लेखक-अरविंद जयतिलक
♂÷जटिल वैश्विक कुटनीतिक दांवपेचों के बीच भारत की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित जी-20 देशों का 18 वां सम्मेलन वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष बढ़ते जोखिम, युक्रेन युद्ध, क्रिप्टो पर ग्लोबल पाॅलिसी, आतंकवाद, पर्यावरण, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, ग्रीन एनर्जी, ग्लोबल बायोफ्यूल और ग्लोबल साउथ के अलावा कई अन्य वैश्विक मुद्दों पर केंद्रित होकर सफल रहा। यह दुनिया के लिए संदेश है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच के जरिए असहमतियों और खींचतान के बावजूद भी वैश्विक आयोजन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने यह कर दिखाया है। उन्होंने रुस और चीन समेत सभी देशों के बीच नई दिल्ली घोषणापत्र पर सौ फीसदी सहमति जुटाकर फिर साबित किया है कि पारदर्शी और ईमानदार सोच से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि इस घोषणापत्र में रुस का नाम लिए बगैर रुस-युक्रेन युद्ध को सिर्फ युक्रेन युद्ध के तौर पर उल्लेख किया गया है। जबकि इस पर रुस और चीन का रुख अलग था। याद होगा गत वर्ष नवंबर 2022 में इंडोनेशिया सम्मेलन में जारी घोषणापत्र में तमाम कोशिशों के बावजूद भी रुस-युक्रेन युद्ध को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई थी। उस दौरान रुस और चीन दोनों ने स्वयं कोे युद्ध के बारे में की गई टिप्पणीयों से तटस्थ कर लिया था और लिखित असहमति भी जताई थी। इस बार भी कुछ इसी तरह के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी वैश्विक साख, करिश्माई नेतृत्व, और समावेशी सोच के जरिए असहमतियों को सहमति में बदल दिया। ध्यान रखना होगा कि रुस-युक्रेन युद्ध को लेकर प्रधानमंत्री मोदी प्रारंभ से ही तटस्थ रुख अपनाए हुए है। वे बार-बार कहते सुने जाते हैं कि ‘यह युद्ध का समय नहीं है’। उनकी इस सकारात्मक सोच ने वैश्विक जगत को प्रभावित किया है। यहीं वजह है कि दिल्ली घोषणापत्र में उनकी इस सोच को जगह मिली है। यह भारत के लिए गौरवपूर्ण उपलब्धि है। रुस-युक्रेन युद्ध की तरह जीवाश्म ईंधन अर्थात पेट्रोलियम पदार्थों के मुद्दे पर भी कई देशों के बीच सहमति नहीं थी। अमेरिका और यूरोपीय देशों के कड़ी शर्तों को लेकर सऊदी अरब को कड़ा ऐतराज था। वह कतई नहीं चाहता था कि इस मसले पर जल्दबाजी में कदम उठाया जाए जिससे उसके हित प्रभावित हों। भारत समेत तमाम विकासशील देशों को भी पर्यावरण और पेट्रोलियम पदार्थों से जुड़े कुछ प्रावधानों पर ऐतराज था। लेकिन अच्छी बात यह रही कि इन विवादों को आसानी से सुलझा लिया गया। जिद् और शर्तों पर अड़े देशों को अपने रुख में नरमी लानी पड़ी।
किसी से छिपा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी वैचारिक दृढ़ता के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं। उसकी एक बानगी जी-20 सम्मेलन में भी देखने को मिली। अमेरिका और यूरोपीय देश चाहते थे कि सम्मेलन में यूक्रेन को आमंत्रित किया जाए। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी उनके दबाव में नहीं आए। उनकी इस कुटनीतिक बाजीगरी और साहस का नतीजा यह निकला कि वे घोषणापत्र के सभी बिंदुओं पर रुस और चीन जैसे असहमति रखने वाले देशों से भी मुहर लगवाने में सफल रहे। इस समिट की एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि अफ्रीकी संघ भी जी-20 का स्थाई सदस्य बन गया। उल्लेखनीय है कि अफ्रीकी संघ अफ्रीका महाद्वीप के 55 देशों का संगठन है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत, मध्य पूर्व यूरोप के मेगा इकोनाॅमिक काॅरिडोर का भी ऐलान किया। इस काॅरिडोर में भारत के अलावा संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय यूनियन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका जैसे शामिल होंगे। माना जा रहा है कि इस काॅरिडोर के मूर्त रुप लेने से भारत व यूरोप के बीच तकरीबन 40 फीसदी व्यापर बढ़ जाएगा। प्रस्तावित प्रोजेक्ट के मुताबिक काॅरिडोर में रेल व बंदरगाहों से जुड़ा विशाल नेटवर्क खड़ा किया जाएगा। इस काॅरिडोर में सात देश निवेश करेंगे। माना जा रहा है कि यह काॅरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का जवाब है। इस काॅरिडोर से पूरी दुनिया को शानदार कनेक्टिविटी और विकास की नई दिशा मिलेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सबका विकास का आह्नान करते हुए कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता, उत्तर-दक्षिण विभाजन, पश्चिम व पूर्व के बीच अंतर, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा जैसी चुनौतियों से पार पाने के लिए मिलजुल कर कदम बढ़ाना होगा। उन्होंने सम्मेलन में भारत की भूमिका को विस्तारित करते हुए सभी विकासशील देशों को संदेश दिया कि मौजूदा दौर उनका है और वे आगे बढ़कर अपनी भूमिका का निर्वहन करें। दिल्ली घोषणापत्र में ब्राजील, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों का उल्लेख यों ही नहीं है। यह भारत के कारण ही संभव हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित देशों को आगाह किया कि वे अपनी मनमानी नीतियों से विकासशील देशों के हितों को प्रभावित नहीं कर सकते। विचार करें तो दिल्ली घोषणापत्र पर सौ फीसदी सहमति और सफलता का मुख्य श्रेय भारत की कुशल रणनीति, समावेशी सोच, और उच्चतर आदर्श भाव वसुधैव कुटुंबकम का है। भारत के सोच की छाप नई दिल्ली घोषणापत्र में भी देखने को मिली है। भारत के आह्नान पर ही सभी देशों ने मजबूत टिकाऊ और सतत समावेशी विकास पर जोर देते हुए ग्रीन डिवेलपमेंट, बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार, जेंडर एंपावरमेंट, जेंडर इक्विटी की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमति जताई है। सदस्य देशों ने कोयला आधारित बिजली को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने, विकासशील देशों को ऋण उपलब्ध कराने और कर संबंधित जानकारी को साझा करने पर भी हामी भरी है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए एक टास्क फोर्स गठन पर भी सहमति जताई है। भारत की ओर से पहल करते हुए स्वच्छ उर्जा के लिए ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस लांच किया जाना रेखांकित करता है कि भारत पर्यावरण सुरक्षा को लेकर कितना संवेदनशील है। अगर यह पाॅलिसी परवान चढ़ी तो आने वाले दिनों में तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक की मनमानी पर नकेल कसना तय है। गौर करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक चिंताओं को साझा करते हुए इस मंच का द्विपक्षीय वार्ता के तौर पर भी जमकर इस्तेमाल किया। उन्होंने जहां एक ओर अपने जापानी समकक्ष फुसियो किशिदा के साथ द्विपक्षीय वार्ता के जरिए दोनों देशों के संबधों को परवान चढ़ाने की वकालत की वहीं ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) को मूर्त रुप देने की दिशा में आगे बढ़ने पर जोर दिया। याद होगा जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक द्वारा मुक्त व्यापार समझौते (फ्री टेªड एग्रीमेंट-एफटीए) की समीक्षा की गई थी। तब दोनों देशों ने अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहने की बात दोहरायी। इस बार भी दोनों नेताओं ने इस महत्वकांक्षी समझौते को मूर्त रुप देने पर आगे बढ़ने के साथ व्यापार, निवेश, विज्ञान और तकनीकी जैसे व्यापक क्षेत्रों में भी आपसी सहयोग बढ़ाने पर बल दिया है। प्रधानमंत्री मोदी अपने इतालवी समकक्ष जाॅर्जिया मेलोनी से भी मुलाकात कर दोनों देशों के बीच व्यापार, वाणिज्य और रक्षा समेत कई अन्य मसलों पर सकारात्मक चर्चा की। दिल्ली घोषणापत्र से स्पष्ट है कि जी-20 के देश आर्थिक मुद्दों विशेष रुप से असंतुलित विकास, वैश्विक मांग में कमी और ढांचागत समस्याओं से निपटने की चुनौती को गंभीरता से लिए है। उम्मीद किया जाना चाहिए कि वे इन चुनौतियों को सामने रख किसी ठोस समझौते को आकार देंगे। समिट में कर संबंधी जानकारी को आदान-प्रदान करने पर सहमति से उम्मीद जगी है कि सदस्य देश काला धन से निपटने, टैक्स मामले में पारदर्शिता लाने, निवेश प्रवाह बढ़ाने, अर्थव्यवस्था के लिए मुक्त आवाजाही पर जोर, विकास के लिए उर्जा की आवश्यकता और काॅरपोरेट टैक्स की चोरी रोकने के लिए नीतिगत उपाय पर आगे बढ़ेंगे। सदस्य देशों द्वारा नीतिगत समन्वय और सहयोग की दिशा में आगे बढ़कर वैश्विक वित्तीय बाजार की स्थिरता के लिए मुद्रानीति को और प्रभावी बनाने पर जोर देना रेखांकित करता है कि दिल्ली समिट अपने लक्ष्यों को साधने में सफल रही है। सदस्य देशों द्वारा मौजूदा आर्थिक ठहराव से उबरने और विश्व में रोजगारोन्मुख माहौल निर्मित करने के लिए सरकारी खर्च और वित्तीय अनुशासन के मध्य संतुलन स्थापित करने की मंशा भी उम्मीदों को जगाने वाला है।
÷लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं÷