लेखक – सुभाषचंद्र
पिछले महीने 27 अप्रैल को Association for Democratic Reforms (ADR) की EVM और VVPAT के शत प्रतिशत मिलान के लिए दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था जिसे लड़ा था प्रशांत भूषण ने. ये सभी लोग किसी तरह भी चुनाव आयोग और मोदी सरकार को परेशान करने की कोशिश में लगे रहते हैं।
इस याचिका के ठुकराने के बाद ADR के दिमाग में एक और फितूर पैदा हुआ और उसने प्रशांत भूषण के जरिए ही एक नई याचिका मात्र 15 दिन बाद बीते 10 मई को सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दी और ऐसी मांग की जिससे ADR को कुछ लेना देना नहीं है।
ADR ने याचिका में कहा कि सुप्रीम कोर्ट “चुनाव आयोग को हिदायत दे कि चुनाव के 48 घंटे के भीतर “authenticated data of votes polled” जारी करें।
ADR also sought a direction to provide in the public domain a tabulation of the constituency and polling station-wise figures of voter turnout in absolute numbers and percentage form for the ongoing 2024 Lok Sabha elections.
फिर क्या था सुप्रीम कोर्ट को भी मौका मिल गया चुनाव आयोग का बाजा बजाने का और 17 मई को माननीय CJI चंद्रचूड़, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके कहा कि एक हफ्ते में यानी 24 मई तक ADR द्वारा मांगी गई जानकारी के बारे में,जानकारी दे। (authenticated records of voter turnout by uploading on its website scanned legible copies of Form 17C Part-I (Account of Votes Recorded) of all polling stations after each phase of polling in the on-going 2024 Lok Sabha elections)
25 मई को 6छठवें चुनाव के मतदान के ठीक एक दिन पहले इलेक्शन की मारा मारी में चुनाव आयोग को ऐसे ही फालतू मुकदमों में उलझा कर रखने का क्या मकसद हो सकता है
आप समझ सकते हैं !
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कल यानी 23 मई को हलफनामा दाखिल करके बता दिया कि फॉर्म 17 C में वोटों की जानकारी मांगने का कोई अधिकार नहीं है।इस फॉर्म के आधार पर मतदान का डाटा सार्वजनिक किया गया तो मतदाताओं में भ्रम फ़ैल सकता है (और वही ADR का जैसे लक्ष्य है) क्योंकि इसमें डाकपत्रों की गिनती भी शामिल होगी।
आयोग ने यहां तक बताया कि 17 सी में प्रत्येक मतदान केंद्र का रिकार्ड़ होता है और मतदान समाप्त होने के बाद हर प्रत्याशी के एजेंट को उनके हस्ताक्षर लेकर उसकी एक कॉपी दी जाती है।
इसका मतलब 48 घंटे क्या, वोटिंग ख़त्म होते ही जब सूचना हर प्रत्याशी को दे दी जाती है तो फिर 48 घंटे में डाटा वेबसाइट पर डालने का क्या मतलब है।
ये चाहते हैं कि करीब 70 करोड़ वोटरों का डाटा 48 घंटे में वेबसाइट पर डाल दिया जाए और चुनाव आयोग में अफरा तफरी मची रहे।
ऐसी संस्थाएं देश में किसी न किसी तरह अराजकता का माहौल पैदा करना चाहती है और बिना दिमाग लगाए सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिकाओं पर संज्ञान लेकर उनका साथ दे रहा है जो सर्वथा अनुचित है।
एक बार मीलॉर्ड को सोचना चाहिए था और ADR से पूछना तो था कि आप को इस तरह की जानकारी से क्या मतलब है और आपकी क्या दिलचस्पी है इसमें, आप क्यों मामा बनने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मीलॉर्ड को तो बस पंचायत बिठानी है।
ADR के लिए कहा गया है कि यह एक गैर राजनीतिक, non-partisan और non-profit organisation है,हम कैसे यह मान सकते हैं ।
इस संस्था के funds की जांच जरूरी है और जानना जरूरी है कि पैसा कहां से आता है।
प्रशांत भूषण जैसे वकील यदि इसके साथ जुड़े हैं तो इसे किसी तरह गैर राजनीतिक और non-partisan नहीं माना जा सकता। क्या ये संगठन कभी किसी मामले में मोदी सरकार के पक्ष में खड़ा हुआ है, शायद नहीं, इसका लक्ष्य मोदी सरकार से टकराव का रहता है और प्रशांत भूषण की उपस्थिति यह साबित करने के लिए काफी है।

(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)