लेखक-अरविंद जयतिलक
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर सियासी जंग जीत ली है। ट्रंप की जीत इस मायने में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि अमेरिका में ऐसा सिर्फ दूसरी बार घटित हुआ है जब कोई राष्ट्रपति एक चुनाव हारने के बाद पुनः चार वर्ष बाद सत्ता की चौखट को लांघा है। यह जीत इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि रिपब्लिकन पार्टी ने सीनेट में भी बहुमत हासिल की है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति बनने के लिए कुल 538 इलेक्टोरल वोट में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने 277 और उनकी प्रतिद्वंदी डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस ने 224 वोट हासिल की है। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक 270 वोटों से भी अधिक मत हासिल कर अपनी लोकप्रियता को रेखंाकित किया है। डोनाल्ड ट्रम्प को देश-दुनिया से मिल रही बधाई के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई दी है।
उन्होंने कहा है कि वे भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत करने के लिए मिलकर काम करने को उत्सुक हैं। डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच बेहतरीन दोस्ती है। दोनों नेताओं ने वैश्विक मंचों के जरिए इस दोस्ती को सार्वजनिक भी की है। अब जब डोनाल्ड ट्रम्प दूसरी बार अमेरिकी सत्ता की कमान थामने जा रहे हैं तो ऐसे में भारतीय हितों की कसौटी पर उनके खरा उतरने को लेकर बहस होना लाजिमी है। वैसे उनके पहले कार्यकाल को देखें तो आभास होता है कि दोनों देशों के बीच सामरिक और कारोबारी रिश्ते मजबूत होंगे। देखें तो इसका संकेत डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव प्रचार के दौरान ही मिलना शुरु हो गया। उन्होंने भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने के साथ ही अपनी प्राथमिकता में अमेरिका को पुनः महान बनाने की संकल्पना जाहिर की है। उनके चुनावी टोन पर नजर डालें तो उन्होंने अमेरिका में मुस्लिम माइग्रेशन को अहम खतरा मानते हुए घुसपैठ के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है। उनका अवैध प्रवास का मुद्दा जनता से कनेक्ट कर गया। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान दो टूक कहा कि अमेरिकी नागरिकों की गाढ़ी कमाई का हिस्सा अवैध प्रवासियों पर खर्च नहीं होने देंगे। उन्होंने वादा किया कि अगर वे चुनाव जीतते हैं तो अवैध प्रवासियों को अमेरिका से बाहर का रास्ता दिखाएंगे। उन्होने राष्ट्रवाद को हथियार बनाकर चुनाव लड़ा और कामयाब रहे। अब उन्हें अपने किए गए वादे पर खरा उतरने की चुनौती होगी। गौर करें तो अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर ट्रंप और मोदी की सोच एक जैसी है।
जहां ट्रंप अमेरिका में अवैघ घुसपैठ रोकने के लिए मैक्सिको से लगी सीमा पर दीवार बना रहे हैं वहीं मोदी अवैध घुसपैठ से निपटने के लिए सीएए और एनआरसी जैसी पॉलिसी को धार दे रहे हैं। अगर भारत समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ता है तो उम्मीद किया जाना चाहिए कि बाइडन प्रशासन के मुकाबले टंªप प्रशासन का जोरदार समर्थन हासिल होगा। अगर डोनाल्ड ट्रंप किए गए वादे के मुताबिक अवैध घुसपैठ और आतंकवाद पर आक्रामक रुख अख्तियार करते हैं तो यह भारत के लिए अनुकूल होगा। ऐसा इसलिए कि भारत भी इस्लामिक आतंकवाद और घुसपैठ जैसी खतरनाक समस्याओं से जूझ रहा है। ऐसे में भारत भी अमेरिका की तर्ज पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और बांगलादेशी घुसपैठ के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करेगा। फिर ट्रंप प्रशासन बाइडन प्रशासन की तरह मानवाधिकार का अनर्गल सवाल उठाकर भारत की घेराबंदी नहीं करेगा। ऐसा इसलिए कि ट्रंप ने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी आर्थिक मदद का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों पर खर्च करने के कारण कई आर्थिक प्रतिबंध थोपे थे। आज भी पाकिस्तान को लेकर उनका नजरिया वैसा ही है। इसीलिए ट्रंप के जीत से पाकिस्तान सहमा हुआ है। उसे डर है कि बाइडन सरकार की तरह अब उसे आर्थिक मदद मिलना आसान नहीं होगा। पाकिस्तान की तरह चीन भी टंªप की वापसी से खुश नहीं है।
