लेखक- राघवेंद्र पाठक
√ डोनाल्ड ट्रंप का सत्तासीन होना अब भी 35 दिन दूर
डीप स्टेट, गहरा राज्य अथवा प्रेत राज्य जैसे कई नामों से जाना जाने वाला एक विश्व व्यापी नेटवर्क है जिसका काम है अपने हितों के लिए रिजीम चेंज करने से भी न हिचकना। यानी किसी देश की सत्ता तक को उखाड़ फेंकना। हाल ही में बंगलादेश और सीरिया में क्रमशः निर्वाचित और लेफ्ट- लिबरल सरकारों को अपने हिसाब से गढ़े गए बहानों की आड़ लेकर सत्ताच्युत करवा दिया गया।
डीप स्टेट की अगुवाई मुख्य रूप से अमेरिका का स्टेट्स डिपार्टमेंट यानी विदेश मंत्रालय करता है। विश्व के अलग- अलग क्षेत्रों के लिए विदेश मंत्री के नीचे उप विदेश मंत्री सरीखे पद सृजित किए गए हैं। दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के लिए इस समय चीनी मूल के डोनाल्ड लू उप विदेश मंत्री हैं, जिन पर आरोप है कि पाकिस्तान में तत्कालीन इमरान सरकार, श्रीलंका और हाल ही में बंगलादेश की चुनी हुईं सरकारों को सत्ता से उखाड़ फेंका।
डोनाल्ड लू इस समय भारतीय उपमहाद्वीप के दौरे पर हैं। श्रीलंका के बाद नेपाल का दौरा करने के बाद वे भारत पहुंचने वाले हैं। उन पर सख्त आरोप हैं कि भारत की मजबूत केंद्र सरकार को अस्थिर कर यहाँ एक कठपुतली सरकार बैठाना चाहते हैं जो उनके हिसाब से काम करे।
अब सवाल है कि अमेरिका ऐसा क्यों चाहता है? दरअसल अमेरिका चाहता है कि क्वायड के सदस्य के रूप में कमज़ोर भारत उसके कहे अनुसार चले। अमेरिका के कहने पर वह चाइना से युद्ध छेड़ बैठे। इससे चाइना, भारत दोनों कमजोर हो जाएं और अमेरिका विश्व का बेताज बादशाह बना रहे।
वह यह भी चाहता है कि भारत अपने जांचे- परखे और हमेशा विपरीत समय में काम आने वाले दोस्त रशिया से दोस्ती तोड़ ले। न रशिया से हथियार ले और न ही पेट्रोल खरीदे। अमेरिका अपनी संवेदनशील टेक्नोलॉजी और महत्वपूर्ण हथियार भी भारत को न दे और न ही कहीं से लेने दे।
और भारत जब अपने देश और देश की जनता के हितों के हिसाब से चलने की कोशिश करे तो भारत में अपने एजेंटों के सहारे रिजीम चेंज की न केवल धमकी दे वरन हर वह खुराफात कराने की कोशिश करे जो सरकार को डराने या उसे हटाने में सफल हो सके। इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि देश कैसे भी करके कमजोर हो..!
डीप स्टेट अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार में खासा फलत- फूलता है। 19 जनवरी तक अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार है। और अपने आखिरी खुराफाती प्रयास के रूप में लू भारतीय महाद्वीप भेजे गए हैं। रिजीम चेंज कर बंगलादेश से हटाईं गईं शेख हसीना के बाद वहाँ विठाए गए अपने पिट्ठू मोहम्मद यूनुस के जरिये भारत सरकार और यहाँ की जनता को युद्ध के लिए उकसाने का प्रयास कर रहे हैं। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालते ही काफी हद तक अमेरिका की इन गतिविधियों पर विराम लग जाएगा।
आपने देखा होगा कि जेएनयू के कुछ प्रतिनिधि, राकेश टिकैत जैसे कुछ तथाकथित किसान नेता, कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण जैसे कुछ वकील, शरजिल इमाम और लेफ्ट- लिबरल सिस्टम का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ कथित वुद्धिजीव, जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसी शिक्षण संस्थानों के कुछ प्रतिनिधि, विदेशी फंडेड कुछ एनजीओ भारत विरोधी इकोसिस्टम का हिस्सा बने हुए हैं। आप पाएंगे कि जैसे ही कोई विदेशी प्रतिनिधि भारत के दौरे पर आने को होता है कि यही घिसे- पिटे आंदोलनजीवी आंदोलन शुरू कर देते हैं। संसद का सत्र शुरू होने को होता है कि मणिपुर और कथित किसान आंदोलन शुरू होने लगते हैं।
दरअसल इस सबके पीछे है पैसा जो अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट से जुड़े हुए डीप स्टेट से मिलता है। और डीप स्टेट ऐसे व्यापारियों का समूह है जो अपने व्यापारिक हितों की खातिर या और अधिक पैसा कमाने के लिए वह सभी हथकंडे अपनाता है जो उसके रास्ते में बने रोड़ों को खत्म कर सके।
डीप स्टेट की आर्थिक ताकत का अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि भारत की कुल अर्थव्यवस्था लगभग पौने चार ट्रिलियन डालर की है, चाइनीज अर्थव्यवस्था लगभग 18 ट्रिलियन डालर तो अमेरिका अर्थव्यवस्था लगभग 28 ट्रिलियन डालर की है। लेकिन इसके उलट डीप स्टेट पौने छह सौ ट्रिलियन डालर का मालिक है। बड़े- बड़े हथियार व्यापारी भी इसके सदस्य हैं जो नहीं चाहते कि विश्व में शांति रहे।
यही कारण है कि युद्ध से तौबा करने और अमेरिका फर्स्ट की बात करने वाले डोनाल्ड ट्रंप भी इसके निशाने पर हैं। चुनाव अभियान के दौरान उनके ऊपर हुए दो हमलों में डीप स्टेट का भी हाथ होने के आरोप लगे। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस बार डीप स्टेट को खत्म करने की कसम खाई है। विभिन्न विभागों में कार्यरत डीप स्टेट के प्रतिनिधियों को चिन्हित किया जा रहा है ताकि उन्हें निकाला जा सके।
मगर विशेषज्ञों को लगता है कि डीप स्टेट को खत्म करना आसान नहीं है। 20 जनवरी को सत्ता में आने से पहले अब भी डोनाल्ड ट्रंप पर जान का खतरा बना हुआ है।
भारत के संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि डीप स्टेट को आश्वस्त किया जाए कि हम उसके विरोधी नहीं हैं। रहा सवाल भारत विरोधी गतिविधियों में संलग्न भारत में उसके एजेंटों का तो उन्हें आइडेंटीफाई कर उन तक डीप स्टेट के पैसे पहुंचने के रास्तों को ब्लॉक कर उन पर शिकंजा कसा जाए।
भारत में डीप स्टेट के एक प्रतिनिधि जॉर्ज सोरोस का नाम इस समय चर्चाओं में है, जिनके माध्यम से डीप स्टेट भारत में अवैध गतिविधियों को अंजाम देता रहा है। पैसे के बल पर राजनेताओं और विभिन्न क्षेत्रों के शक्तिशाली लोगों को खरीद कर उनसे भारत विरोधी अवैध गतिविधियों को अंजाम देता रहा है। अब इसकी आंच सोनिया गाँधी और राजीव गाँधी तक पहुँच गई है। इस संबंध में यही मांग है कि निष्पक्ष जाँच हो। और जो भी दोषी पाया जाए, उसे सलाखों के पीछे होना चाहिए।
कुछ वर्ष पूर्व तक डीप स्टेट पर कोई चर्चा करने को तैयार नहीं था। सन् 1991 में पहली बार इस साजिश का खुलासा हुआ था कि डीप स्टेट बड़े पैमाने पर विश्व व्यापी साजिशों को अंजाम दे रहा है।
इस खुलासे के बावजूद अमेरिका के खिलाफ किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। मौजूदा दौर में भी सोशल मीडिया पर आप डीप स्टेट के बारे में कुछ लिखेंगे, तो आपकी रीच घटा दी जाएगी। आपको और भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
लेकिन एक देश और इसके नेतृत्व कर्ता के रूप में भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार ने जिस तरह डीप स्टेट के खिलाफ आवाज उठाई है वह काबिल- ए- तारीफ है। मगर हमें डीप स्टेट के पलटवार के लिए तैयार रहना चाहिए। देश की 140 करोड़ जनता की ताकत जरूर हमारे साथ है लेकिन इसके लिए हमें उन्हें, यह क्या बला है? इस बारे में बताते, समझाते, जागरूक करते रहना होगा। तो आइए प्रेत राज्य की प्रेत हरकतों के बारे में अपनी जनता को जगाएं..!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)