लेखक- राजेश बैरागी
दुनिया में जहां भी और जो भी शिक्षण संस्थान हैं, मैं उन सभी को धर्मस्थलों से ऊपर मानता हूं। मुझे उनके हिंदू मुस्लिम सिख या ईसाई होने से कोई अंतर नहीं पड़ता यदि वहां मनुष्य को सभ्य और शिक्षित बनाने का उद्योग किया जाता है। मैं अपने बेटे को विधि की शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय गया और उस विशाल शिक्षण संस्थान को देखकर अभिभूत हुआ। मैं जामिया, दिल्ली विश्वविद्यालय,मेरठ विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी गया हूं। मुझे वहां कोई काम नहीं था परंतु विद्यालयों को देख कर जो आत्मसंतुष्टि मुझे मिलती है वह किसी देवालय में भी नहीं मिलती। उत्तर प्रदेश के मदरसा एक्ट को संविधान सम्मत ठहराकर सुप्रीम कोर्ट ने संभवतः एक शिक्षा व्यवस्था की रक्षा ही की है। सुप्रीम कोर्ट ने मदरसों को आलिम (बारहवीं के समकक्ष) की उपाधि तक सीमित कर वहां से दी जाने वाली कामिल और फाजिल उपाधियों पर रोक लगा दी है। दरअसल शिक्षा प्रदान करना सरकार द्वारा किए जाने वाले महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है।
उत्तर प्रदेश में कुल 16513 मदरसे संचालित हैं जिनमें 17 लाख से अधिक छात्र पढ़ते हैं। इसी वर्ष 22 मार्च को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार दिया था। इससे न केवल मदरसों बल्कि उनमें पढ़ने वाले लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया था। क्या मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा वर्तमान दौर की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करती? क्या वहां आतंकवाद की शिक्षा दी जाती है? इन दोनों प्रश्नों का आधा आधा उत्तर हां और नहीं में है। दरअसल कुछ वर्षों पहले तक मदरसे दीनी तालीम के लिए ही जाने जाते थे। उनमें पढ़ने वाले अधिकांश छात्र गरीब परिवारों से आते हैं जिन्हें तालीम से ज्यादा दो वक्त के खाने की दरकार होती है।दीनी तालीम के तहत मदरसों में इस्लाम धर्म की शिक्षाओं को भी कंठस्थ कराया जाता है जिसमें अन्य धर्मों और उनके अनुयायियों के प्रति निम्नता तथा नफरत का भाव पैदा हो सकता है। आतंकवाद के लिए ऐसी शिक्षा मुफीद हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा मदरसों को मौजूदा दौर के अनुसार शिक्षा देने के लिए प्रेरित करने से अधिक दबाव डाला गया है। कट्टरपंथी और धंधेबाज मुस्लिम नेताओं ने इसे उनके धार्मिक जीवन में दखल का आरोप लगाकर विरोध किया है। यहां प्रश्न यह है कि क्या कोई कौम धार्मिक कुरीतियों के साथ तरक्की कर सकती है? मैं फिर शैक्षणिक संस्थानों की खूबसूरती पर लौटता हूं।वे किसी भी धार्मिक स्थल से बेहद खूबसूरत और पवित्र हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)