लेखक-अरविंद जयतिलक
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कमाल के नेता हैं। वे तनिक भी विचलित व चिंतित नहीं होते हैं कि तर्कहीन और मनगढंत भाषणबाजी के फेर में कहीं खुद ही लपेटे में आ गए तो क्या होगा। वे सरकार की आलोचना के फेर में देश की साख और मर्यादा का ख्याल किए बिना ही लगातार जो मुंह में आ रहा है, उगल रहे हैं। इससे न केवल देश की छवि धुमिल हो रही है बल्कि उन्हें खुद आलोचना का पात्र बनना पड़ रहा है।
बेशक राहुल गांधी को अधिकार है कि वह सरकार की नीतियों की आलोचना करे। लेकिन यह कार्य अपने देश में होना चाहिए। विदेशी धरती पर खड़े होकर देश की छवि पर प्रहार करना उचित नहीं है। एक लोकतांत्रिक देश में देश की साख और मर्यादा की रक्षा की जिम्मेदारी जितना सत्ताधारी पार्टी की होती है उतना ही विपक्ष की भी। लेकिन राहुल गांधी विदेशी धरती से भारत की साख खराब करने से चूक नहीं रहे हैं। उनके इस कृत्य से न केवल उनकी जगहंसाई हो रही है बल्कि उनकी पार्टी कांग्रेस की भी मिट्टी पलीत हो रही है। चंद रोज पहले एक बार फिर उन्होंने कुछ ऐसा ही कृत्य किया है।
उन्होंने अमेरिका के डलास में टेक्सास विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा है कि भारत में कौशल वाले लाखों लोगों को दरकिनार किया जा रहा है। उन्होंने भारत की तुलना चीन से करते हुए भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की। साथ ही आरएसएस पर भी हमला बोलने से नहीं चूके। हद तो तब हो गयी जब उन्होंने कहा कि लड़ाई इस बात की है कि क्या एक सिख को भारत में पगड़ी अथवा कड़ा पहनने का अधिकार है या नहीं। राहुल गांधी से पूछा जाना चाहिए कि क्या सिख समुदाय भारत में पगड़ी और कड़ा धारण नहीं करता है? उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत में इस बार आम चुनाव लड़ने के लिए सबको समान अवसर उपलब्ध नहीं थे। अब सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी के अनाप-शनाप संबोधन को लेकर सवाल दागना शुरु कर दी है। कांग्रेस को जवाब देते नहीं बन रहा है।
गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने विदेशी धरती से भारत की साख से खेलने की कोशिश की है। गत वर्ष पहले उन्होंने जर्मनी के हैम्बर्ग में बुसेरियस समर स्कूल में छात्रों और प्रवासियों को संबोधित करते हुए देश में उन्माद की हिंसा यानी मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को बेरोजगारी से जोड़ दिया था। दूसरी ओर लंदन में आरएसएस की तुलना आतंकी संगठन ब्रदरहुड से की थी। उनके इस दुर्लभ प्रवचन से न केवल भारज-जर्मनी बल्कि दुनिया भर के समाजशास्त्री और अर्थशस्त्री हतप्रभ रह गए थे।
इस बार भी विदेशी धरती पर राहुल गांधी के अनावश्यक संबोधन से देश सन्न है। लोगबाग समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर राहुल गांधी को क्या हो गया है जो कि मोदी विरोध के नाम पर कभी आरएसएस को बदनाम कर रहे हैं तो कभी देश की आबरु से खिलवाड़ कर रहे हैं। अगर राहुल गांधी के इस संबोधन से भारतीय जनता पार्टी उद्वेलित और आक्रामक होती है तो यह तनिक भी अस्वाभाविक नहीं है। ऐसा इसलिए कि जहां एक ओर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा को चार चांद लगा रहे हैं वहीं राहुल गांधी गलत कुतर्कों के जरिए दुनिया भर में भारत की छवि खराब करने पर उतारु हैं।
अभी गत वर्ष पहले ही उन्होंने कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय में भारत में लोकतंत्र की सच्ची पैरोकारी के बजाए वंशवाद की वकालत की। बहुत पहले उनके द्वारा अमेरिकी राजदूत से कहा गया ाा कि देश को इस्लामिक आतंकवाद से ज्यादा खतरा हिंदू कट्टरवाद से है। उस समय भी राहुल गांधी की खूब फजीहत हुई थी और कांग्रेस को बचाव में उतरना पड़ा था। याद होगा 2013 में उन्होंने इंदौर की एक रैली में जुगाली किया था कि इंटेलिजेंस के एक अधिकारी ने उन्हें बताया की पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आइएसआइ मुज्जफरनगर दंगा पीड़ितों से संपर्क कर उन्हें आतंकवाद के लिए उकसाने की कोशिश कर रही है।
