लेखक-राजेश बैरागी
उस बुजुर्ग की आर्त पुकार में दम था या मौका ही ऐसा बन गया कि बहुत दिनों से अपना पैसा निकालने के लिए चक्कर काट रहे सोहनलाल को मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह के हस्तक्षेप के बाद रविवार को छुट्टी होने के बावजूद बैंक खोलकर पैसे दिए गए। इस एक घटना ने ‘ऑफिस ऑफिस’ कॉमेडी सीरियल हो चुके सिस्टम की पोल खोल दी और साथ ही यह प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ कि ऐसे भाग्यशाली कितने लोग हैं जिनकी आर्त पुकार मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव के कानों तक पहुंच पाती है!
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरानगर स्थित कैलाशपुरी निवासी सोहनलाल और उनकी पत्नी राजेश्वरी का एक बैंक में संयुक्त खाता था।
राजेश्वरी का कुछ समय पहले निधन हो गया।इसके बाद सोहनलाल एक दिन अपने खाते से पैसे निकालने पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि कुछ कागजी कार्रवाई के बाद ही वो अपने इस खाते से पैसे निकाल सकते हैं। सोहनलाल ने कागजी कार्रवाई पूरी कर दी। बैंक उन्हें फिर भी पैसे देने को तैयार नहीं हुआ। बैंक ने उन्हें बताया कि खाते को अपडेट करने में समय लगता है। सोहनलाल पैसे की आस में बैंक जाते रहे और खाली हाथ वापस आते रहे। यह कैसा तंत्र है जिसमें अपना पैसा प्राप्त करना दूसरे की अनुकंपा बन जाए?
भ्रष्टाचार, बदहाली और फिर बगावत ऐसे तंत्र की कोख से ही जन्म लेते हैं। आखिरकार बैंक की न-न-न सुनकर आजिज आ गये बुजुर्ग सोहनलाल ने मुख्यमंत्री हेल्प लाइन (1076) पर बीते 26 अक्टूबर को पुकार लगाई। उन्होंने हेल्प लाइन पर बैंक की कारगुजारी तो बयां की ही, यह भी बताया कि पैसे के अभाव में उन्हें कैसी मुश्किल पेश आ रही है यह शनिवार का दिन था। उनकी किस्मत अच्छी थी उनकी पुकार मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने सुन ली। उन्होंने तत्काल हस्तक्षेप किया और महीनों से बुजुर्ग सोहनलाल को चक्कर कटवा रहे बैंक ने रविवार को छुट्टी के दिन बुलाकर उन्हें अपने खाते से पैसे निकालने की विशिष्ट सुविधा प्रदान की। यह पूरा माजरा उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने यह दावा करते हुए सूचित किया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सतत मॉनीटरिंग का नतीजा है कि कई मामलों में सीएम हेल्पलाइन के जरिये प्रदेशवासियों की समस्याओं का निस्तारण कुछ ही घंटों में किया जा रहा है। मैं इस घटना के इस प्रकार के सुखांत से अभिभूत हूं परंतु सोचता हूं कि सोहनलाल जैसी किस्मत कितने लोगों की है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)