लेखक-संजय राय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया मालदीव दौरे ने एक बार फिर से पड़ोसी की अहमियत को रेखांकित किया है। प्रधानमंत्री का यह दौरा “इंडिया आउट” का नारा देकर सत्ता में आए मालदीव के राष्ट्रपति राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के निमंत्रण पर हुआ। शुक्रवार, 25 जुलाई 2025 को दो दिवसीय दौरे पर मालदीव की राजधानी माले पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने मालदीव के 60वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर भाग लिया।
माले में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत 21 तोपों की सलामी के साथ किया गया। राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद किसी विदेशी नेता की यह पहली यात्रा थी। माले हवाई अड्डे पर उतरते ही मोदी के स्वागत के लिए खुद मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू पहुंचे थे। उनके साथ विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और गृह सुरक्षा मंत्री सहित उनके मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य भी मौजूद थे।हिंद महासागर में चीन की लगातार बढ़ रही गतिविधियों को देखते हुए भारत को अपनी पैठ बढ़ाने के लिहाज से मालदीव भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के नेता और पेशे से इंजीनियर मोहम्मद मुइज्जू ने अपनी राजनीतिक इंजीनियरिंग को भारत विरोध के सहारे परवान चढ़ाकर 17 नवम्बर 2023 को मालदीव के 8वें राष्ट्रपति के रूप में वहां की सत्ता संभाली। मुइज्जू को चीन का समर्थक माना जाता है। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने सबसे पहले तुर्की और चीन का दौरा किया था। इतना ही नहीं उन्होंने भारत पर धमकाने का भी आरोप लगाया।

मुइज्जू के सत्ता में आते ही उनका भारत विरोध इस हद तक पहुंच गया था कि भारत को अपने सैनिकों को मालदीव से वापस बुलाना पड़ा गया। दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि भारत में भी मालदीव के खिलाफ अभियान चलाया जाने लगा और सोशल मीडिया पर मालदीव न जाने की अपील की जाने लगी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी मालदीव को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए लक्षद्वीप का दौरा करके भारत के पर्यटकों को मालदीव घूमने नहीं जाने और लक्षद्वीप आने के लिए प्रेरित किया। बता दें कि मालदीव की अर्थव्यवस्था में भारत के पर्यटकों की बहुत बड़ी भूमिका रहती है।
भारत और मालदीव के बीच पैदा हुए इस तनाव का चीन ने फायदा उठाया और मालदीव में पैठ बनानी शुरू की। समुद्री सुरक्षा के लिहाज से मालदीव भारत के लिए अहम है। ऐसे में भारत ने धैर्य बनाए रखा और गुपचुप तरीके से कूटनीतिक मोर्चे पर काम करता रहा। परिणाम सामने है। मुइज्जू समझ गए कि भारत विरोध की नाव पर वह लंबे समय तक सवारी नहीं कर सकते हैं। उन्हें पता चल गया कि पड़ोसी भारत को नजरअंदाज करके वह अपने देश का ही नुकसान करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी का मालदीव दौरा मुइज्जू की इसी समझ और भारत की कूटनीतिक सफलता का परिणाम है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस यात्रा के दौरान मालदीव के साथ विकास भागीदारी को मजबूत करने के लिए 565 मिलियन डॉलर या 4 हजार 800 करोड़ रुपये से ज्यादा के क्रेडिट लाइन का ऐलान किया है और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर बातचीत शुरू करने की पहल की है। इस घोषणा से स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग और रणनीतिक समझ बढ़ रही है। मुइज्जू की तमाम राजनीतिक बयानबाजियों के बावजूद अपने रणनीतिक हित को ध्यान में रखकर भारत मालदीव के विकास में सहायता कर रहा है।
मुइज्जू ने भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने की मांग की तो भारत इसके लिए तुरंत सहमत हो गया लेकिन साथ ही भारत ने मुइज्जू को मालदीव के अर्थशास्त्र की तस्वीर दिखाई तो उन्हें राजनीतिक बयानबाजी और वास्तविकता का अंदाजा लगा। भारत के समझाने पर मुइज्जू भारत के 76 रक्षा कर्मचारियों को प्रशिक्षित नागरिक तकनीशियनों के तौर पर मालदीव में रहने की अनुमति देने के लिए राजी हो गए। इससे वहां के विमानन और निगरानी कार्यों में निरंतरता बनी रही।
इसके साथ ही भारत ने मालदीव को आर्थिक सहायता भी बढ़ाई। भारत ने मालदीव की विकास सहायता को 600 करोड़ रुपये तक बढ़ाया, व्यापार कोटा बढ़ाया और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर काम में तेजी लाई। इसका परिणाम यह हुआ कि मई 2024 तक, मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर भारत से समर्थन मांगने और संबंधों को बहाल करने की इच्छा व्यक्त करने के लिए नई दिल्ली में डेरा चुके थे।
इसके बाद, दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने लगे। अक्टूबर 2024 में, राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारत की पांच दिवसीय राजकीय यात्रा की। इस दौरान, दोनों देशों ने विजन फॉर कम्प्रहैंसिव इकोनॉमिक एंड मैरिटाइम सिक्योरिटी पार्टनरशिप को अपनाया। इस समझौते में रक्षा, विकास, डिजिटल और राजनीतिक आदान-प्रदान जैसे सात क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनी। इस दौरान भारत ने मालदीव के 150 मिलियन डॉलर के तीन ट्रेजरी बिलों को रोल ओवर किया। साथ ही 750 मिलियन डॉलर की मुद्रा विनिमय की पेशकश की और सार्क के तहत 30 बिलियन रुपये की नई ऋण सुविधा को भी मंजूरी दी। इन फैसलों से मालदीव को मिली आर्थिक राहत का अंदाजा वहां के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद के बयान से लगाया जा सकता है। नाशीद ने कहा था कि भारत के समर्थन से मालदीव को दिवालिया होने से बचाया जा सका। उस समय, मालदीव का ऋण-जीडीपी अनुपात 110 प्रतिशत से अधिक हो गया था और विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम हो गया था। भारत ने मालदीव की मदद करके यह दिखाया कि वह एक अच्छा पड़ोसी और एक विश्वसनीय भागीदार है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी के मालदीव दौरे ने द्विपक्षीय संबंधों को पहले की स्थिति में बदल दिया है। राष्ट्रपति मुइज्जू ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत की प्रशंसा में जो कशीदे कढ़े हैं, वे इसकी पुष्टि करते हैं। प्रधानमंत्री का यह दौरा इस तथ्य की पुष्टि करता है तमाम मतभेदों और विवादों के बावजूद हिंद महासागर क्षेत्र में आपसी हितों की अहमियत को नकार नहीं सकते हैं।

(लेखक दिल्ली में आज अख़बार के नेशनल ब्यूरो हैं)