मजे की बात यह कि उनके इस बयान के तत्काल बाद ही गृहमंत्रालय ने ऐसे किसी भी रिपोर्ट से इंकार कर दिया था। तब भी राहुल गांधी की खूब फजीहत हुई थी। चुनाव के दौरान चुरु की एक रैली में उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिक तत्वों ने उनकी दादी को मारा, उनके पिता को मारा और अब शायद उन्हें भी मार सकते हैं। जबकि वे अच्छी तरह सुपरिचित हैं कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या सांप्रदायिक तत्वों ने नहीं बल्कि आतंकियों ने की थी। याद होगा 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी का घोषणापत्र ही फाड़ दिया।
तब भी उनकी खूब किरकिरी हुई थी। यही नहीं उन्होंने 2014 में एक चुनावी जनसभा में गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था। लेकिन जब इससे नाराज संघ के एक कार्यकर्ता ने उन्हें अदालत में घसीट दिया तो उनकी असहजता बढ़ गयी। तब उच्चतम न्यायालय ने राहुल गांधी को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि वह या तो वह माफी मांगे या मानहानि के मुकदमें का सामना करने के लिए तैयार रहें। राहुल गांधी के गैर जिम्मेदराना रवैए से साफ है कि उनमें सुझबुझ की कमी है और वे बार-बार गलत बयानबाजी के जरिए अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता पर मुहर लगा रहे हैं। राहुल गांधी की इसी नासमझी का नतीजा है कि देश उन्हें एक गंभीर राजनेता मानने को तैयार नहीं है।
यह सही है कि राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद मिलने से कांग्रेस और उसके नेताओं तथा कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हुआ है। लेकिन जिस तरह उनकी बयानबाजी को लेकर कांग्रेस पार्टी को बचाव में उतरना पड़ रहा है, उससे साफ है कि राहुल गांधी में गंभीरता की कमी है। लेकिन मजेदार बात कि वे अपनी कमियां ढुंढ़ने के बजाए मोदी सरकार पर आरोपों की बौछार कर रहे हैं। सच तो यह है कि कांग्रेस को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पच नहीं रही है और वह अवसादग्रस्त हो गयी है।
उसी अवसाद का नतीजा है कि कांग्रेस कभी अपने नेता राहुल गांधी को मंदिर का दर्शन कराती है तो कभी सनातन पर प्रहार कराती है। उनके इशारे पर उनके सिपाहसालार देश को हिंदू पाकिस्तान तो कभी हिंदू तालिबान बताते सुने जाते हैं। अब असल सवाल यह है कि क्या इस तरह के आचरण से राहुल गांधी देश का दिल जीतने में सफल रहेंगे? क्या वे विदेशी धरती पर खड़े होकर देश के खिलाफ आग उगलकर सत्ता सिंहासन तक पहुंच जाएंगे? यह संभव ही नहीं है। देश उनके और उनकी पार्टी के इस रवैए से आहत है। राहुल गांधी को समझना होगा कि अगर वे भोथरे दलीलों के जरिए देश को गुमराह कर प्रधानमंत्री की छवि खराब करने की कोशिश में हैं तो इसका सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस पार्टी को ही उठाना होगा।
उन्हें समझना होगा कि वे कांग्रेस के अग्रणी नेता ही नहीं बल्कि अब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। अगर वह गली छाप नेताओं की तरह राजनीतिक आचरण की नुमाईश करेंगे तो फिर देश की कमान संभालने का दावा कैसे कर सकते हैं? वैसे भी जब से वे नेता प्रतिपक्ष बने हैं देश को लगातार निराश कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि देश ने राहुल गांधी को बेहतर कार्य करने का मौका नहीं दिया। वे चाहते तो नोटबंदी, जीएसटी और धारा 370 के सवाल पर सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर सकते थे। लेकिन उन्होंने यह मौका गंवा दिया। अब कांग्रेस पार्टी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का एकसूत्रीय कार्यक्रम सरकार का विरोध करना और दुनिया भर में भारत की साख से खिलवाड़ करना रह गया है। यह देश के साथ छल है और देश इसे सहन नहीं करेगा।

(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)