लेखक – एन एल फ्रांसिस
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो साकार नारायण स्वरूप पिछले कई वर्षों से अपने अनुयायियों को मानवता, प्रेम, सेवा, सद्भावना, सत्कर्म और पुण्य कमाने का पाठ पढ़ा रहा हैं, इस दुख, संताप -पीड़ा के समय अपने अनुयायियों की मदद और उन्हें सांत्वना देने के लिए आगे आने की बजाय छिप क्यों रहा है?
अनेक धर्मों, मान्यताओं और भाषाओं वाले देश भारत में प्राचीन काल से ही हजारों-लाखों श्रद्धालु आयोजित होने वाले धार्मिक उत्सवों और समारोहों में शामिल होते रहे हैं। ऐसे तीर्थस्थलों पर लोगों की ‘जल्दी आओ और जल्दी लौट जाओ’ की प्रवृत्ति के कारण होने वाली भगदड़ में बड़ी संख्या में कीमती जानें जा रही हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस में सिकंदराराऊ के पास फुलरई के एक खेत में मंगलवार को साकार नारायण स्वरूप उर्फ सूरजपाल जाटव के सत्संग के समापन के बाद मची भगदड़ में सौ से अधिक लोगों की मौत की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।
कहा जाता है कि साकार नारायण स्वरूप उर्फ सूरजपाल जाटव अपने अनुयायियों को मानवता, प्रेम, सेवा, सद्भाव, सत्कर्म, पुण्य अर्जन, का पाठ पढ़ाते हैं। यही सब तो बतते हैं वो। अब उनके भक्त उनको साकार नारायण मानते हैं तो इसमें कोई क्या कर सकता है? बताते हैं जब बाबा का काफिला जाने लगा तो सेवादारों ने करीब पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं को रोक दिया। सत्संग के लिए जो पंडाल बनाया गया था उसका निकास द्वार संकरा था और लगातार वर्षा के कारण वहां दलदल हो चुकी थी। प्रवचन समाप्त होने के बाद ‘नारायण साकार हरि’ के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के लिए श्रद्धालु उसकी गाड़ी के पीछे भागे, जिस वजह से भगदड़ मची जिससे लोग सड़क के किनारे दलदल में गिरने लगे जो गिरा वो उठ न सका और पीछे वाले लोग उन्हें रौंदते चले गए।
सवाल उठता है कि इतना बड़ा आयोजन बिना पुख्ता इंतजाम के किसकी अनुमति से किया जा रहा था? क्या सुरक्षा मानकों का पालन किया गया? क्या इतने बड़े आयोजन की सुरक्षा का जिम्मा पुलिस-प्रशासन का नहीं होता? जाहिर है मौतों के बढ़ते आंकड़ों के साथ ही घटना पर लीपापोती की कोशिश भी की जाती रहेगी। निस्संदेह, ऐसे बाबाओं की दुकान बिना राजनेताओं के वरदहस्त के चलनी संभव नहीं है।
सवाल उठना स्वाभाविक है कि भीड़ के बीच होने वाले हादसों को कैसे रोका जाए। दो साल पहले माता वैष्णो देवी परिसर में भगदड़ में बारह श्रद्धालुओं की मौत हुई थी। अप्रैल 23 में बनारस की भगदड़ में 24 लोग मरे थे। इंदौर में पिछले साल रामनवमी के दिन बावड़ी की छत गिरने से पैंतीस लोग मर गये थे। इसी तरह 2016 में केरल के कोल्लम के एक मंदिर में आग लगने से 108 लोगों की मौत हुई और दो से अधिक घायल हुए थे। पंजाब के अमृतसर में दशहरे के मौके पर रावण दहन देख रहे साठ लोगों के ट्रेन से कुचलकर मरने की घटना को नहीं भूले हैं। देश में भीड़ की भगदड़ से होने वाले 70 फीसदी हादसे धार्मिक आयोजनों के दौरान ही होते हैं।
इसे रोकने को नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने भी कुछ गाइडलाइन जारी की थी। जिसमें राज्य सरकार, स्थानीय अधिकारियों, प्रशासन व आयोजकों को दिशा-निर्देश दिए गए थे। जिसके लिये भीड़ प्रबंधन से जुड़े लोगों की क्षमता विकसित करने व बेहतर प्रशिक्षण का सुझाव शामिल था। प्रशासन से भीड़ के व्यवहार व मनोविज्ञान का अध्ययन कर भीड़ प्रबंधन की बेहतर तकनीक विकसित करने को कहा गया था। जिसमें तिरुपति मंदिर हेतु आईआईएम अहमदाबाद की व्यवस्था की केस स्टडी भी शामिल थी। पुलिस को भी सख्ती के बजाय अच्छे व्यवहार के लिये कहा गया था। मगर रिपोर्ट का आज भी जमीन पर असर होता नहीं दिख रहा है।
अगर कल की घटना की बात करें तो यह कार्यक्रम ‘मानव मंगल सद्भावना समागम समिति’ द्वारा आयोजित किया गया था, जिसे लेकर हाथरस में जगह-जगह पोस्टर लगाए गए थे। इस बीच प्रशासन ने आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है, जबकि साकार नारायण स्वरूप भूमिगत हो गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है, कि जो साकार नारायण स्वरूप पिछले कई वर्षों से अपने अनुयायियों को मानवता, प्रेम, सेवा, सद्भावना, सत्कर्म और पुण्य कमाने का पाठ पढ़ा रहा हैं, इस दुख, संताप -पीड़ा के समय अपने अनुयायियों की मदद और उन्हें सांत्वना देने के लिए आगे आने की बजाय छिप क्यों रहा है ?

(लेखक पुअर लिब्रेशन क्रिश्चियन मुवमेंट के प्रेसिडेंट हैं और यह उनके निजी विचार हैं)