(राजेश बैरागी)
(गौतमबुद्ध नगर)
√ काश यह धमकी कोरी न हो साबित
हालांकि यह कथा 2007 से आरंभ होती है जब पहली बार बहिन मायावती ने अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।आवास के लिए आकाश छूती हाईराइज सोसायटियों का युग आ चुका था। जनता दिनों-दिन बढ़ रही थी और जमीन उतनी की उतनी ही थी। आपूर्ति और आवश्यकता के खेल में सरकार और रियल एस्टेट के खिलाड़ियों ने गुल खिलाने शुरू कर दिए। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों को केवल दस प्रतिशत की टोकन मनी पर हजारों और लाखों मीटर भूमि की खैरात बंटने लगी।
देखते ही देखते दिल्ली से सटे इन उपग्रहीय शहरों में चारों ओर ऊंची ऊंची बिल्डिंग नजर आने लगीं। किसी को नहीं पता था कि इन ऊंची बिल्डिंगों के नीचे कितने वर्षों तक अपनी जीवन भर की पूंजी लगाने वाले लोगों के अरमान कुचले जाते रहेंगे। खुद प्राधिकरण अपनी जमीन का पैसा लेना भूल गए। बिल्डर निश्चिंत होकर एक के बाद दूसरा और एक शहर के बाद दूसरे शहरों में नये नये प्रोजेक्ट खड़े करते गए।
चर्चा रही कि तत्कालीन सरकार और उसके बाद की सरकारों ने बिल्डरों से न केवल पैसा लिया बल्कि उनके साथ दुरभि संधियां भी कीं। निवेशकों और असल ग्राहकों के अग्रिम भुगतान पर चले रियल एस्टेट के इस खेल का भांडा बहुत देर तक नहीं फूटा और जब फूटना शुरू हुआ तो किसी को यह समझ नहीं आया कि इसे कैसे संभाला जाए। अखिलेश यादव की सरकार आकर चली गई। फ्लैट बायर्स अपने आशियाने के लिए सड़कों पर आकर छाती पीटने लगे।
नोएडा ग्रेटर नोएडा में ऐसे फ्लैट बायर्स की संख्या ढाई लाख बताई जाती है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस समस्या पर ध्यान केंद्रित किया तो समाधान नजर नहीं आ रहा था। बिल्डर खुद को दिवालिया घोषित कराने का मजेदार खेल शुरू कर चुके थे। नीति आयोग के सदस्य रहे अमिताभ कांत की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर सुझाव मांगे गए।
अमिताभ कांत समिति ने सुझाया कि बिल्डरों से प्राधिकरणों के बकाए का 25 प्रतिशत जमा कराकर बायर्स के फ्लैटों की रजिस्ट्री खोल दी जाए। सरकार ने इस सुझाव पर अमल किया परंतु दिवालिया होने में खुशी अनुभव कर रहे बिल्डर आगे आने को तैयार नहीं हुए। शुरुआत छोटे बिल्डरों से हुई। बड़े बिल्डर अभी भी अड़े हैं। नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी लोकेश एम ने ऐसे बिल्डरों के विरुद्ध आर्थिक अपराध शाखा को जांच सौंपने की धमकी दी है।
काश कि यह धमकी कोरी साबित न हो। यदि बिल्डरों की जांच आर्थिक अपराध शाखा ने की और यदि यह जांच ईमानदारी से हुई तो भगवान ही जान सकता है कि जांच की आंच कहां से कहां पहुंचेगी। हालांकि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी रवि कुमार एनजी इस प्रकार की कार्रवाई के पक्षधर नहीं हैं।उनका मानना है कि प्राधिकरण का उद्देश्य फ्लैट बायर्स की समस्या का समाधान करना है। मुझे लगता है कि इस बात में भी पूरा दम है।