लेखक- राघवेंद्र पाठक
हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के लिए डीप स्टेट और उसका अन्य पिट्ठू पाकिस्तान जिम्मेदार..!
डीप स्टेट को उम्मीद थी कि अमेरिकी चुनावों में परिणाम तो कमला हैरिस के पक्ष में ही आएंगे। लेकिन आ गए ट्रंप। काफी समय डीप स्टेट को इस सदमे से उबरने में लगे। ट्रंप की ताजपोशी करीब आता देख डीप स्टेट या गहरा राज्य अथवा प्रेत राज्य के नुमाइंदों की तंद्रा अब टूटी तो वे हड़बड़ाहट में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे- ऐसे निर्णय ले रहे हैं कि ट्रंप कार्यकाल में परिस्थितियां दुरूह बनीं रहें। बंगलादेश में रिजीम चेंज कर भी उनका मन नहीं भरा तो वे भारत के खिलाफ नित नई साजिशों को अंजाम दे रहे हैं। लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय विदेश नीति का स्वर्णिम काल चल रहा है।
बंगलादेश में बेगम खालिदा जिया की बीएनपी यानी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमाते इस्लामी अपनी जनता को भारत के खिलाफ भड़काने में लगे हुए हैं। डीप स्टेट ने देश का नेतृत्व अपने नुमाइंदे मोहम्मद यूनुस को सौंपा है, जो स्वयं भारत के खिलाफ भड़काऊ फैसले करने में लगे हुए हैं।
भारत के खिलाफ यूनुस के फैसले आ बैल मुझे मार शैली में किए जा रहे हैं। इस कारण इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया है कि वे सत्ता में बने रहने की कीमत पर, जैसा उन्हें कहा जा रहा है, कर रहे हैं।
बीएनपी जब- जब सत्ता में रही, उसकी नजदीकी पाकिस्तान से बढ़ी रही। लेकिन जमाते इस्लामी पर तो भारत के टुकड़े कराने की सीधे- सीधे जिम्मेदार रही। भारत के भारत और पाकिस्तान के रूप में दो हिस्से में बंटने के बाद भी उसकी हरकतें जारी रहीं।
मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में 1971 में बंगलादेश बनने के बाद जमाते इस्लामी का एक धड़ा बंगलादेश में ही रह गया। लेकिन उसकी पाकिस्तान परस्त सोच बनी रही।
डीप स्टेट ने जब बंगलादेश में रिजीम चेंज कर शेख हसीना को सत्ताच्युत करवा दिया और वे भारत आने को मजबूर हो गईं तो डीप स्टेट ने अपने नुमाइंदे यूनुस, बीएनपी और जमाते इस्लामी को देश के 8 प्रतिशत हिन्दुओं पर अत्याचार के लिए उकसाया ताकि भारत, बंगलादेश के खिलाफ भड़के और उसे एक लंबे युद्ध में फंसा दिया जाए।
भारत को यह उस बात की सजा होती कि क्योंकि भारत ने डीप स्टेट के कहने पर चीन के विरुद्ध युद्ध नहीं छेड़ा? क्यों, यूक्रेन पर युद्ध थोपने के लिए रशिया की आलोचना नहीं की। प्रतिबंध के बावजूद रशिया से तेल क्यों खरीदा आदि आदि।
चाइना के खिलाफ रणनीतिक पार्टनर के रूप में अमेरिका को भारत की जरूरत है। खासकर हिंद- प्रशांत क्षेत्र में। लेकिन अमेरिका के हिसाब से न चलने के कारण पहले बंगलादेश में भारत समर्थक सरकार को उखाड़ फिंकवाया फिर उसके जरिए भारत को उकसाया जाने लगा।
अब अमेरिका का स्टेट्स डिपार्टमेंट जोकि भारत के विदेश मंत्रालय के समकक्ष है, जिससे जुड़कर डीप स्टेट अपनी हरकतों को अंजाम देता है और अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार में खासकर फलता- फूलता है, की शह पर बंगलादेश और पाकिस्तान करीब आ रहे हैं।
यूनुस ने ऐसा इकोसिस्टम डेवेलप किया है कि धड़ल्ले से पाकिस्तान से हथियार बंगलादेश पहुँच रहे हैं और उनकी जांच भी नहीं हो रही है। भारी संख्या में पाकिस्तानियों को वीजा जारी किए जा रहे हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि कट्टर इस्लामिस्ट और भारत विरोधी तत्व पाकिस्तान से बंगलादेश में जुट रहे हैं। इनकी आड़ में आईएसआईएस और अलकायदा ग्रुप्स बंगलादेश में सक्रिय हो रहे हैं।
