लेखक-राजेश बैरागी
आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला न्यायाधीश दिवस है। महिलाओं से बड़ा न्यायाधीश कौन हो सकता है? किसी एक को दंडित कर दूसरे को संतुष्ट करने के सामान्य न्यायालयों के फैसलों से इतर पिता पुत्र के बीच टकराव होने पर जब एक महिला तटस्थ हो जाती है तो घर टूटने से बच जाते हैं। महिलाएं मुखर होती हैं तो किसी भी मामले में उनका निर्णय अंतिम होता है परंतु जब वे चुप रहती हैं तो उनको अनदेखा कर कोई निर्णय नहीं सुनाया जा सकता है। महिलाओं की शक्ति उनकी मुखरता और चुप्पी दोनों में है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा 28 अप्रैल, 2021 को लिए गए संकल्प संख्या 75/274 के तहत प्रतिवर्ष 10 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला न्यायाधीश दिवस मनाया जाता है। दो दिन पहले 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस था। दो दिन के अंतर से महिलाओं के पक्ष में दिवसों को मनाए जाने से महिलाओं के सशक्तिकरण के क्या मायने हैं? राकांपा (शरद पवार) की एक नेत्री रोहिणी खड़से ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं को एक खून माफ करने की मांग की है।उसी दिन केरल उच्च न्यायालय ने एक मां की अपील पर उसके पुत्र को जमानत पर रिहा करने का फैसला सुनाया। दरअसल यह दुर्भाग्यशाली मां अपने जिस पुत्र की जमानत के लिए उच्च न्यायालय तक जा पहुंची,उसी पुत्र ने उसपर मौज-मस्ती के लिए पैसे न देने पर चाकू से जानलेवा हमला किया था। जमानत का मामला उसी हमले से संबंधित था।न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन ने जमानत के आदेश में लिखा,-मुझे यकीन है कि उनके शरीर पर लगे घाव भले ही ठीक न हुए हों, लेकिन बेटे के लिए प्यार उनके घावों पर हावी हो गया है।’ क्या वह एक कमजोर मां है? क्या महिलाओं को स्वयं को सशक्त साबित करने के लिए एक खून करने की छूट दी जानी चाहिए? वीरता क्षमा में छिपी होती है। बदले की भावना पशुता की परिचायक होती है। परिस्थिति अनुसार आत्मरक्षा में खून हो जाने पर देश के कानून में पहले से क्षमा का प्रावधान है। ‘स्त्री का आभूषण लज्जा है’ या ‘स्त्री अबला होती है’ जैसी कहानियां अब इतिहास की वस्तु बन चुकी हैं। भारतीय समाज में आदिकाल से स्त्री पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। एक दूसरे का सहयोग और सम्मान ही इस गाड़ी को उसके वास्तविक गंतव्य तक पहुंचाने का एकमात्र साधन है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)