लेखक डॉ.के. विक्रम राव
उन दिनों अमूमन अखबारों के दफ्तर में देर शाम फोन की घंटी बजती थी (तब मोबाइल नहीं जन्मा था), तो अंदेशा होता था कि “कुछ तो हुआ होगा।” मसलन ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु (तड़के तीन बजे), जान कैनेडी की हत्या (आधी रात), याहया खान द्वारा भारतीय वायुसेना स्थलों पर बांग्लादेश युद्ध पर प्रथम रातवाला हवाई हमला, इत्यादि। उस रात (दिसम्बर, 1966) में मुंबई “टाइम्स ऑफ इंडिया” दफ्तर में अचानक फोन की घंटी बजी। तीसरी मंजिल के रिपोर्टर कक्ष में बैठा, मैंने फोन उठाया। कोई पूछ रहा था : “सिटी डायरी” के लिए फलां कार्यक्रम भेजा था, छाप दीजिएगा।” खोजकर मैने उन्हे बताया कि आइटम दे दिया है।
उधर से वह व्यक्ति अपना नाम बताने ही वाला था कि बीच में मैंने टोका। कह दिया : “आपको कौन नहीं पहचानता ? आपकी आवाज ही आपकी पहचान है” ! वे थे अमीन सयानी। आज उनका निधन हो गया। उनकी दिलकश वाणी सुनकर ही मेरी स्कूली पीढ़ी वयस्क हुई थी। तभी रेडियो सीलोन पर बिनाका गीतमाला शुरू हो गई थी। बुधवार की शाम हुई कि आठ बजते बजते रेडियो से सभी कान सटाकर बैठते थे। हिंदुस्तान ठहर जाता था। “भाइयों और बहनों,” “अमीन सयानी......।” उनकी उद्घोषणा का अंदाज भी निराला था। मानो श्रोता के सामने बैठकर संवाद कर रहे हों। बीन बजा रहे हों !
एकदा बॉलीवुड में किस्मत आजमाने से पहले अमिताभ बच्चन रेडियो उद्घोषक बनना चाहते थे। इसके लिए वह 'ऑल इंडिया रेडियो' के मुंबई के स्टूडियो में ऑडिशन देने भी गए थे अमीन सयानी के पास। तब अमिताभ से मिलने का समय उनके पास नहीं था, क्योंकि इस युवक ने अमीन सयानीजी से वॉयस ऑडिशन के लिए पहले से समय नहीं लिया था। अमीन सयानी को याद कभी हुआ, कि “जब मैं एक हफ्ते में 20 कार्यक्रम करता था तो हर दिन मेरा अधिकतर समय साउंड स्टूडियो में गुजरता था। मैं रेडियो प्रोग्रामिंग की हर प्रक्रिया में शामिल रहता था।” सयानी याद करते हैं कि एक दिन अमिताभ बच्चन नाम का एक युवक बिना समय लिए वॉयस ऑडिशन देने आया। मेरे पास उस पतले-दुबले व्यक्ति के लिए बिल्कुल समय नहीं था। उसने इंतजार किया और लौट गया। इसके बाद भी वह कई बार आया, लेकिन मैं उससे नहीं मिल पाया और रिसेप्शनिस्ट के माध्यम से यह कहता रहा कि वह पहले समय ले, फिर आए।"
हालांकि 1970 के दशक में निजी टीवी चैनलों के आने और फिल्मी गीतों की गुणवत्ता में लगातार गिरावट के कारण गीत माला ने अपनी चमक खोनी शुरू कर दी थी। आज जो विविध भारती चमक रही है, उसमें भी अमीन सयानी को ही श्रेय देना चाहिए। आकाशवाणी के संचालक समझ गये कि फिल्मी गीत धनोपार्जन का अजेय स्रोत हैं। उसे परिमार्जित कर चलाया गया। आज वह शीर्ष पर है।

(लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तंभकार हैं)