लेखक- अमित सिंघल
प्रयागराज विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के अध्ययन के समय मुझे राज्य या राष्ट्र की उत्पत्ति, सरकार, सम्प्रभुता इत्यादि विषयों को पढ़ने का अवसर मिला।
माना जाता है की राज्य (राष्ट्र) की उत्पत्ति और उसकी वैधता का आधार प्रत्येक व्यक्ति के मध्य social contract या सामाजिक अनुबंध है।
सभी व्यक्तियों ने अपनी स्वयं की और सम्पति की सुरक्षा, एवं अपने मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए आपस में अपनी स्वेच्छा या वास्तविक इच्छा से यह करार किया कि हर व्यक्ति एक दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं करेगा, एक दूसरे की जान नहीं लेगा और इस करार को लागू करने ले लिए वह अपने कुछ अधिकारों का त्याग कर देगा। इसी कॉन्ट्रैक्ट ने संविधान का रूप लिया।
और यह कोई बाज़ारू या लेन-देन का कॉन्ट्रैक्ट नहीं है; बल्कि इस कॉन्ट्रैक्ट का आधार नैतिक है।
और तभी एक राज्य (राष्ट्र) के चार प्रमुख तत्व होते है – भूमि, जनसँख्या, सरकार एवं सम्प्रभुता। अंतर्राष्ट्रीय कानून में बहुसंख्यक देशो द्वारा मान्यता को पांचवा तत्व माना गया है। अर्थात, अगर किसी इकाई के पास भूमि, जनसँख्या, सरकार एवं सम्प्रभुता है (जैसे कि फिलिस्तीन, कोसोवो, सोमालीलैंड इत्यादि), लेकिन अगर बहुसंख्यक देशो (कुछेक राष्ट्र सदैव मान्यता दे देते है) से मान्यता नहीं प्राप्त है, तो उस इकाई को राष्ट्र नहीं माना जाएगा।
किसी भी राष्ट्र या फिर भारत के सन्दर्भ में, उस संप्रभुता या सर्वोच्च शक्ति का निवेश भारत गणतंत्र के राष्ट्रपति में है। उस उच्च ऑफिस में 140 करोड़ भारतीयों की गरिमा और संप्रभुता निहित है, प्रतिबिंबित है।
आप सरकार से सहमत या असहमत हो सकते है, लोकतंत्र में किसी भी सरकार को सौ प्रतिशत मत कहीं नहीं मिलता। कुछ ना कुछ नागरिक उस सरकार के विरोध में हमेशा खड़े रहेंगे।
लेकिन क्या आप राष्ट्रपति के विरुद्ध खड़े हो सकते है?
संविधान का 52 वा अनुच्छेद कहता है कि “भारत का एक राष्ट्रपति होगा। पूरे संविधान में यह कहीं नहीं लिखा कि भारत का राष्ट्रपति नियुक्त होगा। जबकि उसी संविधान में लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे।
आखिरकार राष्ट्रपति की नियुक्ति क्यों नहीं होती क्योंकि, क्या 140 करोड़ भारतीय अपने आप को नियुक्त कर सकते हैं?
दूसरे शब्दों में, भारतीय राष्ट्र या इंडियन स्टेट का प्रतिबिम्ब राष्ट्रपति महोदया है।
जब राहुल गाँधी कहते हैं कि वह आरएसएस या भाजपा से नहीं लड़ रहे हैं, वह भारतीय राज्य से लड़ रहे हैं, तो उन्होंने भारत गणराज्य एवं राष्ट्रपति जी के विरुद्ध, विद्रोह का बिगुल बजा दिया है।
अधिकतर लोग तुरंत मांग करेंगे कि राहुल गाँधी को जेल में डाल देना चाहिए। और ऐसा ना करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को अपशब्द कहना शुरू कर देंगे।
सीधा सा उत्तर है।उन्हें तुरंत बेल मिल जायेगी। सर्वोच्च न्यायालय कहेगा कि एक राज्य के कंधे इतने विशाल होने चाहिए कि वह ऐसे कमेंट से विक्षुब्ध ना हो ( जेएनयू के टुकड़े-टुकड़े वाले गैंग की बेल की सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट वास्तव में ऐसा कह चुका है)।
दिल्ली दंगो के मुख्य आरोपियों में से एक आप पार्षद रहा ताहिर हुसैन, को दिल्ली चुनावो में नामांकन भरने के लिए पैरोल (कुछ समय की बेल) मिल चुकी है। रासुका के अंतर्गत अरेस्ट किया गया खालिस्तानी मानसिकता वाला अतिवादी अमृतपाल सिंह सांसद है। इसी तरह पहले सिमरनजीत सिंह मान भी सांसद था।
राहुल के राष्ट्रविरोधी बयानों के बाद भी (पूर्व में वह बोल चुके है कि भारत एक राष्ट्र नहीं है), रायबरेली से उन्हें लाखों की संख्या में मतदाताओं का वोट मिला था,वे मतदाता कौन थे?
राहुल गाँधी या अरविंद केजरीवाल जैसे अराजक तत्वों को राजनीति के द्वारा ही परास्त करना होगा।

(लेखक रिटायर्ड IRS अफ़सर हैं और यह उनके निजी विचार हैं)