लेखक-अरविंद जयतिलक
♂÷प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा ने दोनों देशों के रिश्ते को मिठास से भर दिया है। बैस्टील डे परेड प्रोग्राम में गेस्ट आॅफ आॅनर के तौर पर शामिल प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को ग्लोबल साउथ का एक मजबूत कंधा बताते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था और विकास में भारत की भूमिका को अग्रणी बताया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नाॅर्थ के बीच एक पुल की तरह काम कर सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस के साथ रिश्ते को संदर्भित करते हुए कहा कि दोनों के साझा मकसद हैं। आतंक की लड़ाई में भारत फ्रांस के साथ है। दोनों देश 25 वर्ष की भरोसे की मजबूत नींव पर अपने कर्तव्यों की निर्वहन कर रहे हैं। रक्षा सहयोग दोनों देशों के संबंधों का आधार है। प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस को ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत का महत्वपूर्ण साझाीदार बताते हुए सुनिश्चित किया कि दोनों देश पनडुब्बी हो या नौसैनिक विमान सभी क्षेत्र में कंधा जोड़ आगे बढ़ने को तैयार हैं। दोनों देशों ने ‘भारत-फ्रांस हिंद-प्रशांत रोडमैप’ जारी करते हुए रणनीतिक रुप से महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक संतुलित और स्थिर व्यवस्था बनाने पर सहमत हुए हैं। गौरतलब है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रीयूनियन द्वीप, न्यूकैलेडोनिया और फ्रेंच पोलिनेशिया जैसे क्षेत्रों में व्यापक उपस्थिति है। इस पहल से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागिरी पर रोक लगेगी। दोनों देशों के बीच कितना मधुर संबंध है इसी से समझा जा सकता है कि फ्रांस ने पधानमंत्री मोदी को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रैंड क्राॅस आॅफ द लीजन आॅफ आॅनर’ से सम्मानित किया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों भी बेहद उत्साहित दिखे और उन्होंने कहा कि विश्व इतिहास में एक दिग्गज, भविष्य में एक निर्णायक भूमिका निभाने वाला, रणनीतिक साझेदार एक मित्र का स्वागत करने पर उन्हें गर्व है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा इस मायने में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों का यह 25 वां साल है। याद होगा जब 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया तब उससे नाराज होकर दुनिया के ताकतवर मुल्क भारत पर प्रतिबंध थोपा। तब फ्रांस ने भारत के साथ कंधा जोड़ते हुए रणनीतिक समझौते को व्यापक आयाम दिया। फ्रांस लगातार भारतीय सेना को लडाकू जेट व पनडुब्बियों समेत साजो-सामान की आपूर्ति करता रहा। गौर करें तो 2018 के बाद से फ्रांस भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता देश बन चुका है। मौजूदा समय में भारत अपनी कुल रक्षा आयात का तकरीबन 29 फीसदी फ्रांस से करता है। दोनों देशों के बीच बढ़ती निकटता ने कारोबारी, रणनीतिक और सामरिक कुटनीति को नए क्षितिज पर पहुंचा दिया है। दोनों देश एकदूसरे के सैनिक अड्डे का इस्तेमाल और वहां अपने युद्धपोत रखने के अलावा उर्जा, तस्करी, आव्रजन, शिक्षा, रेलवे, पर्यावरण, परमाणु, आतंकवाद और अंतरिक्ष मामलों में मिलकर काम कर रहे हैं। फ्रांस आत्मनिर्भर भारत मुहिम का साझीदार बनने के साथ-साथ 2025 तक बीस हजार भारतीय छात्रों को अपने यहां पढ़ाई का सुअवसर उपलब्ध कराने का एलान पहले ही कर चुका है। उल्लेखनीय है कि 2019 में 10 हजार भारतीय छात्रों ने फ्रांस में उच्च शिक्षा के लिए आवेदन किया था। इस मुहिम से दोनों देशों के बीच नए व्यवसायों, स्टार्ट-अप और नवाचार को गति मिल रही है। आर्थिक कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की इस बार की यात्रा से यूपीआई को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति बनी है। साथ ही फ्रांस में मास्टर्स कर रहे भारतीय छात्रों को 5 वर्ष का वर्क वीजा मिलने का रास्ता भी साफ हो गया है। विगत 25 वर्षों के दरम्यान दोनों देशों के बीच साझेदारी और समझदारी का ही परिणाम है कि आज भारत में विदेशी निवेश के लिहाज से फ्रांस तीसरा सबसे बड़ा निवेशक देश बन चुका है। भारत में 1000 से अधिक फ्रांस की कंपनियां काम कर रही हैं और सभी कंपनियों का संयुक्त टर्नओवर तकरीबन 30 अरब डाॅलर से अधिक है। विचार करें तो दोनों देशों के बीच आर्थिक व सामरिक क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग का मूल आधार विकसित