लेखक -आर एल फ्रांसिस
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिल की आड़ में भी खुन्नस भरी राजनीति की है।
उन्होंने सदन में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उन मुख्यमंत्रियों के भी इस्तीफे मांग लिए, जिनके राज्यों में बलात्कार की संख्या लगभग निरंतर है। चूंकि प्रधानमंत्री पूरे देश के संवैधानिक प्रभारी हैं, लिहाजा वह इस्तीफा दें, क्योंकि वह महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहे हैं क्या राजनीतिक मजाक है, यह ! दरअसल बलात्कार को ‘राजनीतिक हथियार’ के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, यह देश की बदनसीबी है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा में ‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक’ (आपराधिक कानून एवं संशोधन) सर्वसम्मति से पारित किया गया। कोलकाता के राधा-गोविंद कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में डॉक्टर बिटिया के रेप-मर्डर के बाद जो तनाव, गुस्सा, आक्रोश और विरोध-प्रदर्शन बंगाल के कई हिस्सों में देखे गए हैं, उन्हें शांत करने का यह एक सियासी प्रयास है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आशंका है कि इतने व्यापक विरोध से उनका परंपरागत जनाधार बिखर सकता है, लिहाजा बलात्कार, हत्या, यौन उत्पीड़न की कड़ी सजाओं के मद्देनजर उन्हें यह बिल पारित कराना पड़ा। जब सडक़ों पर जुलूस निकल रहे हों, और सरकारें डांवाडोल हो रही हों, तो इस किस्म के कानून हड़बड़ी में बनाए जाते हैं, लेकिन इनसे किसी की हिफाजत होती हो ऐसा लगता नहीं है, कानून कड़ा होने के बजाय नर्म कानून पर भी कड़ी अमल अधिक असरदार होती है।
अब बलात्कार के दोषी को फांसी की सजा देने का प्रावधान किया गया है। लेकिन सवाल है कि इसमें क्या नया है? क्या देश में पहले से बलात्कारी को फांसी देने की सजा का कानून नहीं है? दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद बलात्कारी के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया था। लेकिन क्या उसके बाद बलात्कार की घटनाओं में कमी आ गई या क्या महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध कम हो गए?
खुद ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी चिट्ठी में कहा कि देश में हर दिन 90 महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं। फिर भी उन्होंने बलात्कार या महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए कानून को सख्त बनाने का रास्ता चुना ! यह सीधे सीधे लोगों की आंख में धूल झोंकने का प्रयास है। एक किस्म का फ्रॉड है, जो इस देश की सरकारें लगातार करती हैं। लोगों के सामूहिक गुस्से को ठंडा करने के लिए इस तरह के कानून बनाए जाते हैं, जो कि हमेशा बहुत आसान होता है।
सरकार के लिए सबसे जरूरी है रेप के लिए जिम्मेदार कारकों की पहचान कर प्रयासों को उस तरफ मोड़ें। स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था करना, वर्कप्लेस को सुरक्षित बनाना, स्कूलों, कॉलेजों में असुरक्षित कोने न रहने देना और सबसे बड़ी बात पुलिस को ज्यादा संवेदनशील बनाना – ये कुछ ऐसे उपाय हैं जिन पर चर्चा होती रही है, मगर व्यवहार में इन पर अमल कम ही दिखता है। ऐसे हालात में कोई राज्य सरकार कड़ा कानून लाने जैसा राजनीतिक स्टंट करती है और सभी पार्टियां विधानसभा में उसके पक्ष में खड़ी नजर आती हैं, यह हमारी मौजूदा राजनीति की सोच और उसके चरित्र पर एक सख्त टिप्पणी है।
असल में सख्त कानून बनाना महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने का कारगर उपाय नहीं है। उलटे बलात्कार के दोषी को फांसी की सजा का प्रावधान किए जाने से बलात्कार के बाद हत्या की घटनाओं में बढ़ोतरी हो गई है। पीड़ित के जीवित रहने पर उसकी गवाही दोषी को सजा दिलाने के लिए पर्याप्त होती है। उसके नहीं रहने पर पुलिस को ठोस सबूत और गवाह जुटाने होते हैं, जिनमें कई बार मुश्किल आती है और केस कमजोर हो जाता है। कोलकाता के राधा-गोविंद कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना में भी ऐसा ही हो रहा है। हालांकि पश्चिम बंगाल के नए कानून में इस स्थिति से बचने के लिए यह प्रावधान किया गया है कि बलात्कार के बाद पीड़ित की मौत होने या उसके कोमा में जाने की स्थिति में ही फांसी दी जाएगी। इसके बावजूद इससे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाएगी ऐसा सोचना मूर्खों के स्वर्ग में रहने जैसा है।
तभी सख्त और त्वरित सजा के लिए कठोर कानून की बजाय सजा सुनिश्चित करने पर जोर होना चाहिए और उससे पहले रोकथाम के उपायों पर ध्यान देना चाहिए। भारत में आंकड़ों से यह बात प्रमाणित है कि महिलाओं के प्रति ज्यादातर अपराध घरों में या जानकार लोगों द्वारा किए जाते हैं। इनमें से अनेक अपराध ऐसे होते हैं, जिन्हें रोकना पुलिस के हाथ में नहीं होता है। हां, अगर महिलाओं को शिक्षित किया जाए और उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि वे घटना की जानकारी दें या शिकायत दर्ज कराएं तो कार्रवाई होगी तो महिलाएं सामने आएंगी। इसके अलावा कार्यस्थलों से लेकर सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं की सुरक्षा के उपाय करने की जरूरत है।
ममता बनर्जी ने बिल की आड़ में भी खुन्नस भरी राजनीति की है। उन्होंने सदन में ही प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उन मुख्यमंत्रियों के भी इस्तीफे मांग लिए, जिनके राज्यों में बलात्कार की संख्या लगभग निरंतर है। चूंकि प्रधानमंत्री पूरे देश के संवैधानिक प्रभारी हैं, लिहाजा वह इस्तीफा दें, क्योंकि वह महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहे हैं। क्या राजनीतिक मजाक है यह! दरअसल बलात्कार को ‘राजनीतिक हथियार’ के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है,यह देश की बदनसीबी है।

(लेखक पुवर कृश्चियन लिबरेशन सोसाइटी के प्रेसिडेंट हैं और यह उनके निजी विचार हैं)