लेखक~संजय राय
♂÷केरल राज्य के वायनाड से लोकसभा सदस्य कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द करने के फैसले ने लंबे अरसे बाद देश की राजनीति में एक नई हलचल मचाने का काम किया है। राहुल गांधी चाहते तो अदालत से माफी मांग कर मामले को रफा-दफा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। राहुल ने राजनीतिक शहादत का रास्ता चुना।
अब यह देखना होगा कि इस रास्ते से राहुल और कांग्रेस भाजपा को हटाकर कर दिल्ली की सत्ता तक पहुंच पायेंगे या नहीं।
उत्तर प्रदेश के अमेठी में अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने के बाद राहुल गांधी ने दक्षिण भारत का रुख किया था। वह 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल के
वायनाड लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुनकर आये थे। अब उनकी सदस्यता रद्द होने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आगे की राजनीति किस दिशा में बढ़ेगी।
भाजपा और कांग्रेस के आला नेताओं के बयान देश की भावी राजनीतिक दशा-दिशा का संकेत दे रहे हैं। अगले साल के आरंभ में ही देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। लेकिन इससे पहले ‘वायनाड’ लोकसभा क्षेत्र में छह महीने के भीतर उप चुनाव भी हो सकता है। ऐसा लग रहा है कि इस उप चुनाव की कसौटी पर राहुल गांधी को ही कसा जायेगा। जाहिर है यहां से जो भी जनादेश निकलेगा, उसका असर पूरे देश की राजनीति पर पड़ेगा।
भाजपा ने राहुल की टिप्पणी को पिछड़ी जाति के अपमान से जोड़कर बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास शुरू कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के ताजा बयान
इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। अनुमान है कि देश में ओबीसी मतदाताओं की लगभग 60 प्रतिशत आबादी है। इतने बड़े वोट बैंक को भाजपा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष द्वारा दिये गये इसी हथियार के सहारे साधने की पुरजोर कोशिश में रहेगी।
वहीं, कांग्रेस राहुल को शहीद बताकर अपने निर्जीव पड़ चुके संगठन में नई जान फूंकने का प्रयास करेगी। राहुल की सदस्यता समाप्त होने के बाद कांग्रेस मुख्यालय में लगभग 100 नेताओं ने बैठक की है। बैठक में पूर्व
पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद रहे। बैठक के बाद पार्टी के नेता जयराम रमेश ने कहा है कि इस मामले के राजनीतिक पहलू पर चर्चा हुई और तय हुआ है कि संगठन को इस विषय पर लड़ने के लिए देश भर में खड़ा किया जाये। इससे पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह कानूनी मुद्दा कम और राजनीतिक मुद्दा ज्यादा है।
राहुल पहले भी आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिये उच्चतम न्यायालय से फटकार खा चुके हैं। भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी से जुड़े एक मामले में कुछ साल पहले ही राहुल ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी की सलाह माफी मांगी थी, जिसके बाद मामला रफा-दफा हो गया था। लेकिन इस बार उन्होंने माफी नहीं मांगी है। पहले भी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में चार सांसदों की सदस्यता किसी न किसी मामले में इसी तरह जा चुकी है।
बहरहाल, अब राजनीति के मैदान में रोचक युद्ध देखने को मिलेगा। यह कांग्रेस के भविष्य के लिये जीवन-मरण का युद्ध होगा। फिलहाल इस लड़ाई में कांग्रेस कमजोर दिख रही है।
भाजपा सत्ता में है। सत्ता के सौ हाथ होते हैं। कमजोर और बिखरा विपक्ष भाजपा को मजबूत स्थिति में बनाये हुए है। लेकिन जनता की अदालत में कमजोर कब मजबूत हो जाये कहा नहीं जा सकता है।
बिखरा विपक्ष इस मजबूती को अपनी एकजुटता से कमजोर कर सकता है, लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा है। विपक्षी दल राहुल को गठबंधन का नेता मानने को तैयार नहीं हैं। महाभारत में कमजोर की ही जीत हुई थी। देश की राजनीति में कमजोर पड़ चुकी इंदिरा गांधी को जनता ने 1980 दोबारा सत्ता पर बैठाया था। यह देखना रोचक होगा कि इस बार 1980 का इतिहास दोहराया जायेगा कि नहीं।

÷लेखक”आज”अखबार के दिल्ली में कार्यरत नेशनल ब्यूरो इन चीफ़ हैं÷