रणनीतिक-राजनीतिक समझदारी है। विगत ढ़ाई दशकों में भारत-फ्रांस संबंध को एक नया आयाम मिला है और दोनों देश राजनीतिक, आर्थिक व सामरिक संबंधों में बेहतरी के लिए गंभीर प्रयास किए हंै। फ्रांस के नेतृत्व के दृष्टिकोण में बदलाव के साथ-साथ कुछ द्विपक्षीय बाध्यताओं ने भी दोनों देशों को एकदूसरे के निकट लाया है। यह तथ्य है कि चीन युद्ध के बाद भारत न केवल महाशक्तियों अपितु अफ्रीका व एशियाई देशों से भी अलग-थलग पड़ गया था। भारत को एक ऐसे देश के प्रति आकृष्ट होना स्वाभाविक था जिससे उसका काई क्षेत्रीय विवाद न रहा हो। इसके अलावा 1962 में भारत व फ्रांस के बीच क्षेत्रों के हस्तांतरण संबंधी संधि के अनुमोदन ने दोनों देशों के संबंधों में मिठास घोला। तथ्य यह भी कि फ्रांस सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारतीय प्रयास का समर्थन करने वाले प्रथम देशों में से एक था। वह आज भी अपने पुराने रुख पर कायम है। दरअसल दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व में कई द्विपक्षीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विषयों के संबंध में समान सोच है। हालांकि विदेश नीति के विरोधी अभिमुखन के कारण दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दों पर कई बार विरोधी रुख भी अपनाए हैं। मसलन हिंद-चीन क्षेत्र की स्वतंत्रता मुद्दे पर जहां भारत ने दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र की आजादी की बात पर बल दिया, वहीं फ्रांस लगातार औपनिवेशिक स्थिति बनाए रखने का पक्षधर रहा। दोनों देशों ने मोरक्को, तुनीसिया और अल्जीरिया की उपनिवेशिक स्थिति पर विरोधात्मक विचार प्रकट किए। 1956 में मिस्र द्वारा स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर भी भारत ने बहुत सशक्त रुप से फ्रांस व ब्रिटेन के संयुक्त प्रयास का विरोध किया। इस संयुक्त हस्तक्षेप के विरोध में भारत ने मिस्र का साथ दिया। 1958 में डी गाॅल के फ्रांस के सत्ता संभालने के बाद दोनों देशों के संबंधों में बदलाव आना शुरु हो गया। 1959 में दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग विकसित करने की संधि पर हस्ताक्षर किए गए। आर्थिक संबंधों में सुधार के कारण दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने की कोशिश की तथा व्यापार के उचित आदान-प्रदान हेतु एक संयुक्त आयोग की स्थापना की। 1973 में फ्रांस के तत्कालीन अर्थव्यवस्था एवं वित्तमंत्री वेलेरी जिसकार्ड जो बाद में फ्रांस के राष्ट्रपति भी बने, की पहल पर ‘भारत-फ्रांस अध्ययन समूह’ की स्थापना हुई। इस समूह की पहली बैठक फरवरी 1974 में फ्रांस में हुई तथा दूसरी बैठक मार्च 1975 में नई दिल्ली में हुई। इस समूह की सलाह पर दोनों देशों के मध्य समुद्री तेल उत्खनन, शक्ति उत्पादन व वितरण, कोयला उत्खनन व प्रयोग तथा तीसरे देश में संयुक्त उद्यम स्थापित करने संबंधित कई अहम समझौते पर हस्ताक्षर हुए। सबसे महत्वपूर्ण बात जो दोनों देशों के व्यापार में अहम है वह यह कि 1994 के बाद व्यापार संतुलन हमेशा भारत के पक्ष में बना हुआ है। गौर करें तो भारत व फ्रांस के मध्य नजदीकियां विकसित होने का मुख्य कारण द्विपक्षीय सहयोग के साथ-साथ फ्रांस का तीसरी दुनिया के प्रति दृष्टिकोण भी रहा है। सामरिक लिहाज से भी दोनों देशों के बीच परंपरागत जुड़ाव है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के उपरांत भारत दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय शक्ति के रुप में उभरकर सामने आया। दशकों तक वह अपने रक्षा उत्पादन में पूर्व सोवियत संघ पर निर्भर रहा। लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य में सामरिक सहयोग के क्षेत्र में भारत व फ्रांस की निकटता बढ़ी है। 1976 में फ्रांस ने भारत में मिराज एफ-1 लड़ाकू विमानों के उत्पादन हेतु उद्यम लगाने की पेशकश की। भारत की कंपनी हिंदुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड बंगलौर के साथ एक बहुकार्यात्मकता व एक इंजन पर आधारित हल्का हेलीकाॅप्टर बनाने का समझौता किया। उल्लेखनीय है कि भारत इंडियन एयरफोर्स के लिए फ्रांस से 36 राफेल युद्धक विमान प्राप्त कर चुका है। इसके अलावा भारत फ्रांस से राफेल लडाकू विमानों के 26 नौसैनिक प्रारुपों और फ्रांस द्वारा डिजाइन की गयी तीन स्काॅर्पीन श्रेणी पनडुब्बियों के खरीद के प्रस्तावों को भी मंजूरी दे चुका है। निःसंदेह इस पहल से भारत की सामरिक शक्ति मजबूत होगी।

÷लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं÷