिटल करंसी के साथ जाना चाहते हैं या BRICS की करंसी के साथ।
डिजिटल में कोई बैकअप नही होगा और उसे कंट्रोल करना आसान होगा जबकि BRICS की करंसी पर हम “धारक को उतना गोल्ड देने का वचन देंगे” यदि कभी ऐसी नौबत आई तो!
वैसे एक समय ऐसा ही था लेकिन अमरीका ने सऊदी अरबसे डील कर गोल्ड की शर्त हटा दी थी और तब से डॉलर का प्रभुत्व दुनिया मे शुरू हो गया।
इसके अलावा, अमरीका जैसा हमारे बैकयार्ड में आ रहा है तो हमे भी कनाडा-मेक्सिको में दखल देकर अमरीका को भी एहसास कराना है कि कोल्ड वॉर 2.0 शुरू करना हमें भी आता है।
आज अगर अमरीका यूक्रेन के नाम पर रूस, ताइवान के नाम पर चीन या बंग्लादेश के नाम पर भारत मे घुसने की कोशिश करेगा तो जरा क्यूबा को भी याद कर ले।
भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने तो जर्मनी में बैठकर साफ कहा कि अगर तुम इंटरफेयर करोगे तो कोई बात नही लेकिन फिर जब हम करेंगे तो रोना मत।
और मोदी सरकार ने तो नेहरु की विदेश नीति को उठाकर ताक पर रखा हुआ है अब भारत चीख चिल्लाकर नही करता, उसके काम तब पता चलते हैं जब प्रतिद्वंदी देश के नीचे से जमीन खिसक चुकी होती है।
जापान को छोड़कर जो ये ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी जो अमरीका के इशारे पर चलते रुकते हैं जिन्हें अमरीका पालता है, इन्हें जब एक साथ मार पड़ेगी तो इन्हें समझ नही आएगा कि करें क्या।
वैसे भी उपराष्ट्रपति और इस समय राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रही कमला हैरिस खुद कह रही है कि हमें 20 साल कम से कम सत्ता चाहिए ताकि हम 21वीं सदी में बादशाहत के लिए वापसी कर सकें।
अमरीका को भी समझ आ चुका कि 21 वीं सदी पश्चिम की तो कतई नही रहने वाली।
अब पश्चिम नहीं पूर्व तय करेगा कि रूस-चीन या भारत में से 21वीं सदी का लीडर कौन होगा।

(लेखक विदेशी मामलों के जानकर हैं और यह उनके निजी विचार हैं)