लेखक- अमित सिंघल
कुछ मित्र, विशेषकर व्यापारी एवं उद्यमी वर्ग, GST इत्यादि में भ्रष्टाचार को लेकर व्यथित रहते है। कई बार उनसे तीखा विचार-विमर्श हो जाता है; बाद में दुःख भी होता है।
आज नितांत निजी अनुभव के आधार पर इस भ्रष्टाचार को समझने का प्रयास करते है। पहले नहीं लिखा क्योकि वृहद परिवार व्यथित हो सकता है।
सिविल सर्विस में प्रथम प्रयास में मेरा सेलेक्शन हो गया था। लेकिन रैंक एवं च्वाइस के आधार पर ग्रुप A की भारतीय सूचना सेवा मिली। लेकिन इस सेवा को “कमाऊ” नहीं माना जाता है। वृहद परिवार में मायूसी छा गयी।
द्वितीय प्रयास में रैंक बहुत ऊपर थी, आसानी से इनकम टैक्स मिल जाता। लेकिन तभी मंडल आरक्षण लागू हो गया था; अतः भारतीय सूचना सेवा को ज्वाइन करना पड़ा। दो वर्ष पूर्व ही चिदंबरम ने नियम बना दिया था कि अगर कोई कैंडिडेट ग्रुप A सेवा का ऑफर सेलेक्ट कर लेता है, तो उसे एक अन्य अटेम्प्ट मिलेगा जिसमे उसे केवल आईएफएस, आईएएस या आईपीएस ज्वाइन करने दिया जाएगा। रैंक इम्प्रूव होने के बाद भी ग्रुप A की सेवा से किसी अन्य ग्रुप A की सेवा को ज्वाइन नहीं करने दिया जाएगा क्योकि सभी ग्रुप A सेवाए “एकसमान” है।
द्वितीय प्रयास के रेज़ल्ट वाली रात JNU, जहाँ का हॉस्टल मई में छोड़ दिया था और एक मित्र के रूम में इल्लीगल गेस्ट के रूप में रह रहा था, से 615 नंबर वाली बस में नई दिल्ली स्टेशन के लिए बिना आरक्षण के ट्रेन पकड़ने के बैठ गया था। पूरे रास्ते सुबकता रहा था। कारण था कि “कमाई” वाली नौकरी नहीं मिली थी और आगे का रास्ता बंद हो गया था।
“वी पी सिंह वाला” बैच बड़ा होने के कारण (उस वर्ष सरकार ने सामान्य वर्ग को बहलाने के लिए तीन से चार अटेम्प्ट कर दिया था; साथ ही आयु सीमा 26 से बढाकर 28 कर दी थी), फाउंडेशन कोर्स के लिए मसूरी की जगह नागपुर स्थित आय कर एकडेमी में भेज दिया गया।
एक तो सूचना सेवा, ऊपर से आय कर एकडेमी में इनकम टैक्स सहयोगियों के साथ ट्रेनिंग !
वहां पर तीसरे अटेम्प्ट का प्रिलिम्स क्लियर कर लिया था। लेकिन सरकार से अनुशासनात्मक कार्यवाई का नोटिस आ गया था, अतः डर के मेंस नहीं दिया। बाद में पता चला था कि कुछ सहयोगी कोर्ट से स्टे ले आये थे और मेंस दिया था।
लेकिन मेरे लिए सिविल सर्विस प्रतियोगिता वाला मार्ग अब बंद हो गया था।
दिल्ली पोस्टिंग के समय कुछ आयकर एवं कस्टम्स के “घनिष्ठ” सहयोगियों के घर गया।
कुछ ने उस समय की कांग्रेस शहरी मंत्री शीला कौल के समय में चाणक्यपुरी या अन्य क्षेत्र में में डी-2 कोठियां अलॉट करवा ली थी; वही भी 3-4 वर्षो की नौकरी के बाद। जानकारी के लिए, उस समय डी-2 कोठी सामान्यतः 20 वर्ष की वरिष्ठता के बाद मिलती है। बाद में शीला कौल को तथाकथित भ्रष्टाचार के कारण पद से हटा दिया गया था।
उन सहयोगियों ने चलता-फिरता सा व्यवहार किया। गर्व से यह भी बताया कि उनकी “आय” प्रतिदिन 1000 हज़ार रुपए से अधिक थी, जबकि उस समय मासिक वेतन 5000 रुपए था। स्पष्ट था कि “ऊपरी” कमाई ना होने के कारण उनकी दृष्टि में मैं उनके समकक्ष नहीं था।
जब विवाह की बात आयी, तो मैंने माता जी से तीन कंडीशन रखी – प्रथम, कोई दहेज़ नहीं। द्वितीय, प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन वाली लड़की जिससे दोनों की कमाई से जीवन सुचारु रूप से चल सके (मुझे स्पष्ट था कि मेरे अकेले वेतन से “निर्धनता” वाला जीवन रहेगा)। तृतीय, जो भी पहली लड़की देखने जाएंगे, वहीँ पर “हाँ”; अतः सोच समझकर प्लान बनाए।
