लेखक- परख सक्सेना
वर्ष 2008 मे मनमोहन सिंह (सोनिया) सरकार ने फैसला लिया कि भारतमें विदेशियों का पर्यटन बढ़ रहा है इसलिए एयरपोर्ट्स को थोड़ा प्राइवेट करेंगे ताकि यात्रियों की सुविधाएं बढ़ाई जा सके।
पहले दिल्ली एयरपोर्ट के लिये बोली लगी GMR ग्रुप को यह एयरपोर्ट मिल गया, फिर मुंबई एयरपोर्ट की बोली लगी उसमे भी GMR लीड कर रहा था मगर नियम था कि एक से ज्यादा एयरपोर्ट नहीं मिल सकते।
मुंबई एयरपोर्ट GVK ग्रुप के पास चला गया। ये भी नियम था कि कंपनी की एयरपोर्टस खरीदने से पहले इसी सेक्टरमें एक हिस्ट्री होनी चाहिए।
2013 तक ये भांडाफोड़ हो गया कि GMR और GVK ग्रुप सोनिया गाँधी परिवार के करीबी है। GMR मे तो सोनिया गाँधी के दामाद और प्रियंका वाड्रा गाँधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के शेयर्स की भी चर्चा हुई थी, GVK ग्रुप घाटे में चल रहा था फिर भी उसे एयरपोर्ट दे दिया गया, GMR की भी स्थिति ठीक नहीं थी।
वर्ष 2014 मे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बयार पर सवार हो बीजेपी केंद्रीय सत्ता मे आ गयी, बीजेपी की फंडिंग में गुजरात और मुंबई के व्यापारियों की मुख्य भूमिका थी।
अदाणी ग्रुप को 6 एयरपोर्ट चले गए, NDA सरकार ने सारे नियम ही बदल दिये और इसका कारण भी राष्ट्रपति को भेज दिया कि अब एयरपोर्ट्स की संख्या ज्यादा है इसलिए एक से अधिक यूनिट देनी ही होंगी।
इसके बाद ही कांग्रेस का संतुलन बिगड़ना शुरु हुआ, राजनीतिक पार्टियों के लिये आवश्यक है कि उन्हें जो बिजनेस हॉउस फंड कर रहे है उनकी मदद करें नहीं तो उनकी निष्ठा बदल भी सकती है।
कांग्रेस ने विरोध तो किया मगर लोगो का कांग्रेस से सवाल था कि आपने भी तो GMR, GVK के लिये काम किये और उनके फ़ायदे के लिए नियम बनाये थे।
ये सही है कि सरकार की जो स्कीम चली उनका फायदा अप्रत्यक्ष रूप से गुजरात के व्यापारियों को मिला। कांग्रेस के पुराने नेताओं ने आरोप भी लगाए थे कि गुजरातियों के पास दिल्ली की पूरी एक्सेस है।
लेकिन हर्ज ये है कि दिल्ली की एक्सेस तो कांग्रेस सरकार के समय कांग्रेस की लॉबी के पास थी, काँग्रेस को मरोड़ अब उठी क्योंकि गुजरात लॉबी के पास गयी, ना कि गलत हुआ इसलिए।
एक लॉबीबाज दूसरे लॉबीबाज की कमी निकाल रहे हैं कि ताकि वो खुद फ़ायदा ले और दे सकें।दूसरी तरफ नेशनल हेराल्ड में केस में सोनिया गाँधी परिवार और उनके कई वफादार बेकफुट पर हैं, देश के शाही परिवार माने जाने वाले परिवार के सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी,प्रियंका वाड्रा गाँधी तीनों लोग आज भी वर्षों से जमानत पर ही बाहर है। इसलिए ज़ब ये भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर ऐसे मुद्दे उठाते है तो जनता उनकी बात पर विश्वास नहीं कर हँसने लगती है।
वर्ष 2024 का चुनाव कांग्रेस के लिये करो या मरो वाली बात थी, पिछले 10 वर्षो मे भारत के एयरपोर्ट, बंदरगाह और पॉवर प्रोजेक्ट्स गुजरात लॉबी के पास जा चुके है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जितना मर्जी बीजेपी का विरोध किया हो मगर गुजरात लॉबी से हाथ मिला चुके है और प्रोजेक्ट्स बांट भी चुके है। जाहिर है अब राज्य रोजगार के लिये गुजरात के व्यापारियों पर ज्यादा निर्भर है।
लोकसभा में नेता विपक्ष और काँग्रेस के नीति नियन्ता की भूमिका निभाने वाले राहुल गाँधी ज़ब भी मुकेश अंबानी, गौतम अडानी का मुद्दा उठाते हैं तो उसे विपक्ष मे कोई सीरियसली नहीं लेता बल्कि उल्टे उनके साथी दल उसे ही उन्हे घेर लेते है।
अब सवाल है कि जनता क्या करें?
जनता बस इग्नोर ही करे क्योंकि ये सेट प्रैक्टिस है, धंधा किसी के हाथमें तो जाना ही है, गुजरातियो के पास है विदेशियों के तो पास नहीं, ये सुकून की बात है।
देखा जाए तो अंबानी, अडानी काँग्रेस के मुद्दे ही नहीं है क्योंकि सोचने वाली बात है कि हमारे समाज मे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बिजनेस कम्युनिटी है ही कितनी? यदि गुजराती समाज भागीदार है तो ठीक है क्योंकि उन्हें अनुभव है।
ये कांग्रेस के अस्तित्व की लड़ाई है क्योंकि गुजरात लॉबी जितनी हावी रहेगी कांग्रेस मुश्किल मे आएगी ही। कांग्रेस चाह रही है कि जनता लोकतंत्र के नाम पर उसका साथ दे और उसकी लॉबी को लेकर आये।
इसलिए ये महज एक गैंग वॉर है जिससे जनता को दूर रहना चाहिए।
(लेखक बिजनेस ट्रेड वॉर पर गहरी पकड़ रखते हैं)