लेखक डॉ.के. विक्रम राव
अंकगणितीय तरीके से मोरारजीभाई देसाई केवल एक चौथाई बार ही वर्षगांठ मना पाए। वे 29 फरवरी 1896 को जन्मे थे। यह तारीख चार साल बाद ही आती है। कल पड़ी थी। वे अपना शताब्दी वर्ष भी नहीं मना पाए। उनका निधन हुआ जब वह 99 वर्ष के थे। इतिहास याद रखेगा कि यदि आज भारत में सोचने और कहने की आजादी बची रही तो मोरारजीभाई के जेलवास और संघर्ष के परिणाम से। मुझे गर्व है उनकी तरह कारागार यात्रा में छोटी सी भूमिका मुझ जैसे की भी रही।
भारतीय राजनेताओं और इतिहासकारों ने उन्हें भुला दिया, हालांकि मोरारजीभाई निष्ठावान गांधीवादी रहे। निर्भय थे। सिखाया भी "डरो मत।" उनके साथ क्या हुआ ? जब किरायेदार मोरारजी देसाई को उनके मकान मालिक ने उनके मुम्बई वाले फ्लैट से बेदखल कर दिया था तब देशवासियों ने जाना कि इस पूर्व प्रधान मंत्री का कोई निजी घर कभी नही रहा । सर्वोच्च न्यायालय तक तीन दशको से मुकदमा वे लडे़ मगर हार गये। मेरीन ड्राइव स्थित ओसियाना बिल्डिंग का फ्लैट खाली कर दिया । बेघर हो गये। भला हो कांग्रेसी मुख्य मंत्री शरद पवार का जिन्होने इस प्रथम गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री को रेन्ट कन्ट्रोल के तहत मानवतावश एक सामान्य आवास आवंटित किया।
अविभाजित बम्बई राज्य के 1952 से मुख्यमंत्री और 1937 में बालासाहब खेर की काबीना के मंत्री रहकर भी मोरारजी देसाई ने मुम्बई में अपना कोई भी मकान नही बनवाया। पांच वर्षेां तक ब्रिटिश जेल में रहे, गांधीवादी सादगी के लिए विख्यात मोरारजी देसाई के खिलाफ कुछ लोगों, खासकर सोशलिस्टों तथा कम्युनिस्टों ने, दूषित प्रचार किया था कि वे अमीर और पूँजीपतियों के हितैषी थे। अमरीका के समर्थक रहे। हालांकि कई वर्षों बाद उनके यही आलोचक जयप्रकाश नारायण, चन्द्रशेखर, मधुलिमये, जार्ज फर्नीण्डिस आदि को एहसास हुआ कि वे सब भ्रमित थे। अतः जनता पार्टी के साथ आये। मार्क्सवादी कम्यनिस्ट एके गोपालन और ज्योतिर्मय बसु ने मोरारजी देसाई की सरकार का समर्थन किया था।
वित मंत्री के रुप में मोरारजी देसाई ने तो पारदर्शिता की मिसाल कायम की। जवाहरलाल नेहरु ने अपनी किताबो पर ब्रिटिश प्रकाशकों द्वारा प्रदत्त रायलटी की राशि लन्दन के बैंक में जमा करा दी थी। पता चलने पर मोरारजी देसाई ने प्रधान मंत्री को आगाह किया कि इससे विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन होता है जिसके अंजाम में कारागार और जुर्माना हो सकता है। तिलमिलाये नेहरु लन्दन से दिल्ली अपना बैंक खाता ले आये। इन्दिरा गाँधी ने अपने दोनो पुत्रों राजीव और संजय को शिक्षा हेतु इंग्लैण्ड भेजना चाहा तो वित्त मंत्री ने कहा कि इन दोनो किशोरों की बुनियादी अर्हता इतनी नहीं है कि वे उच्चतर शिक्षा हेतु विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकें।
मोरारजी देसाई ने एक नियम बनाया था कि प्राकृतिक आपदा अथवा दुर्घटना के समय प्रधानमंत्री उस स्थल की यात्रा नही करेंगे। उनका तर्क था कि यात्रा करने से पीडित जन हेतु राहत कार्य के बजाय प्रशासन विशिष्ट अतिथि के आवभगत में लग जाते है।
उनके एक कानूनी प्रयास पर भी नजर डालें। बम्बई के गृहमंत्री मोरारजी देसाई ने कहा कि बहुपत्नी प्रथा का अन्त कर दिया जाये । इसका कई कांग्रेसियो, सी राजगोपालाचारी को मिलाकर, ने विरोध किया था। उनका तर्क था कि हिन्दु पुरुष इसे स्वीकार नही करेंगे (हिन्दु विवाह संशोधन 1955 में आया था)। इस पर मोरारजी देसाई ने कहा कि इस हालत में हिन्दू महिला को भी बहुपति प्रणाली का अधिकार मिले।
मोरारजी देसाई एकमात्र राजनेता थे जिन्हे निशाने-पाकिस्तान और भारत रत्न से नवाजा गया था। दोनो सबसे बड़े नागरिक सम्मान है।
मोरारजी देसाई की छवि रही कि वे समाजवाद के धुर विरोधी रहे, यह विरोधाभासी तथ्य है। जब नाशिक जेल में 1932 मे सोशलिस्ट पार्टी की नीव रखी गई थी तो जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, मीनू मसानी आदि के साथ मोरारजी देसाई भी कैद थे । उन सबके अथक प्रयास के बावजूद मोरारजी देसाइ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल नही हुए। उनकी अवघारणा थी कि सोशलिस्टों को साधन की पवित्रता वाला गांधीवादी नियम मान्य़ नही है। बस साघ्य की महत्ता ही स्वीकार्य है।
शराब बन्दी पर इस महाऩ गांधीवादी ने मद्यनिषेघ पर नैतिक आस्था और पावन सिधांत की बात थी। जब सोवियत नेता निकिता खुश्चेव और बुलगानिन मुम्बई आये थे तो मुख्य मंत्री मोरारजी देसाई ने उनसे शराब की परमिट के लिए आवेदन करने को कहा। मगर ये रुसी नेता अपना वोडका इतना लाये थे कि जरुरत नही पडी। एक बार व्रिटिश प्रधान मंत्री के सम्मान मे समारोह अयोजित हुआ। नेहरु इसके मुख्य अतिथि थे। वहां सभी फल का रस पी रहे थे क्योकि वित मंत्री मोरारजी देसाई की शर्त थी कि यदि मदिरापान हुआ तो वे नही शामिल होंगे। कुछ ऐसे ही गुण है, विशिष्टतायें हैं, जिनसे मोरारजी देसाई अपने किस्म के अनूठे राजनेता बने रहे।
भले ही उनके लोग ही उनका मजाक उड़ाये। वे निडरता के पर्याय थे। एक बार जोरहट में (असम) में उनका जहाज धरती पर टकराकर उलट गया। वे शान्त भाव से कुर्ता, सदरी आदि ठीक कर के उतरे। सीधे चल दिये। उनके चहरे पर समभाव था, वही गीतावाला, न क्लेश, न हर्ष। वही बात उनकी राजनीति में भी थी।
(लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/ स्तंभकार हैं)