अब समस्या यह आयी कि लड़की वाले शुरू में तो उत्साहित रहते थे, बाद में पता चलने पर कि लड़के की नौकरी कमाऊ नहीं है, बात समाप्त कर देते थे। रिश्तेदारों के द्वारा कारण भी पता चल जाता था (नाते-रिश्ते भी कई बार निर्दयी होते है)। माता जी जहाँ पर बात बढ़ाए, वहां पर कुछ समय बाद ना हो जाती थी।
किसी तरह कई प्रयासों के बाद विवाह हुआ; वह भी तब जब ससुर जी को पता ही नहीं था कि नौकरी कमाऊ वाली नहीं है। फिर भी, ससुर जी को क्रेडिट एवं सम्मान जाता है कि उन्होंने कभी भी शिकायत नहीं किया। पत्नी ने भी कभी ऊपरी “कमाई” के बारे में नहीं सोचा था। हम दोनों के वेतन से गृहस्थी अच्छी, सुख-सुविधा वाली चल जाती थी।
लिखने का तात्पर्य यह है कि जिस भ्रष्टाचार को हम समाप्त करवाना चाहते है, उसके मूल में वृहद परिवार, नाते-रिश्तेदारों, पड़ोसियों की आकांक्षाएं है। सरकार के चाहने से भी इस दशक में भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता, चाहे आप मोदी-योगी को हटा दे।
स्वयं कैंडिडेट एवं कर्मी भी (कुछ लोगो को छोड़कर) सरकारी नौकरी केवल ऊपरी कमाई के लिए ज्वाइन करना चाहते है। मजबूरी के कारण वे अपने आप को एक ऐसी स्थिति में पा सकते है, जहाँ ऊपरी कमाई नहीं हो।
वृहद परिवार, नाते-रिश्तेदार एवं पड़ोसी चाहते है कि आप भ्रष्ट बने और उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाए। यही कटु सत्य है जिसे कोई स्वीकारना नहीं चाहता; लेकिन ब्लेम सरकार पर डाल दिया जाता है क्योकि वह एक सरल ऑप्शन होता है।
तभी मैं लिखता आया हूँ कि आप को यह देखना है कि क्या मोदी-योगी-खट्टर-सैनी-नड्डा इत्यादि स्वयं अपनी जेब भर रहे है। नहीं तो आप लालू पुत्र, अखिलेश, राहुल, स्टालिन, जैसो को बैकडोर से एंट्री दे रहे हो।
मैं यह नहीं कहना चाहता कि मैं सत्यनिष्ठ हूँ। कारण यह है कि मुझे भ्रष्टाचार का अवसर ही नहीं मिला।
लेकिन कदाचित इस कारण से ही आज मैं किसी भी सहयोगी से कहीं बहुत अधिक समृद्ध हूँ, किसी भी प्रकार की टेंशन नहीं है।
मर्सिडीज़ की नई S-580 कार में घूमता हूँ (वही कार जिसमे कई देशो के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री चलते है; अम्बानी-अडानी चलते है); भारत की निजी यात्रा भी बिज़नेस क्लास में करता हूँ; रेस्टोरेंट में दो लोगो (स्पष्ट कर दूँ – केवल हम पति-पत्नी) के डिनर पर एक लाख रुपए से अधिक का भुगतान क्रेडिट कार्ड से कर देता हूँ (कैश से नहीं)।
हाँ, यह भी जान ले कि आयकर एवं कस्टम्स के मेरे कई सहयोगियों को इसी मोदी सरकार ने डिसमिस कर दिया है; या अर्ली रिटायरमेंट लेने को बाध्य कर दिया है। इस समय मेरे सहयोगी पूरे भारत में चीफ कमिश्नर इनकम टैक्स या कस्टम्स के पद पर कार्यरत है। लेकिन मेरा कदाचित ही किसी से संपर्क हो; क्योकि मन खट्टा है।
अंत में, हो सकता है कि मेरे अनुभव से लोग सहमत ना हो। क्योकि भारत में सभी परिवार, नाते-रिश्तेदार, पड़ोसी, उद्यमी, व्यापारी, CA, डॉक्टर, वकील इत्यादि सत्यनिष्ठ है।
केवल एक ही बेईमान है – वह है सरकारी कर्मी एवं पॉलिटिशियन जो किसी अन्य गृह से आते है।

(लेखक इनकम टैक्स व कस्टम विभाग से रिटायर्ड अफसर हैं और यह उनके निजी विचार हैं)