लेखक- अमित सिंघल
अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में यह माना जाता है कि सरकार या किसी अन्य गैर-सरकारी समूह द्वारा किसी एक समुदाय पर अतीत में किये गए नृशंस अपराधों की जांच करके सत्य को उजागर करना चाहिए, ताकि उस पीड़ित समुदाय में अतीत से उत्पन्न उबलते असंतोष को शांत किया जा सके।
ऐसी जांच वाले आयोग को सत्य और सुलह आयोग (truth and reconciliation commission) कहा जाता है।
जब इस प्रक्रिया द्वारा सत्य सार्वजनिक हो जाता है, तब एक – transitional justice – या संक्रमणकालीन न्याय द्वारा बड़े पैमाने पर किये गए गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के बारे में कठिन प्रश्न पूछा जाता है और पीड़ितों को न्याय दिलवाया जाता है।
कनाडा, अमेरिका, साउथ अफ्रीका इत्यादि राष्ट्रों में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जहाँ मूलनिवासियों के साथ सौ-डेढ़ सौ वर्ष पूर्व किये गए अत्याचार – जैसे कि श्वेत द्वारा अश्वेत के विरुद्ध, या फिर ईसाइयों द्वारा मूलनिवासियों की संस्कृति को जबरन बदलवाने – के लिए न्याय दिलवाने का प्रयास किया गया था। इस प्रक्रिया द्वारा पाश्विक उन अत्याचारों को उजागर किया जाता है, फिर पीड़ित समाज के सांस्कृतिक विरासत को पुनर्स्थापित किया जाता है और/या उनकी वित्तीय क्षतिपूर्ति की जाती है।
पिछले माह विलियम डैलरिम्पल (William Dalrymple) की पुस्तक The Golden Road: How Ancient India Transformed the World पढ़ी।
डैलरिम्पल लिखते है कि 13वी एवं 14वी शताब्दी में हिन्दू, जैन एवं बुद्धिस्ट मंदिरो का व्यापक विध्वंस किया गया था। तुर्की सुल्तान “ऊर्जावान मूर्तिभंजक” थे और उन्होंने भारत में मंदिरो को तोड़कर उसके ऊपर मस्जिद बनवाई थी जिनके निशान अभी भी देखे जा सकते है।
फिर वह लिखते है कि नेहरू के शासनकाल में भारतीय विद्यालयों की पुस्तके कांग्रेस-समर्थक वामपंथियों ने लिखी थी। इन इतिहासकारो ने आक्रमणकारियों द्वारा की गयी हिंसा एवं मूर्तिभंजन को दबा दिया था। उन्होंने कदाचित ऐसा राष्ट्र निर्माण के हित में किया था क्योकि विभाजन के बाद व्यापक हिंसा हुई थी।
डैलरिम्पल कहते है लेकिन अब भाजपा सरकार के शासन में भारत में लगभग सभी लोगो को मध्ययुगीन इंडो-इस्लामिक इतिहास एवं हिन्दू मंदिरो के विध्वंस के बारे में पता है।
डैलरिम्पल को वामपंथी इतिहासकार माना जाता है। वह दिल्ली में सपरिवार पिछले 30 वर्षो से रह रहा है। राष्ट्रवादी इसे जयपुर डायलाग का कार्यक्रम राजस्थान में कांग्रेस सरकार के समय में कैंसिल करवाने का जिम्मेवार मानते है और उसे गरियाते रहते है ।
लेकिन मोदी शासन के 15 वर्षो और उसके बाद भी भाजपा सरकार की भारी सम्भावना ने डैलरिम्पल को सच लिखने के लिए विवश कर दिया।
भारत सरकार को भी सत्य और सुलह आयोग स्थापित करना चाहिए जिसमे मध्ययुगीन इंडो-इस्लामिक इतिहास एवं हिन्दू मंदिरो के विध्वंस तथा कश्मीर में 1989 के बाद हिन्दुओ पर किये गए पाश्विक अत्याचारों को सामने लाना चाहिए। फिर transitional justice द्वारा हिन्दुओ को उनकी सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत को पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए।
भारत में सांप्रदायिक सौहार्द तभी स्थापित हो पायेगा, ना कि एक नेता की एक तरफा मोहब्बत की दुकान से! ।
(लेखक रिटायर्ड IRS अफ़सर हैं)