लेखक-अमित सिंघल
अमेरिका में वर्ष के तीन सप्ताह या कालखंड ऐसे होते है जब कोई भी विदेशी उच्चाधिकारी (कम से कम कैबिनेट मिनिस्टर) सामान्यतः अमेरिका नहीं आता है। यह तीन कालखंड है – 4 जुलाई (स्वतंत्रता दिवस); नवंबर का अंतिम गुरुवार (थैंक्सगिविंग); एवं 25 दिसंबर से प्रथम जनवरी (क्रिसमस एवं नव वर्ष)।
कारण यह है कि अमेरिका के सभी उच्चाधिकारी छुट्टी पर होते है। आपको मीटिंग के लिए जूनियर ब्यूरोक्रेट्स मिलेंगे। अगर कोई गंभीर क्राइसिस हुई, तो लोग छुट्टी पर होने के बाद भी मीटिंग के लिए तैयार हो जाएंगे। उदाहरण के लिए, कारगिल युद्ध को रुकवाने के लिए पाकिस्तान के कातर अनुरोध के कारण 4 जुलाई 1999 को अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, नवाज़ शरीफ से मिलने के लिए अवकाश से वापस आये थे।
अतः विदेश मंत्री जयशंकर की 24 से 29 दिसम्बर की अमेरिका यात्रा को लेकर अटकले चल रही थी; कुछ भद्दी अफवाहे भी। लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन, जयशंकर से मिले।
इसके एक सप्ताह बाद अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सलिवन भारत आए और वह प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री दोनों से मिले। आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि सलिवन को भी एकाएक भारत आना पड़ा। ध्यान देने की बात है कि अमेरिकी अधिकारी 19 जनवरी तक ही शासन में है; फिर ट्रम्प प्रशासन के अधिकारी पदभार संभल लेंगे।
पिछले एक वर्ष से भारत के प्रति अमेरिकी कूटनीति में एक रुखाई सी थी। दोनों राष्ट्रों के मध्य सम्बन्ध सशक्त थे; प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रपति बाइडेन से स्टेट विजिट पर आमंत्रित किया था।
लेकिन अमेरिका एवं कनाडा से ऑपरेट करने वाले खालिस्तानी आतंकियों को प्रश्रय, भारत के सुरक्षा अधिकारियों पर सार्वजानिक आरोप लगाना, किसी को अरेस्ट कर लेना; अडानी पर वहां के प्रोसेक्यूटर (जो सत्तापक्ष की डेमोक्रेटिक पार्टी का सदस्य होता है) द्वारा कोर्ट में केस लगाना; और बांग्लादेश में तथाकथित रूप से अमेरिकी समर्थन से सत्ता परिवर्तन करवाना – यह इंगित करता था कि द्विपक्षीय संबंधो में कहीं कुछ फंसा हुआ है। कुछ ऐसी बात है जिस पर दोनों पक्ष अड़ गए थे।
और यह खटास खालिस्तानी, अडानी एवं बांग्लादेश को लेकर नहीं थी। यह तीनो विषय केवल उस खटास की भेंट चढ़ गए थे।
बाइडेन प्रशासन के अंतिम तीन सप्ताह में इस तरह की उच्चस्तरीय मीटिंग, वह भी क्रिसमस एवं नए वर्ष के समय में, संकेत देती है कि जो कुछ भी विवाद, मनमुटाव का विषय था, उसे सुलझा लिया गया है।
जैक सलिवन की भारत यात्रा के एक दिन पूर्व ईरान के उपविदेश मंत्री, जो राजनीतिक विषयो को देखते है, भी भारत में थे।
सत्ता छोड़ने के पूर्व बाइडेन अपनी स्लेट या ब्लैकबोर्ड क्लीन या ट्रम्प प्रशासन के लिए स्थिति जटिल करते जा रहे है। पिछले दो सप्ताह में कई लोगो, जिसमे उनका पुत्र भी सम्मिलित है, की सजा माफ कर दी, हिलेरी क्लिंटन एवं सोरोस को राष्ट्र का सर्वोच्च मेडल भी दे दिया। जापान द्वारा अमेरिकी स्टील कंपनी खरीदने के प्रयास को ब्लॉक कर दिया। टिकटोक 19 जनवरी तक ब्लॉक हो सकता है। यूक्रेन एवं इजराइल को कई बिलियन डॉलर ट्रांसफर कर दिए।
मेरा अनुमान है कि बाइडेन ने भारत सम्बंधित कुछ फंसे हुए विषयो पर भी अपनी स्लेट क्लीन कर दी है; भारत को कुछ डिलीवर कर दिया है।। ऐसा नहीं है कि यह एकतरफा था। भारत ने भी अमेरिका को कुछ ऐसा डिलीवर किया है, जो अमेरिका चाहता था, उसे प्रिय था।
आशा है कि अमेरिका स्थित खालिस्तानी आतंकियों एवं बांग्लादेश के मामलो में कुछ सकारात्मक डेवलपमेंट शीघ्र ही देखने को मिलेगा।
(लेखक रिटायर्ड IRS अफ़सर हैं)