कांग्रेस के “मुग़ल सम्राट” राहुल गांधी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के संवैधानिक पद की गरिमा के विरुद्ध जाकर समस्त हिंदू समाज को हिंसक कहते हुए जो गाली दी और असहनीय अपमान किया, उस पर गहन विश्लेषण की आवश्यकता है कि आखिर ऐसा कहा क्यों गया? राहुल गांधी ने अपने को हिंदू धार्मिक गुरु के रूप में पेश करते हुए कहा कि जो हर वक्त अपने को हिंदू कहते हैं, वो हिंदू हो ही नहीं सकते, वो हर समय हिंसा, हिंसा, हिंसा करते हैं, नफरत, नफरत, नफरत फैलाते है और असत्य, असत्य और असत्य कहते हैं ,जबकि हिंदुस्तान अहिंसा का देश है और हमारे महापुरुष कहते हैं डरो मत और डराओ मत।
भगवान शंकर “अभय” की मुद्रा दिखाते हैं, शांति का पाठ पढ़ाते हैं ,गुरु नानक के भी अभय मुद्रा हाथ की बात करते है लेकिन हिंदुओं को हिंसक कहने वाले कभी शंकर जी और नानक की तरह इस्लाम के अल्लाह के “अभय” का हाथ नहीं दिखाते। क्योंकि नेता विपक्ष राहुल गांधी हो अन्य कांग्रेसी नेता हो, या सेक्युलर नेताओं को पता है कि उन्होंने भूल से भी इस्लाम मज़हब के बाबत एक शब्द भी उल्टा बोला तो उनकी तरफ़ से कोई भी अभयदान नहीं मिलने वाला है। देश के साथ कांग्रेस ने देखा है कि बेअदबी के नाम पर सड़कों पर हुजूम उमड़ पड़ता है,”सर तन से जुदा” होने के नारे लगते है और राजस्थान में कांग्रेस की ही अशोक गहलोत सरकार के रहते सर तन से जुदा किए गए। कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने हिंदू धर्म की “शक्तियों” से लड़ने की और उन्हें ख़त्म करने की बात कही थी और चुनाव से पहले इस “अहिंसा” के कथित पुजारी ने खुली चुनौती देते हुए कहा था कि चुनाव नतीजों में अगर EVM के खेल से नरेंद्र मोदी की सरकार बनती है तो देश में आग लग जायेगी। कांग्रेस को अपने इशारे पर नचाने वाले गांधी परिवार की मंशा देश के प्रति कैसी है यह इससे भी समझा जा सकता है कि इसके पहले सांसद रहते विदेश में बैठकर राहुल गांधी ने इंटरव्यू में कहा था कि भारत में केरोसिन छिड़क दिया गया है और बस माचिस की तीली दिखाने की जरूरत है। अब जानते हैं राहुल गांधी ने पूरे हिंदुओ को “हिंसक” क्यों कहा। दरअसल वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने देख लिया कि उन्हें जो कुछ जीत चुनाव में मिली, वह केवल मुसलमानों की वजह से मिली है और आगे भी वो दल मुसलमानों पर ही दाव लगाएंगे। नई संसद शुरू होने से पहले ही मैंने लिख दिया था कि विपक्ष खासकर कांग्रेस 10 साल से संसद में हंगामा करता रहा है और वह अगले 5 साल भी करता रहेगा और देश को यह एहसास कराते रहेगा कि सरकार भले तुम्हारी हो लेकिन सिस्टम तो हमारा ही चलेगा। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के दौरान जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस सांसदों को वेल में जाकर विरोध करने के लिए भेजा वह बेहद निंदनीय कृत्य है। वहीं यह भी देखा गया कि जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सदन में बोल रहे थे तो प्रधानमंत्री समेत सारे मंत्री, एनडीए के सांसद सुने भी और जहां झूठ और गलत बयानी किए तो सबूतों के साथ उनको जवाब भी दिया किंतु जब नेता सदन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबका जवाब देना शुरु किया तो नेता विपक्ष से लेकर विपक्षियों द्वारा भयंकर शोरशराबा किया जाता रहा। यह बेहद गैर जिम्मेदार की तरह से नेता विपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के सांसदों का आचरण है। सदन को सकारात्मक चर्चा और देश के मुद्दों पर बहस करने के लिए संविधान ने शक्तियां प्रद्त्त की है और एक दिन सदन को संचालित करने में करदाताओं के सैकड़ो करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। इस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष को गम्भीरता से मनन करने की जरूरत है।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)
कांग्रेसी “मुग़ल” ने हिंदुओं हिंसक कह फिर किया अपमानित