नहीं भूलना चाहिए कि ये बंगलादेश और इस देश की वही जनता है जिस पर पाकिस्तान की फौज ने इतने जुल्म ढाए थे कि वे लोग भारत से मदद मांगने को विवश हो गए थे। लाखों लोग मारे गए थे। बड़ी संख्या में बलात्कार हुए थे। तब भारत ने मानव धर्म निभाते हुए उन्हें पाकिस्तान से आज़ाद करवा कर 1971 में नया देश बनवा कर स्वाभिमान से जीवन जीने का हक दिलाया था। लेकिन ये एहसानफरामोश कौम है। आज इसे भलीभाँति देखा, समझा और भविष्य के लिए सतर्क रहा जा सकता है।
लेकिन केंद्र में आज एक ऐसी सरकार है, जिसकी विदेश नीति के सभी कायल हैं। बंगलादेश में रिजीम चेंज के ठीक बाद म्यांमार के विद्रोही गुट अराकान आर्मी के लीडर्स को नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों में देखा गया।
म्यांमार से बंगलादेश 271 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। आपको याद होगा एक बौद्ध भिक्षु सिराथू के नेतृत्व में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ एक खतरनाक अभियान छेड़ा गया था, जिसमें लाखों की तादाद में विस्थापित होकर भारत, बंगलादेश आदि देशों में रोहिंग्या शरणार्थी वैध और अवैध रूप से पहुंच गए थे। तब म्यांमार में बौद्धों का एक डायलॉग बड़ा चर्चित हुआ था कि “पागल कुत्तों के साथ नहीं रहा जा सकता।”
हिन्दुओं के साथ- साथ बंगलादेश के बौद्ध बहुल चटगांव इलाके में बौद्धों के साथ भी अत्याचार की हर हदें पार कर दी गईं। अब म्यांमार की अराकान आर्मी अराकान राज्य और बंगलादेश के काक्सबाजार हिस्से में सक्रिय हो गई है।
केंद्र सरकार द्वारा हर राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बंगलादेश में हिन्दुओं और बौद्धों पर हो रहे अन्याय को बड़ी मजबूती से रखा गया। इससे विश्व जनमत इन घटनाओं के प्रति जाग्रत हो गया और न केवल निंदा की जाने लगी वरन् मोहम्मद यूनुस पर रेडिकल इस्लामिस्ट्स के ऊपर एक्शन लेने का दबाव बनने लगा। मजबूरी में बाइडन सरकार को भी बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की निंदा करनी पड़ी।
भारत सरकार ने एक कदम और उठाया, जिसके अंतर्गत बंगलादेश के खिलाफ अघोषित आर्थिक नाकेबंदी कर दी गई। वहाँ महंगाई 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है और आने वाले महीने में इंडिया लाक्ड कंट्री बंगलादेश में आम जनता त्राहि- त्राहि करती दिखेगी।
लेकिन अमेरिकी स्टेट्स डिपार्टमेंट भारत की मजबूत सरकार को कमजोर करने के लिए पश्चिम से पाकिस्तान और पूर्व से बंगलादेश के जरिये सैंडविच बना देने के अब भी ख्वाब देख रहा है, जबकि डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बाइडन अब महज 33 दिन के मेहमान हैं। उन्होंने आईएमएफ के जरिये यूनुस द्वारा जितना लोन मांगा जा रहा था, उससे ज्यादा लोन दिलवा दिया। इस बात की भी चर्चा है कि विश्व बैंक से भी बंगलादेश को लोन दिलवाया जाएगा।
अमेरिका की शह पर भारत के खिलाफ बंगलादेश और पाकिस्तान के हाथ मिला लेने के बाद हथियारों की खेप पर खेप बंगलादेश पहुँच रही हैं, जिससे भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में अस्थिरता फैलाने की कोशिश की जाएगी।
लेकिन अमेरिका का विदेश विभाग हो या भारत के विरुद्ध पाक- बंगलादेश का नापाक गठजोड़ इसे नहीं भूलना चाहिए कि भारत की विदेश नीति का स्वर्णकाल चल रहा है। उस चीन को भारत के विरुद्ध उठे कदम पीछे खींचने पड़े हैं, जिसका इससे पूर्व ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं था। मालदीव और श्रीलंका भी भारत का विरोध करते- करते भारत की शरण में आ गए हैं। 100 प्रतिशत संभावना है कि चंद महीनों में बंगलादेश को भी एहसास हो जाएगा कि वह पहाड़ के नीचे महज ऊंट भर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)