लेखक-अमित सिंघल
कई बार हम घरेलु और जीवनयापन सम्बंधित समस्याओं से जूझने में इतना व्यस्त रहते है कि वृहद परिदृश्य की अनदेखी कर जाते है।
यह अब स्पष्ट है कि इस सदी में अमेरिकी सुपरपावर के एकक्षत्र प्रभुत्व का अंत हो रहा है, चीन एक जूनियर सुपरपावर बन कर निखर रहा है और भारत एक सहायक सुपरपावर के रूप में उभर रहा है।
पश्चिमी यूरोप वित्तीय संकट, माइग्रेंट्स और रिफ्यूजी, आतंकवाद, ब्रेक्सिट, आम आदमी के हिंसक प्रदर्शनों, लोकतंत्रीय व्यवस्था में अविश्वास और यूरोप की सीमाओं पे राजनैतिक अस्थिरता एवं असुरक्षा (जॉर्जिया, यूक्रेन, अर्मेनिया, अज़रबैज़ान, टर्की, सीरिया, लेबनान, मध्य पूर्व, लीबिया) के प्रकोप से जूझ रहा है।
जर्मनी एवं फ्रांस राजनीतिक अस्थिरता झेल रहे है। फ्रांस का वित्तीय घाटा 6% से अधिक है, जबकि यूरो राष्ट्रों में वित्तीय घाटा 3% पार नहीं होना चाहिए।
अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार को लेकर मतभेद इतने गहरे हो गये है कि दोनों एक दूसरे के व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा रहे है।
वेनेज़ुएला और ज़िंबाब्वे की करेन्सी और अर्थव्यवस्था फेल हो गयी है; रूस युद्ध में व्यस्त है। चीन में मंदी छाई हुई है और लाखो करोड़ो के NPA (खराब लोन) से जूझ रहा है। विपक्ष के असहयोग एवं विध्वंसक राजनीति से त्रस्त होकर साउथ कोरिया के राष्ट्रपारी ने मार्शल लॉ या मिलिट्री शासन स्थापित कर दिया था, जिस वापस लेना पड़ा।
कई प्रकार के कार्य स्वचालित मशीनो, रोबोट और कंप्यूटर द्वारा किये जाने लगे है जिससे व्यापार की प्रक्रिया और रोज़गार के अवसर बदल रहे है।
माल, पूँजी, सेवाएं और लेबर (जैसे एशिया में कपड़े बनवाना) कंप्यूटर या सेल फ़ोन से विश्व में कही भी भेजी जा सकती है। इससे सरकारों का प्रभाव कम होता जा रहा है और वे जटिल समस्याओ से निपटने में अपने आपको असमर्थ पा रही है।
भारत के चारो ओर अगर देखे तो इस समय तीन ओर से आतंकी क्षेत्रो या विचारधारा से से घिरा हुआ है, जिनमे भारी अथिरता व्याप्त है; दूसरी तरफ चीन है और नीचे अस्थिर म्यांमार है। भारत और चीन के मध्य सामरिक प्रायोगिता है। ईरान अमेरिकी प्रतिबंधो से जूझ रहा है। यमन मे युद्ध चल रहा है।
किसी भी सीमित महत्व की घटना और शिकायतों के समर्थन मे एकाएक भारी जनसमूह सड़क पे आ जाता है और हफ़्तो हिंसक प्रदर्शन करके सरकार गिरा देता है या सरकार की वैधता को बुरी तरह खंडित कर देता है।
ट्यूनीशिया, मिश्र, फ्रांस, आर्मेनिया, सीरिया, जॉर्जिया, सीरिया, यूक्रेन, वेनेज़ुएला, ऐसे प्रदर्शनो के प्रमुख उदाहरण है।
अंत में, नॉलेज-बेस्ड या ज्ञान पर आधारित आधुनिक काल में किसी भी समाज में व्यापक रूप से व्याप्त पंथिक कट्टरता – ऐसी कट्टरता जो “विधर्मियों” को मारने का आह्वान करे, जो पंथ के नाम पर महिलारो के अधिकारों का दमन करे, जो महिलाओ पर पाशविक अत्याचार करे, जो अपने पंथ को तलवार के बल पर अन्य लोगो पर थोपना चाहे – उस समाज के पतन का मार्ग प्रशस्त करती है।
उदाहरण के लिए, सीरिया में विरोधियों को हिंसा द्वारा कुचलने का प्रयास किया गया। दोनों ओर से दमन के नाम पर हत्या की गयी, महिलाओ को पाश्विक कृत्यों का सामना करना पड़ा। आज वहां खंडहरों का ढेर है। अलेप्पो जैसा हज़ारो वर्ष पुराना शहर नष्ट हो चुका है। चाहे सरकार कोई भी बनाए, आपने वाले कुछ वर्षो में स्थिति नहीं सुधरने वाली है।
पंथिक कट्टरता के कारण उत्पन्न जन विरोधाभास को संभालना दुरूह हो जाता है।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, यमन, ईरान, इराक, सीरिया, लेबनान, लीबिया, सूडान, सोमालिया, इथियोपिया, नाइजीरिया, बुर्किना फासो, निजेर, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, माली इत्यादि राष्ट्रों में अथिरता, मार-काट एवं महिलाओ पर पाशविक अत्याचारों को इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए।
इन्ही में से कुछ राष्ट्रों ने समय रहते इस कट्टरपंथी विचारधारा से कन्नी काट ली; आज वे तीव्र आर्थिक प्रगति कर रहे है।
एक तरह से हमारी दुनिया इतनी जटिल होती जा रही है कि किसी एक राष्ट्र या संस्था – जैसे कि संयुक्त राष्ट्र – के लिए इसे मैनेज करना दुरूह हो रहा है।
इस परिद्रश्य मे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीति की विशेषता यह है कि एक विषयवस्तु या युद्ध मे आमने-सामने खड़ी पार्टियो से भी भारत के मधुर संबंध है। उदाहरण के लिए, यमन मे सउदी अरेबिया एवं संयुक्त अरब एमीरात, और ईरान परस्पर विरोधी खेमे मे है। लेकिन भारत के तीनो देशो के साथ अच्छे संबंध है।
यूक्रेन पे रूस एक तरफ, युरोपियन यूनियन और अमेरिका दूसरी तरफ। लेकिन भारत का सबके साथ मित्रवत व्यवहार है।
(लेखक आयकर विभाग में उच्च पदों पर कार्यरत रहे हैं और यह उनके निजी मत हैं)