लेखक – सुभाषचंद्र
कांग्रेस के “मुग़ल सम्राट” राहुल गांधी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के संवैधानिक पद की गरिमा के विरुद्ध जाकर समस्त हिंदू समाज को हिंसक कहते हुए जो गाली दी और असहनीय अपमान किया, उस पर गहन विश्लेषण की आवश्यकता है कि आखिर ऐसा कहा क्यों गया? राहुल गांधी ने अपने को हिंदू धार्मिक गुरु के रूप में पेश करते हुए कहा कि जो हर वक्त अपने को हिंदू कहते हैं, वो हिंदू हो ही नहीं सकते, वो हर समय हिंसा, हिंसा, हिंसा करते हैं, नफरत, नफरत, नफरत फैलाते है और असत्य, असत्य और असत्य कहते हैं ,जबकि हिंदुस्तान अहिंसा का देश है और हमारे महापुरुष कहते हैं डरो मत और डराओ मत।
भगवान शंकर “अभय” की मुद्रा दिखाते हैं, शांति का पाठ पढ़ाते हैं ,गुरु नानक के भी अभय मुद्रा हाथ की बात करते है लेकिन हिंदुओं को हिंसक कहने वाले कभी शंकर जी और नानक की तरह इस्लाम के अल्लाह के “अभय” का हाथ नहीं दिखाते।
क्योंकि नेता विपक्ष राहुल गांधी हो अन्य कांग्रेसी नेता हो, या सेक्युलर नेताओं को पता है कि उन्होंने भूल से भी इस्लाम मज़हब के बाबत एक शब्द भी उल्टा बोला तो उनकी तरफ़ से कोई भी अभयदान नहीं मिलने वाला है।
देश के साथ कांग्रेस ने देखा है कि बेअदबी के नाम पर सड़कों पर हुजूम उमड़ पड़ता है,”सर तन से जुदा” होने के नारे लगते है और राजस्थान में कांग्रेस की ही अशोक गहलोत सरकार के रहते सर तन से जुदा किए गए।
कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने हिंदू धर्म की “शक्तियों” से लड़ने की और उन्हें ख़त्म करने की बात कही थी और चुनाव से पहले इस “अहिंसा” के कथित पुजारी ने खुली चुनौती देते हुए कहा था कि चुनाव नतीजों में अगर EVM के खेल से नरेंद्र मोदी की सरकार बनती है तो देश में आग लग जायेगी।
कांग्रेस को अपने इशारे पर नचाने वाले गांधी परिवार की मंशा देश के प्रति कैसी है यह इससे भी समझा जा सकता है कि इसके पहले सांसद रहते विदेश में बैठकर राहुल गांधी ने इंटरव्यू में कहा था कि भारत में केरोसिन छिड़क दिया गया है और बस माचिस की तीली दिखाने की जरूरत है।
अब जानते हैं राहुल गांधी ने पूरे हिंदुओ को “हिंसक” क्यों कहा।
दरअसल वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने देख लिया कि उन्हें जो कुछ जीत चुनाव में मिली, वह केवल मुसलमानों की वजह से मिली है और आगे भी वो दल मुसलमानों पर ही दाव लगाएंगे।
नई संसद शुरू होने से पहले ही मैंने लिख दिया था कि विपक्ष खासकर कांग्रेस 10 साल से संसद में हंगामा करता रहा है और वह अगले 5 साल भी करता रहेगा और देश को यह एहसास कराते रहेगा कि सरकार भले तुम्हारी हो लेकिन सिस्टम तो हमारा ही चलेगा।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के दौरान जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस सांसदों को वेल में जाकर विरोध करने के लिए भेजा वह बेहद निंदनीय कृत्य है। वहीं यह भी देखा गया कि जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सदन में बोल रहे थे तो प्रधानमंत्री समेत सारे मंत्री, एनडीए के सांसद सुने भी और जहां झूठ और गलत बयानी किए तो सबूतों के साथ उनको जवाब भी दिया किंतु जब नेता सदन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबका जवाब देना शुरु किया तो नेता विपक्ष से लेकर विपक्षियों द्वारा भयंकर शोरशराबा किया जाता रहा।
यह बेहद गैर जिम्मेदार की तरह से नेता विपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के सांसदों का आचरण है। सदन को सकारात्मक चर्चा और देश के मुद्दों पर बहस करने के लिए संविधान ने शक्तियां प्रद्त्त की है और एक दिन सदन को संचालित करने में करदाताओं के सैकड़ो करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं।
इस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष को गम्भीरता से मनन करने की जरूरत है।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)