लेखक-अरविंद जयतिलक
थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को एक मंच पर लाने वाला ‘बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) शिखर सम्मेलन संपन्न हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन के जरिए क्षेत्र में सहयोग और समन्वय बढ़ाने की पहल के साथ बैंकॉक विजन 2030 तक का रोडमैप खींच दिया। उन्होंने आर्थिक एकीकरण और कनेक्टिविटी पर जोर देते हुए व्यापार बाधाओं को कम करने, डिजिटल व्यापार एवं ई-कामर्स का विस्तार करने पर बल दिया। साथ ही उन्होंने सीमा पार लेन-देन को सुव्यवस्थित करने के लिए बिम्सटेक डिजिटल व्यापार मंच की सार्थकता को भी रेखांकित किया। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने भारत के यूपीआई को बिम्सटेक सदस्य देशों की भुगतान सिस्टम से जोड़ने का आह्नान किया ताकि क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई दी जा सके। अगर सदस्य देश इसमें दिलचस्पी दिखाते हैं तो निःसंदेह इस क्षेत्र में व्यापार, व्यवसाय और पर्यटन को पंख लगना तय है। जिस तरह दुनिया भर में व्यापारिक तनाव बढ़ रहा है और टैरिफ वार चल रहा है उस परिप्रेक्ष्य में बिम्सटेक क्षेत्र में स्थानीय मुद्रा में व्यापार की संभावनाएं अर्थव्यवस्था को नई गति दे सकती है। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी व्यवहारिकता को समझने-परखने के लिए एक अध्ययन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने आतंकवाद निरोध और समुद्री सुरक्षा पर बल देते हुए मानव संसाधन अवसंरचना के संगठित विकास के लिए बिम्सटेक (बोधि) पहल का भी एलान किया। इसका उद्देश्य भारत में प्रत्येक वर्ष तीन सैकड़ा युवाओं को प्रशिक्षित करना है। शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस के साथ बैठक कर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भी सवाल उठाया। देखना दिलचस्प होगा कि मुहम्मद यूनुस इसे कितनी गंभीरता से लेते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी देश म्यांमार को भी आश्वस्त किया कि वहां आए भीषण भूकंप से निपटने में भारत का सहयोग जारी रहेगा। गौर करें तो इस शिखर सम्मेलन के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने बिम्सटेक को प्रभावी बनाने की हर संभव पहल की है। ध्यान देना होगा कि मौजूदा समय में वैश्विक परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं। ऐसे में बिम्सटेक को प्रभावी बनाना न सिर्फ दक्षिण व पूर्वी एशिया के हित में है बल्कि यह क्षेत्रीय मंच समूचे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन सकता है। शिखर सम्मेलन में बनी सहमति के इन प्रभावी सुझावों को मूर्त रुप दिया जाता है तो निःसंदेह बिम्सटेक की उपादेयता बढ़ेगी। उल्लेखनीय है कि बिम्सटेक यानी बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम की स्थापना 1997 में हुई। यह बंगाल की खाड़ी से तटवर्ती या समीपी देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग संगठन है। गौर करें तो बिम्सटेक क्षेत्र प्राकृतिक साधनों, जनशक्ति तथा प्रतिभा से भरपूर है। विश्व की 22 फीसद आबादी इस क्षेत्र में रहती है और इसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 2500 अरब डॉलर है। अगर सदस्य देश सामंजस्य बनाकर कार्य करते हैं तो इससे इस क्षेत्र में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा और कुपोषण से लड़ने में मदद मिलेगी। अच्छी बात है कि बिम्सटेक ने अपने हर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय लिए हैं। इन निर्णयों का ही प्रतिफल है कि आज बिम्सटेक देशों के बीच आर्थिक गतिविधियां तेज हुई हैं। आज बंगलादेश भारत की सबसे गतिशील मंडियों में से एक है। भारत ने बंगलादेश के हित के लिए कई सेक्टरों की वस्तुओं के आयात पर टैरिफ रियायतें दी है। इसी तरह भारत-नेपाल आर्थिक-तकनीकी संबंधों में भी प्रगाढ़ता आयी है। नेपाल के विकास कार्यों में सबसे अधिक धन भारत लगा रहा है। दोनों देश चीनी, कागज, सीमेंट जैसे औद्योगिक साझा उद्यम में मिलकर काम कर रहे हैं। आज नेपाल के कुल पूंजी निवेश में लगभग 36 फीसद पूंजी निवेश भारत करता है। भारत सरकार औसतन वार्षिक बजट का लगभग 60 से 75 करोड़ रुपए नेपाल को पर्याप्त सहायता पैकेज के रुप में देती है। बिम्सटेक के सदस्य देश भूटान की कृषि, सिंचाई, सड़क परियोजनाओं में भारत निरंतर सहयोग कर रहा है। भूटान की चुक्ख हाईडिल परियोजना एवं पेनडेना सीमेंट संयंत्र खोलने के लिए भारत ने बड़ी धनराशि मुहैया करायी है। भूटान के सचिवालय के निर्माण तथा पुराने मठों तथा विहारों के जीर्णोंद्धार में भी भारत मदद कर रहा है। इसके अलावा भारत उसे केरोसिन और तेल की सब्सिडी भी देता है। बिम्सटेक के अन्य सदस्य देश म्यांमार, श्रीलंका और थाइलैंड के साथ भी भारत के गहरे रिश्ते हैं। म्यांमार में लोकतंत्र के उदय में भारत की अहम भूमिका रही है। वह इन देशों के साथ कृषि, वानिकी, पर्यटन, होटल, दूरसंचार जैसे अनगिनत परियोजनाओं पर मिलकर काम कर रहा है। लेकिन इसके बावजूद भी बिम्सटेक क्षेत्र में रुकावटें और चुनौतियां बनी हुई है जिससे बिम्सटेक को अपना लक्ष्य साधने में कठिनाई हो रही है। बिम्सटेक क्षेत्र में आतंकवाद एक महत्वपूर्ण समस्या है। गोवा के शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी था कि आतंकवाद से निपटने के लिए सभी सदस्य देशों को मिलकर काम करने की जरुरत है। 31 जुलाई 2004 को बैंकाक में संपन्न बिम्सटेक की पहली शिखर बैठक और 19 दिसंबर 2005 को ढाका में संपन्न बिम्सटेक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भी आतंकवाद का मुद्दा उठा था। सभी सदस्य देशों ने इस चुनौती से मिलकर मुकाबला करने का संकल्प व्यक्त किया। लेकिन सच तो यह है कि इस दिशा में अभी तक सफलता नहीं मिली है। सच तो यह है कि बिम्सटेक क्षेत्र में आतंकी गतिविधियों पहले से भी सघन हुई है। भारत का कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्य आतंकियों के निशाने पर है। इसी तरह बंगलादेश में हूजी, जमातुल मुजाहिदीन बंगलादेश, द जाग्रत मुस्लिम बंगलादेश, इस्लामी छात्र शिविर यानी आइसीएस जैसे आतंकी संगठन पहले से मजबूत हुए है। नेपाल के रास्ते पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है। बंगलादेश और नेपाल के रास्ते भारत में नशीले पदार्थों की तस्करी और नकली नोटों का प्रवाह जारी है। इसी तरह थाईलैंड, श्रीलंका और म्यांमार वाह्य और अंदरुनी आतंकवाद के अलावा जातीय संघर्षों से झुलस रहे हैं। जब तक इन अराजक गतिविधियों पर लगाम नहीं लगेगा बिम्सटेक क्षेत्र में शांति और अर्थव्यवस्था को मजबूती नहीं मिलने वाली। बिम्सटेक के सदस्य देशों को उन आपसी मतभेदों को भी सुलझाना होगा जो आर्थिक प्रगति की राह में बाधा बना हुआ है। मसलन गंगाा-ब्रह्मपुत्र नहर बनाने के मसले पर आज भी भारत और बंगलादेश के बीच विवाद ज्यों का त्यों बना हुआ है। बांग्लादेश इसके लिए नेपाल में बड़े-बड़े जलाशय के निर्माण पर बल देकर नेपाल को इस समस्या से जोड़ना चाहता है। हर वर्ष लाखों बांग्लादेशी शरणार्थी गैर-कानूनी तरीके से भारत में प्रवेश करते हैं। ऐसा माना जाता है कि बांग्लादेशी शरणार्थी ही असम समस्या की जड़ हैं। इसे लेकर भारत बाग्लादेश से लगातार आपत्ति जताता है लेकिन बंगलादेश अपनी आंख बंद किए हुए है। कांटेदार बाड़ का मुद्दा भी दोनों देशों के बीच विवाद का कारण है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा भी अब बड़ी चुनौती बन गई है। भारत-श्रीलंका के बीच भी कई मसलों पर मतभेद है। इसमें तमिल समस्या और श्रीलंका में चीन की बढ़ती भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत श्रीलंका में तमिलों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ है। साथ ही श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में चीन की बढ़ती भागीदारी भी कई तरह की आशंकाओं को जन्म दे रही है। चीन श्रीलंका को लड़ाकू जैट विमान, परिष्कृत राडार और विमानभेदी तोपों समेत अन्य खतरनाक हथियार भी कम कीमत पर उपलब्ध करा रहा है। इसके अलावा वह हाम्बनटोटा समेत अन्य बंदरगाहों के निर्माण में भी मदद कर रहा है। चीन की मंशा श्रीलंका को व्यस्त समुद्री मार्ग का हिस्सा बनाकर हिंद महासागर में अपना ठिकाना जमाना है। बिम्सटेक के सदस्य देशों को समझना होगा कि इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति शांति व सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। इससे बिमटेस्क के सदस्य देशों की संप्रभुता प्रभावित होगी। पूंजी प्रवाह में उतार-चढ़ाव और विकसित देशों की मौद्रिक नीतियों में बदलाव के इस दौर में बिम्सटेक के लिए आवश्यक है कि वह आपसी मतभेदों को भुलाकर अर्थव्यवस्था के विकास को उत्प्रेरित करने, निवेश आकर्षित करने, उच्च आर्थिक वृद्धि बनाए रखने तथा रोजगार के अवसर सृजित करने से जुड़ी नीतियों को अमलीजामा पहनाएं।
(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)