लेखक :अरविंद जयतिलक
नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग केस में चार्जशीट दाखिल किए जाने के बाद जिस तरह कांग्रेस पार्टी की तिलमिलाहट बढ़ी है और उसके नेता धरना, प्रदर्शन के जरिए विरोध जता रहे हैं उससे साफ है कि कांग्रेस पार्टी अपने नेता सोनिया व राहुल गांधी को देश और संविधान से ऊपर मानकर चल रहे हैं। कांग्रेस अपने दलीलों के जरिए कुछ इस तरह की धारणाएं स्थापित करने की कोशिश में है मानों केंद्र सरकार जानबुझकर जांच एजेंसियों के जरिए सोनिया और राहुल गांधी को फंसाना चाहती है। यह ठीक नहीं है। चूंकि यह मामला कांग्रेस समर्थित यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड और एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के बीच वित्तीय अनियमितता से जुड़ा है लिहाजा इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा चार्जशीट दाखिल किया जाना कहीं से भी अनुचित नहीं है। प्रवर्तन निदेशालय का मकसद यंग इंडियन और एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के हिस्सेदारी पैटर्न, वित्तीय लेनदेन और प्रवर्तकों की भूमिका अदालत के समक्ष लाना है। चूंकि यंग इंडियन के प्रवर्तकों और शेयर धारकों में सोनिया व राहुल गांधी समेत कई नेताओं के नाम शामिल हैं ऐसे में आवश्यक भी है कि सोनिया व राहुल गांधी अदालत के समक्ष पेश होकर अपना पक्ष रखें। आखिर वे सही हैं तो फिर सांच को आंच क्या? देश में जब सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून है, एक तरह की जांच-प्रक्रिया है तो फिर सोनिया व राहुल गांधी कानून से ऊपर कैसे हो सकते हैं? ध्यान देना होगा कि गत वर्ष पहले इस मामले में आरोपित सोनिया व राहुल गांधी को आयकर विभाग द्वारा भेजे गए पुनर्मूल्यांकन के मामले में उच्च न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली थी। तब आयकर विभाग ने राहुल गांधी को वित्तीय वर्ष 2011-12 के पुनर्मूल्यांकन का नोटिस भेजा था। आयकर विभाग ने पुनर्मूल्यांकन करने का फैसला इसलिए लिया था कि राहुल गांधी ने जानकारी नहीं दी थी कि वह वर्ष 2010 में यंग इंडियन के निदेशक थे। देश तब भी जानना चाहा था कि अगर आयकर विभाग पुनर्मूल्यांकन करना चाहता है तो इससे कांग्रेस को आपत्ति क्यों है? अगर सोनिया व राहुल गांधी से वित्तीय गड़बड़ी हुई है अथवा नहीं हुई इसका दूध का दूध और पानी का पानी तो अदालत में ही होगा न। उल्लेखनीय है कि नेशनल हेराल्ड का मामला 2013 में तब उठा था जब केंद्र में कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार थी और डा0 मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। इस मामले को भाजपा नेता और याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा उठाया गया था। उस समय उच्च न्यायालय ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी को निचली अदालत में पेश होने का आदेश दिया। तब भी कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि यह साजिश है और इसके पीछे भाजपा का हाथ है। स्वयं तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यह कहती सुनी गयी थी कि वह इंदिरा गांधी की बहू हैं इसलिए डरने वाली नहीं हैं। उनके इस रवैए से देश भर में यहीं संदेश गया था कि सोनिया व राहुल गांधी अपनी रसूख के दम पर अदालत में पेश होने की छूट चाहते हैं। आज भी उसी की पुनरावृत्ति होती दिख रही है। इस मामले को समझने के लिए नेशनल हेराल्ड मामले को समझना जरुरी है। नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र की मालिकाना कंपनी एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड है। पहले नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को कांग्रेस ने 26 फरवरी, 2011 को 90 करोड़ रुपए का लोन दिया और उसके बाद पांच लाख रुपए से यंग इंडिया कंपनी बनायी। फिर 10-10 रुपए के 9 करोड़ शेयर यंग इंडिया को दिए गए। इसके बदले यंग इंडिया को कांग्रेस का लोन चुकाना था। लेकिन मजे की बात यह कि 9 करोड़ शेयर के साथ यंग इंडिया को एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के 99 फीसदी शेयर तो हासिल हो गए लेकिन उसे कर्ज भी नहीं चुकाना पड़ा। यानी कांग्रेस ने उदारता दिखाते हुए 90 करोड़ रुपए का लोन माफ कर दिया। कांग्रेस का तर्क है कि इस प्रक्रिया में ऐसा कुछ भी गलत नहीं हुआ जिससे कानून का उलंघन हुआ हो। लेकिन यहां सवाल यह है कि बतौर एक राजनीतिक दल होते हुए कांग्रेस किसी कंपनी को लोन कैसे दे सकती है? कांग्रेस का यह तर्क कि पार्टी अपनी पूंजी को जैसे चाहे वैसे खर्च कर सकती है यह उसकी नासमझी और तानाशाही को रेखांकित करता है। तब यह खुलासा हुआ था कि जिस यंग इंडिया लिमिटेड ने नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को खरीदा उसमें सोनिया व राहुल गांधी की 38-38 फीसदी की हिस्सेदारी है। 24 फीसदी हिस्सेदारी कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और आस्कर फर्नांडीज की है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि कांग्रेस पार्टी सोनिया व राहुल गांधी समेत अन्य नेताओं को परोक्ष रुप से लाभ पहुंचाया है? क्या कांग्रेस इस तरह की आर्थिक उदारता एक सामान्य कांग्रेसी कार्यकर्ता के प्रति दिखा सकती है? अगर नहीं तो फिर ऐसे में याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी की यह दलील सर्वथा उचित ही है कि कांग्रेस ने यंग इंडियन को एजेएल को खरीदने के लिए असुरक्षित कर्ज दिया। याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी का यह भी तर्क है कि इस हेरा-फेरी का मकसद दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस की 2000 करोड़ रुपए की संपत्ति को कब्जाना था। अगर याचिकाकर्ता के इस दलील में दम है तो फिर इसकी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? मामला सतह पर आने के बाद कांग्रेस द्वारा दलील दिया गया कि हेराल्ड हाउस को पासपोर्ट ऑफिस के लिए किराए पर दिया गया। लेकिन यहां सवाल यह है कि जब तत्कालीन केंद्र की सरकार ने अखबार चलाने के लिए जमीन दी तो फिर उसका व्यवसायिक इस्तेमाल क्यों किया गया? क्या यह कानून के खिलाफ नहीं है? गौर करें तो सवाल यहीं तक सीमित नहीं है। याचिकाकर्ता का आरोप यह भी है कि चूंकि इस खेल में हवाला का पैसा लगा है लिहाजा सोनिया व राहुल गांधी के विरुद्ध टैक्स चोरी और धोखाधड़ी का मामला बनता है। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि फेमा वॉयलेशन की शिकायत सही पाए जाने पर ही सोनिया व राहुल के खिलाफ रेग्यूलर केस दर्ज हुआ है। चूंकि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस को राजनीतिक दल होने के बावजूद व्यवसायिक लेन-देन में शामिल होने को लेकर नोटिस दिया इसलिए इस मामले की गंभीरता और बढ़ गई। कांग्रेस का यह तर्क बेमानी है कि उसने एजेएल में 90 करोड़ का ट्रांजेक्शन व्यवसायिक कार्य के लिए नहीं बल्कि विचारधारा के लिए किया। मान भी लिया जाए कि कांग्रेस ने अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा किया तब भी सवाल बनता है कि फिर उसने नेशनल हेराल्ड को जीवंतता क्यों नहीं होने दी? गौरतलब है कि पंडित जवाहर लाल नेहरु ने आजादी के दौरान 8 सितंबर, 1938 को लखनऊ में नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना की। आजादी के उपरांत यह अखबार कांग्रेस का मुखपत्र बन गया और घाटे के चलते 2008 में छपना बंद हो गया। अखबार बंद होने के बाद कांग्रेस की नजर नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों पर टिक गयी और उसने हेरा-फेरी शुरु कर दी। थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाए कि नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) घाटे में थी तो उस समय की तत्कालीन मनमोहन सरकार उसके कर्ज को माफ क्यों नहीं की? कांग्रेस ने नई कंपनी का गठन क्यों किया? क्या यह रेखांकित नहीं करता है कि उसने यह खेल नेशनल हेराल्ड की हजारों करोड़ की संपत्ति को हथियाने के लिए किया? अगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वर्ष 2010 में यंड इंडियन के निदेशक होने के बावजूद भी इस तथ्य को आयकर विभाग से छिपाया तो यह कार्य न केवल भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है बल्कि यह कृत्य देश को गुमराह करने वाला भी है। सच कहें तो कांग्रेस का रवैया ठीक उसी तरह है जैसे कोई सुदखोर कर्जदार का ऋण माफकर उसकी पूरी संपत्ति ही हड़प ले और दोष दूसरे के मत्थे मढ़ दे।
(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)