(संजय राय)
(नई दिल्ली)
√ अप्लाइड रामचरितमानस से शोध के नए आयामों की खोज सम्भव कहा मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री नें
√ श्री रामचरितमानस ने प्रत्येक युग व काल में अपनी सार्थकता को किया सिद्ध:प्रो.बलराम पाणि
√ पुरातन और सनातन में रामकथा की प्राचीन से आधुनिक परंपरा – अनिल गुप्ता
√ दिल्ली विश्वविद्यालय के काँफ्रेंस सेंटर में हिंदू अध्ययन केंद्र एवं संस्कृति संज्ञान के द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में जुटे विद्वत जन
दिल्ली विश्वविद्यालय में 23 अगस्त को हिंदू अध्ययन केंद्र एवं संस्कृति संज्ञान के द्वारा कांफ्रेंस सेंटर में प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में व्यक्त किया।
सम्मेलन का विषय मानवता के लिए श्री रामचरितमानस रहा । राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान लगभग 300 श्रोतागण उपस्थित रहे ।
सम्मेलन की शुरुआत दीप प्रज्वलन और कुलगीत से हुई ।
राष्ट्रीय सम्मेलन का प्रारंभ हिंदू अध्ययन केंद्र की उप निदेशिका एवं संयोजिका डॉ प्रेरणा मल्होत्रा के द्वारा सभी अतिथि एवं आगंतुकों का अभिनंदन एवं स्वागत करके किया गया ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने अपने संबोधन में कहा कि “धार्यति इति धर्मः” अर्थात जो धारण करने योग्य है वही धर्म है । उन्होंने बताया कि धर्म की प्रासंगिकता हमारे प्राचीन ग्रंथों से ही है, उन ग्रंथों में से जो ग्रंथ सरल भाषा में सामान्य जन मानस तक पहुंचा वह तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस ही है। इसी कारणवश धर्म और रामचरितमानस दोनो आज भी एक दूसरे के सापेक्ष हैं ।
उन्होंने कहा कि आज की हमारी सारी समस्याओं का समाधान, श्री रामचरितमानस में ही समाहित है।
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन आज के समय में हो रहे मानसिक क्षरण का अंत करने हेतु शुद्धिकरण के यज्ञ के समान है । उन्होंने आधुनिक परिवेश में होने वाले शोध के क्षेत्र में अप्लाइड रामचरितमानस की स्थापन हेतु पक्ष प्रस्तुत किए । उन्होंने अपने वक्तव्य का अंत श्री रामचरितमानस में निहित विश्व बंधुत्व और सर्व जन कल्याण के भाव को स्थापित करते हुए किया ।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में संस्कृति संज्ञान के द्वारा संरचित पुस्तक “मानस के मोती” पुस्तक का विमोचन संस्कृति विज्ञान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.प्रदीप कुमार सिंघल के नेतृत्व में किया गया ।
राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो. बलराम पाणि, (डीन ऑफ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने सम्मेलन में उपस्थित सभी प्रतिभागियों का अपने वक्तव्य से मार्गदर्शन किया । उन्होंने अपने व्याख्यान में श्री रामचरितमानस की प्रत्येक युग एवं काल में चिरकालिक सार्थकता को सिद्ध किया । उन्होंने श्री रामचरितमानस में वर्णित विभिन्न पक्षों का वर्णन करते हुए सफलता, आत्मविश्वास, कूटनीति, प्रबंधन एवं सही गलत की परिभाषा के महत्व को साझा करते हुए अपने वक्तव्य को पूर्ण किया ।
विशिष्ट अतिथि डॉ. संतोष तनेजा, (संस्थापक एवं सलाहकार, संस्कृति संज्ञान), ने अध्यात्म के क्षेत्र की व्यापकता को विभिन्न युगों में समाहित करके सभी श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया की “धर्म युद्ध” केवल त्रेता में ही नही हुआ अपितु द्वापर में भी कौरवों और पांडवों के मध्य भी हुआ, जिसमे भगवान श्री कृष्ण ने कर्म और कर्तव्य को ही सर्वोपरि बताया है ।
उन्होंने नें भारत के निर्माण में भारत माता से लेकर भारतीयता तक की भूमिका को स्पष्ट करके अपने वक्तव्य का अंत किया ।
विशिष्ट अतिथि श्री अनिल गुप्ता (प्रांत कार्यवाह, दिल्ली प्रांत संस्थापक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ) ने अपने भाषण से सभी भागीदारों को उद्भोधित करते हुए मन की सार्थकता को “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी” के माध्यम से स्पष्ट किया । उन्होंने कहा कि यदि राम सनातन एवं पुरातन दोनो है, तो उसका एक मात्र कारण यह है की मनुष्यों का मन तब भी वैसा ही था और आज भी वैसा ही है । उन्होंने राम के नाम एवं गुरु की महिमा का बखान करते हुए यह बताया की यह दोनो मनुष्य के मन को निर्मल कर देते हैं । उन्होंने कहा कि जब करने योग्य कर्म बढ़ते हैं तो उससे धर्म का सृजन होता है और जब निषिद्ध कर्म बढ़ते हैं तो उससे अधर्म का सृजन होता है । धर्म की व्याख्या में धर्म की सार्थकता को बताते हुए अपनी वाणी को विराम दिया ।
डॉ प्रेरणा मल्होत्रा, (कार्यक्रम संयोजिका, सह- निदेशिका, हिंदू अध्ययन केंद्र, दिल्ली विश्वविद्यालयलय) ने अतिथियों के उद्बोधन के पश्चात सभी का धन्यवाद ज्ञापन देते हुए हिंदू अध्ययन केंद्र की गरिमा का व्याख्यान किया और दिल्ली विश्वविद्यालय में इस केंद्र की महत्ता को वर्णित किया । उन्होंने अपने कथनों में कहा कि हिंदू धर्म अन्य मजहबों और धार्मिक मान्यताओं से भिन्न है, इसकी अवधारणा पूर्णतः सर्वकालिक है। उसे इस सार्वभौमिक रूप में समझे जाने की आवश्यकता है और हिंदू अध्ययन केंद्र का यह ध्येय वाक्य है, जिसे सिद्ध करने के लिए ऐसे राष्ट्रीय सम्मेलनों के आयोजन के माध्यम से यह निरंतर प्रयासरत है।
पूर्ण सत्र का आरंभ करते हुए प्रो. नरेश कक्कड़, (पूर्व डूटा अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने राम की प्रासंगिकता पर चर्चा की और यह बताया कि कैसे सुंदर काण्ड हनुमान जी पर आधारित होने के कारण माता अंजना द्वारा दिए गए नाम सुंदर पर आधारित है ।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू अध्ययन केंद्र एवं संस्कृति संज्ञान द्वारा आयोजित, “मानवता के लिए श्री रामचरितमानस” राष्ट्रीय सम्मेलन में विद्वानों के द्वारा श्री रामचरितमानस पर विचार विनिमय के माध्यम से बौद्धिक चर्चा के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया । यह वाद विवाद परंपरा ही हिंदू धर्म के अस्तित्व को नींव में समाहित है जो की नेति नेति के सिद्धांत में विश्वास करके सारे उपलब्ध विचारों का खण्डन करके नए विचारों के प्रस्फुटन के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है ।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू अध्ययन केंद्र ने इस ज्ञान की परंपरा को सशक्त करते हुए, 22 अगस्त 2024 को श्री रामचरितमानस दोहा गायन प्रतियोगिता का भी आयोजन किया था और अपने विभिन्न सम्मेलनों के कारण यह सदैव चर्चा में बना रहता है ।