इसलिए कि ट्रंप चीन के विस्तारवादी नीति के खिलाफ रहे हैं। उन्होंने पहले कालखंड में क्वॉड को मजबूती देते हुए चीन को कड़ी चुनौती पेश की थी। तब चीन चिढ़ गया था। माना जा रहा है कि चीन के बढ़ते आर्थिक दबदबे को रोकने के लिए ट्रंप सरकार उसके माल पर ज्यादा से ज्यादा इंपोर्ट ड्यूटी लगा सकता है। वे पहले कार्यकाल में भी इस नीति को आजमा चुके हैं। अगर ऐसा हुआ तो यह स्थिति भारत के अनुकूल होगा। चीन के मुकाबले भारत में निवेश बढ़ेगा। लेकिन ध्यान देना होगा कि भारत में अमेरिकी उत्पादों पर लगने वाले टैरिफ से डोनाल्ड ट्रंप सहमत नहीं हैं। याद होगा उन्होंने भारत से स्टील और एल्यूमिनियम के आयात पर डृयूटी लगा दी थी। वे चाहते हैं कि भारत के कई ड्यूटी फ्री उत्पाद टैक्स के दायरे में हो। समझना होगा कि डोनाल्ड टंªप ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नारे के साथ सत्ता में लौट रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए उनकी अमेरिका केंद्रित नीतियों से तालमेल बिठाना आसान नहीं होगा। लेकिन ट्रंप भी अच्छी तरह अवगत हैं कि भारत दुनिया का विशाल बाजार है। भारत को नाराज करके अपनी आर्थिक ताकत को मजबूत नहीं किया जा सकता। गौर करें तो विगत कुछ वर्षों से भारत और कनाडा के रिश्तों में तल्खी बढ़ी है। हालात इस तरह खराब हुए कि दोनों देश अपने-अपने राजनयिकों को वापस बुला लिए हैं। इस तनाव के लिए मुख्य रुप से खालिस्तानी आतंकी और समर्थक जिम्मेदार हैं। इन्हें कनाडा की जस्टिन ट्रुडो सरकार का समर्थन और संरक्षण हासिल है।
कनाडाई सरकार के नरम रुख के कारण ही खालिस्तान समर्थक वहां भारत के खिलाफ माहौल निर्मित कर हिंदुओं को परेशान कर रहे हैं। हिंदू मंदिरों पर हमला कर पुजारियों को डरा-धमका रहे हैं। कनाडा की सरकार उन्हें शह दे रही है। यही नहीं वह मारे गए खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के लिए भारत पर किस्म-किस्म का गंभीर आरोप लगा रही है। दुर्भाग्यपूर्ण यह कि अमेरिका का बाइडन प्रशासन इस मसले पर कनाडा सरकार के साथ है। बाइडन प्रशासन अच्छी तरह जानता है कि खालिस्तानी आतंकी गुरुपतवंत सिंह पन्नू अमेरिका में शरण लिए हुए है। बावजूद इसके उस पर कार्रवाई को तैयार नहीं है। इससे भारत में कनाडा और अमेरिका दोनों को लेकर बेहद नाराजगी है। अब डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी के बाद उम्मीद जगी है कि गुरुपतवंत सिंह जैसे आतंकी के खिलाफ कार्रवाई होगी। चूंकि ट्रंप आतंकवाद के खिलाफ दम भरते हैं लिहाजा उन पर भारत विरोधी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ेगा। भारत की कोशिश होगी कि न सिर्फ खालिस्तानी आतंकी गुरुपतवंत सिंह के खिलाफ ठोस कार्रवाई हो बल्कि ट्रुडो सरकार की भी बांह मरोड़ी जाए। ट्रंप सरकार ऐसा इसलिए कर सकती है कि जस्टिन ट्रुडो सरकार की नीतियां रिपब्लिकन नीतियों से बिल्कुल ही मेल नहीं खाती है। बल्कि डेमोक्रेटिक सरकार के अनुकूल मानी जाती है। ऐसे में उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने मित्र ट्रंप के जरिए कनाडा सरकार पर दबाव बना सकती है। ट्रंप के सरकार में आने से उम्मीद किया जाना चाहिए कि भारत को अमेरिका से आधुनिक हथियारों की सप्लाई में रुकावट नहीं आएगी। हां, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में जरुर दिक्कतें हो सकती हैं।
लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए डोनाल्ड ट्रंप को मनाना ज्यादा कठिन नहीं होगा। यहां ध्यान देना होगा कि ट्रम्प की नीतियां अप्रवासियों को लेकर बेहद सख्त रही है। उनके पहले कार्यकाल में भारतीय पेशेवरों को अमेरिका में काम करने के लिए मिलने वाले एच वनबी वीजा लेने में काफी दिक्कतें आई थी। इस बार भी अप्रवासी पेशेवरों को लेकर ट्रम्प का रुख कड़ा है। ऐसे में भारतीय पेशेवरों के लिए भी अमेरिका में रोजगार पाना आसान नहीं होगा। इसके लिए भारत सरकार को टंªप प्रशासन से ठीकठाक समन्वय स्थापित करना होगा। ऐसा इसलिए कि अमेरिका में बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है। ट्रंप चुनाव के दौरान महंगाई और बेरोजगारी खत्म करने का वादा किए हैं। अपने नागरिकों को नौकरी देना उनकी शीर्ष प्राथमिकता में हैं। उनका स्पष्ट माानना है कि अमेरिकी नौकरियों पर पहला हक अमेरिकी नागरिकों का होना चाहिए। जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी की नीति ठीक इसके उलट थी। इन परिस्थितियों के बीच देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप भारतीय हितों के कितना अनुकूल साबित होते हैं।
(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)