लेखक -श्याम नारायण मिश्रा
कई भारतीय न्यूज चैनल, अखबार, यहाँ तक की सुरक्षा एजेंसी, गृह मंत्रालय और बीएसएफ द्वारा भारत, नेपाल, पाकिस्तान , बांग्लादेश के बॉर्डर पर M फैक्टर की जांच से पता चला है कि हाल ही में बॉर्डर पर मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है।
सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की सरहद पर विदेशी ताकतों द्वारा मुस्लिम कोरिडोर बनाने के लिए यूपी के बहराइच का इस्तेमाल हो रहा है।
इसके अलावा नेपाल सीमा तेजी से बढ़ते मदरसों में यूपी का यही धर्मांतरण गिरोह सक्रिय है, और ये सभी आतंकवादियों, घुसपैठियों के लिए मुस्लिम गलियारा बनाने की साजिश का हिस्सा है।
उत्तर प्रदेश में भी कई जिलों में तेजी से मुस्लिम बहुल इलाकों मुजफ्फरनगर (50.14%), मुरादाबाद (46.77%), बरेली (50.13%), सीतापुर (129.66%), हरदोई (40.14%), बहराइच (49.17%) और गोंडा (42.20%) में बढ़ती जनसंख्या से एक ‘मुस्लिम पट्टी’ बनाने की साजिश का पर्दाफाश हुआ है।
भारत, नेपाल, बांग्लादेश बॉर्डर पर पिछले 10 साल में 32% मुस्लिम आबादी बढ़ने से नेपाल और बांग्लादेश से सटे कई इलाकों में डेमोग्राफी चेंज से भारत की संप्रभुता को बड़ा खतरा है।
ऐसे में बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स BSF का दायरा 50 किमी से 100 किमी बढ़ाया जा सकता है।
जनसत्ता, दैनिक भास्कर, ओप इंडिया, न्यूज 18, टाइम्स नाउ जैसे मीडिया हाउस की मानें तो राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने गृहमंत्रालय को रिपोर्ट दी है कि.बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी मुल्कों की सीमा से सटे इलाकों में होने वाला डेमोग्राफिक बदलाव बदलाव सामान्य नहीं है…?
पिछले 10 साल में उत्तर प्रदेश और असम के बॉर्डर वाले इलाकों में जनसांख्यिकी में अप्रत्याशित बदलाव हुआ और 2011 के बाद 32% मुस्लिम बढ़ गए, जबकि पूरे राज्य में मिलाकर ये दर 10-15 फीसदी ही है।
कथित तौर पर सभी सीमावर्ती इलाकों में मुस्लिम आबादी 20% तेजी से बढ़ी है और साथ ही इनके मजहबी मस्जिदों, मदरसों की गिनती में भी वृद्धि देखी गई है।
भारत की सीमा पर हो रहे इन बदलावों को देख सुरक्षा एजेंसियों और राज्य पुलिस ने अपनी चिंता जाहिर की है। उन्होंने गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील मुद्दा कहा है।
माँग की गई है कि बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को 50 किमी से बढ़ाकर 100 किमी किया जाए ताकि उन्हें जाँच में आसानी हो।
इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी बयान आया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि इतना ज्यादा डेमोग्राफिक बदलाव सिर्फ आबादी बढ़ने का मसला नहीं है। ये भारत में घुसपैठ का नया पैटर्न हो सकता है।
यही वजह है कि यूपी और असम की सीमा सुरक्षित रखने के लिए बीएसएफ का दायरा बढ़ाने की माँग हो रही है।
राजस्थान, उत्तराखंड में भी यूपी और असम की ही तरह अचानक मुस्लिम आबादी में हुई वृद्धि सुरक्षा एजेंसियों की चिंता का कारण बनी।
बीएसएफ की जांच में सामने आया* कि राजस्थान, गुजरात के कई इलाकों में हुआ जनसांख्यिकी बदलाव में अजीब सा फर्क है।
जहाँ बाकी समुदाय के लोगों में केवल 8-10 फीसद आबादी बढ़ी मिली थी। वहीं मुस्लिमों की जनसंख्या 20-25 फीसदी तेजी से बढ़ी है।
सबसे खास बात ये की इन सभी इलाकों में अचानक से ज्यादा बच्चों को मदरसों में जाता देखा गया था और ये भी पता चला कि पोखरण, मोहनगढ़ और जैसलमेर जैसे सीमा वाले इलाकों में अचानक देवबंद के मौलवी आने लगे जो समुदाय को कट्टरपंथ की तालीम देते थे।
नेपाल से लगे उत्तराखंड के इलाकों के लिए भी सुरक्षा एजेंसियाँ चिंता जता चुकी हैं। पिछले साल गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट अनुसार वहाँ मजहब विशेष की आबादी में 2011 की मतगणना से ढाई गुना ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई थी।
सुरक्षा एजेंसियों का दावा था कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी नेपाल के रास्ते भारत में सक्रिय हैं। वह यहाँ मदरसों को खोल रही हैं। वहीं अवैध निर्माण किए जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले उत्तर भारत में एक मुस्लिम पट्टी बनाने की साजिश का खुलासा एक लेख में हुआ था।
दावे के मुताबिक पट्टी में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों के इलाकों को निशाना बनाए जाने की बात है जो कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से जुड़े हैं और ये मुस्लिम गलियारा (कोरिडोर) बंगाल से बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा होते हुए पाकिस्तान में मिलेगा।
अभी भी अधिकांश लोगों को शायद यही लगता है कि न्यूज चैनल, अखबार, खबरों में कुछ खास नहीं, सब फालतू राजनीति है, और हमें कोई खतरा नहीं, लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह मुँह रेत में छुपाने से खतरा खत्म नहीं हो सकता इससे केन्द्र और राज्य सरकारों की आंतरिक एजेंसियों को त्वरित गति से सक्रिय होकर इस गहरे साजिश को समूल नष्ट करना होगा।
भारतीय जनता का इतना दायित्व तो बनता ही है की कम से कम अपने आस पास किसी भी संदिग्ध बदलाव की खबर सुरक्षा एजेंसियों को दी ही जा सकती है!

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर हैं और यह उनके निजी मत हैं)