लेखक- आर एल फ्रांसिस
भारत के हिंदू हो या बांग्लादेश में बसे हिंदू हों, सभी सनातनी संस्कृति के आस्थावान समुदाय हैं। उनके जीवन और धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा करना प्रधानमंत्री मोदी का ही समान दायित्व है। यह बांग्लादेश का आंतरिक मामला नहीं है। विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह का राज्यसभा में दिया यह बयान बिल्कुल गलत है कि हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की रक्षा करना वहां की सरकार की जिम्मेदारी है। वहां के कट्टरपंथी तो बांग्लादेश को हिंदू-मुक्त करना चाहते हैं। वे ऐसे ऐलान भी करते रहे हैं।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमला थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारत सरकार ने हिंदू धार्मिक नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की गिरफ्तारी और उन्हें जमानत नहीं दिए जाने के मामले पर गहरा रोष जताया है। वहीं दूसरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने केंद्र सरकार से “बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों” के खिलाफ “वैश्विक समर्थन जुटाने” का आग्रह किया है। हिंदू संन्यासी चिन्मय कृष्ण दास को “अन्यायपूर्ण कारावास” से रिहा करने की मांग करते हुए, आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि पड़ोसी बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार तुरंत बंद होने चाहिए।
उन्होंने केंद्र से “बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए अपने प्रयास जारी रखने और इस संबंध में वैश्विक समर्थन जुटाने के लिए तुरंत जरूरी कदम उठाने” का आह्वान किया है। आरएसएस ने कहा कि बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार और अन्य एजेंसियों केवल “मूक दर्शक” बनी हुई हैं, जो हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को रोकने में सक्षम नहीं हैं।
भारत सरकार पिछले दो महीनों के दौरान कई बार बांग्लादेश से हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा रोकने का आग्रह कर चुकी है, लेकिन जब से शेख हसीना को सत्ता से बेदखल किया गया है तब से हिंदुओं के उत्पीड़न का मामला बढ़ता जा रहा है। बांग्ला हिंदू भी बुनियादी तौर पर ‘भारतीय’ ही हैं। चिंतित सरोकार तो यह है कि यूनुस मौजूदा घटनाओं और हत्याओं को ‘हिंदू अत्याचार’ मानते ही नहीं ! बांग्लादेश की सडक़ों पर जो बेखौफ भीड़ दिखाई देती है, हिंदुओं को मारने-काटने के जो नारे बुलंद किए जा रहे हैं, रात में हिंदुओं के घरों में घुसकर सेना और पुलिस जो यातनाएं दे रही हैं, अपहरण-धर्मांतरण किए जा रहे हैं, मंदिरों में देवी-देवताओं की जिस तरह प्रतिमाएं खंडित की जा रही हैं, क्या वे खुद हिंदू ही कर रहे हैं?
भारत के हिंदू हो या बांग्लादेश में बसे हिंदू हों, सभी सनातनी संस्कृति के आस्थावान समुदाय हैं। उनके जीवन और धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा करना प्रधानमंत्री मोदी का ही समान दायित्व है। यह बांग्लादेश का आंतरिक मामला नहीं है। विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह का राज्यसभा में दिया यह बयान बिल्कुल गलत है कि हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की रक्षा करना वहां की सरकार की जिम्मेदारी है। वहां के कट्टरपंथी तो बांग्लादेश को हिंदू-मुक्त करना चाहते हैं। वे ऐसे ऐलान भी करते रहे हैं।
स्थानीय विश्वविद्यालयों से हिंदू प्रोफेसरों को जबरन निकाला जाता रहा है। वहां की सरकार खामोश, कन्नी काट कर बैठी रहेगी, तो क्या भारत सरकार भी तटस्थ बनी रहेगी? शायद बांग्लादेश की मौजूदा पीढ़ी को याद नहीं है कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाने में भारत का निर्णायक योगदान था। यदि भारतीय सेना तत्कालीन ‘मुक्तिवाहिनी’ के आंदोलन के साथ न जुड़ती, तो शायद बांग्लादेश ही न बनता ! बेखौफ, बेलगाम घूमती कट्टरपंथी जमात को यह इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए। बांग्लादेश की मौजूदा पीढ़ी को यह भी याद नहीं होगा कि जब ‘बांग्लादेश’ बन रहा था, तब चारों ओर भुखमरी, गरीबी के ही हालात थे। उस दौर में ‘इस्कॉन’ ने ही रोजाना लाखों लोगों को भोजन मुहैया कराया था। भारत में भी करीब 12,000 बांग्लादेशियों को हर रोज खाना खिलाया गया था।
आज भी बांग्लादेश में ‘इस्कॉन’ 77 मंदिरों का संचालन कर रहा है और 75,000 से अधिक उसके अनुयायी हैं। तब प्रख्यात सितारवादक पंडित रवि शंकर ने एक अन्य विदेशी संगीतकार के साथ मिल कर न्यूयॉर्क में कंसर्ट किया था, जिससे बांग्लादेश के लिए 100 करोड़ रुपए जुटाए गए थे। क्या बांग्लादेशी उस एहसान की कीमत चुका सकते हैं? क्या उसी ‘इस्कॉन’ को हिंदू-विरोधी जमात ‘आतंकवादी’ करार देगी? यह तो संतोष की बात है और उसके लिए अदालत के नीर-क्षीर विवेक का आभार व्यक्त करना चाहिए कि ढाका उच्च न्यायालय ने ‘इस्कॉन’ पर प्रतिबंध लगाने से इंकार कर दिया और हुकूमत समर्थित याचिका को खारिज कर दिया। बहरहाल, हिंदुओं की सुरक्षा की सबसे अधिक जिम्मेदारी भारत सरकार की बनती है।
बांग्लादेश में आए राजनीतिक बदलाव के कारण वहां के हिन्दुओं के विरुद्ध हमले बढ़ते जा रहे हैं। गौरतलब है कि बांग्लादेश में राजनीतिक परिवर्तन से वहां कट्टरपंथियों का बोलबाला हो गया है और वर्तमान सरकार की विदेश नीति में आये परिवर्तन के कारण सामरिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से बांग्लादेश के पाकिस्तान के साथ काफी अच्छे संबंध हो गए हैं। बांग्लादेश में हिन्दुओं और भारत विरुद्ध जो हो रहा है या कहा जा रहा है उसके पीछे पाकिस्तान ही है और पाकिस्तान के पीछे चीन है। उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए भारत को अपनी विदेश नीति के साथ-साथ अपनी आर्थिक व राजनीतिक नीतियों पर भी समयानुसार परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।

(लेखक पुवर कृश्चियन लिबरेशन फ्रंट के नेशनल प्रेसिडेंट हैं और यह उनके निजी विचार हैं)