(राजेश बैरागी)
(गौतम बुद्ध नगर)
जेवर एयरपोर्ट के क्रियाशील होने के बाद लोग निश्चित ही यह भूल जाएंगे कि इसी एयरपोर्ट के निर्माण के चलते पास ही स्थित रन्हेरा गांव पानी में डूब गया था। एयरपोर्ट पर देश विदेश से उतरने वाले यात्री तो शायद यह भी न जान पाएं कि यहां कोई रन्हेरा नामक गांव भी है। क्योंकि जेवर में बन रहे अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को दिल्ली के पालम की भांति जेवर या आसपास के किसी गांव के नाम से नहीं बल्कि नोएडा के नाम से जाना जाएगा जो कम से कम साठ किलोमीटर दूर है। रन्हेरा गांव में पानी के रूप में आई आपदा अभूतपूर्व नहीं थी। हमारे देश में ऐसी अनगिनत जगह हैं जहां प्रतिवर्ष बाढ़ आती है और गांव पानी में डूब जाते हैं। ऐसे क्षेत्र देश के अति पिछड़े और विकास की रौशनी से पूरी तरह अनजान हैं।
जेवर के निकट बन रहा एएयरपोर्ट नोएडा ग्रेटर नोएडा जैसे अत्याधुनिक नगरों की चमचमाती विकास गाथाओं का अगला पड़ाव है। भविष्य का आधुनिक नगर यमुना एक्सप्रेस-वे पर बसने जा रहा है। वहां एक गांव में बंद नाले, खुले नाले, पुराने नाले,नये नाले और बारिश की साजिशों ने मिलकर बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए और हालात बिगड़ने तक किसी को खबर नहीं हुई। यह दैवीय आपदा नहीं थी बल्कि मानव निर्मित लापरवाही से ऐसे हालात बने। खबरों में बताया गया है कि सत्रह करोड़ रुपए से बना नाला एक गांव में भर गये पानी के समक्ष बौना साबित हुआ। दरअसल बड़ी विकास परियोजनाओं में इस प्रकार की छोटी मोटी आपदाओं का कोई स्थान नहीं होता है। परियोजना यदि दैत्याकार हो तो उसके नीचे बहुत सी छोटी सुविधाएं कुचल सकती हैं।
बड़ी विकास परियोजनाएं आम नागरिकों की छोटी छोटी कुर्बानियां ले सकती हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने ऐसी ही कुर्बानियों को रेखांकित करते हुए ‘नींव की ईंट’ जैसा आलेख लिखा था। बहरहाल इस पोस्ट को लिखने से पहले ही रन्हेरा गांव का पानी लगभग उतर चुका है और एयरपोर्ट के नीति विशेषज्ञों का भी।