लेखक: सुभाष चंद्र
यूक्रेन के द्वारा रूस पर किए गए घातक ड्रोन हमले ने रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी KGB को विफल साबित किया है तो दूसरी तरफ लगता है इस हमले का आभास अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पहले से था।
यूक्रेन ने जिस तरह रूस के एयरबेस उड़ाए और 40 से ज्यादा फाइटर जेट्स बर्बाद किए, वह रूस के लिए बहुत बड़ा झटका है।
यूक्रेन ने अपने ड्रोन ट्रकों में लाद कर रूसी सीमा में अंदर तक भेज कर 4000 किलोमीटर तक मार की, उससे लगता है रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी विफल साबित हुई –
यूक्रेन का दावा है कि इस हमले की तैयारी वह 18 महीने से कर रहा था – लेकिन रूस को इसकी भनक तक नहीं लगी।
चार दिन पहले ट्रंप ने कहा था कि पुतिन आग से खेल रहे हैं जिस पर रूस ने जवाब दिया था कि अमेरिका को वास्तविकता का पता नहीं है और तीसरे विश्व युद्ध की भी धमकी दे दी थी। ट्रंप के बयान से माना जा सकता है कि उसे कल यूक्रेन के हमले के बारे में आभास था, जेलेंस्की ने शांति वार्ता के एक दिन पहले रूस पर प्रहार किया जिससे पता चलता है कि जेलेंस्की शांति चाहता ही नहीं है।
चीन ने कहा है कि रूस यूक्रेन युद्ध के लिए अमेरिका जिम्मेदार है ,हो सकता है यह बात सत्य भी हो क्योंकि अमेरिका ने ही जेलेंस्की के दिमाग में फितूर डाला था कि उसे NATO में शामिल किया जा सकता है जो पुतिन को पसंद नहीं था।
3 साल के युद्ध के बाद भी यूक्रेन को NATO में शामिल नहीं किया गया लेकिन अमेरिका और यूरोप के देश जिसमें अधिकांश NATO सदस्य हैं, यूक्रेन को हथियार देते रहे ,अमेरिका समेत ये सभी यूरोपीय देश रूस के साथ Proxy War लड़ रहे हैं जिसके लिए अमेरिका समेत सभी ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा कर उसे आर्थिक तौर पर तोड़ने की कुटिल चाल चली।
जेलेंस्की ने हमला तो कर दिया लेकिन उसे पता है पुतिन शांत बैठने वाला नहीं है – इसलिए आज की शांति वार्ता से पहले ही जेलेंस्की ने ट्रंप से गुहार लगाई कि अगर शांति वार्ता विफल होती है तो रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाए जाएं ।ऐसे प्रतिबंध लगा कर युद्ध को एकतरफा करने की कोशिश माना जाएगा क्योंकि प्रतिबंध से Level Playing Field तो ख़त्म हो गया – अमेरिका और यूरोप को Proxy War लड़नी भी थी तो रूस पर प्रतिबंध लगाए बिना लड़ते।
जेलेंस्की को मोहरा बना कर ये सभी देश रूस को खोखला करने में लगे हैं – जेलेंस्की को युद्ध से आखिर क्या मिला, उसके 12 लाख लोग देश छोड़ कर दूसरे देशों में शरणार्थी बन गए, 5 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और यूक्रेन के अनेक शहर खंडहर बन गए उधर रूस का भी कम नुकसान नहीं हुआ, उसके भी लाखों नागरिक, सैनिक मारे गए हैं लेकिन अंततः युद्ध एक नाक की लड़ाई बन कर रह गया है।
रूस के साथ जेलेंस्की को आगे करके Proxy War लड़ने से बेहतर था यूक्रेन को NATO में शामिल कर लेते और NATO के 32 देश एक साथ रूस के साथ लड़ने की हिम्मत करते लेकिन सच यह है कि ऐसा करके NATO को विश्व युद्ध छिड़ने का खतरा था जो अभी भी बना हुआ है।
यूक्रेन ने रूस पर हमला तो कर दिया लेकिन अब उसे रूस के प्रतिकार के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि पुतिन भी हार कर बैठने वाला नहीं है वो कैसा और कब यूक्रेन पर भीषण और विध्वंसक हमला करेगा, कोई नहीं जानता।
ट्रंप ने खेल खेला जो घर बुला कर जेलेंस्की को जलील भी किया और फिर उसके साथ यूक्रेन के खनिजों का भी समझौता कर लिया जबकि हथियार तो पहले से ही उसके बिक रहे हैं।
एक तरफ रूस की केजीबी विफल हुई तो दूसरी तरफ इज़रायल की MOSAD और अमेरिकी CIA भी विफल रही जो डेढ़ साल में इज़रायल के बंधकों का पता नहीं लगा सके जबकि पूरा गाज़ा इज़रायल ने खोद डाला।
रूस और यूक्रेन दोनों को युद्ध से कुछ नहीं मिलेगा ,दोनों ने ही अमेरिका और यूरोप के कुचक्र में फंसकर अपने, अपने देशों को बर्बाद कर लिया और आगे कितनी बर्बादी होती है, कोई नहीं जानता

(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं)